सुजानगंज में सबसे अधिक तो मुफ्तीगंज में कम हैं कुपोषित बच्चे

पूर्व में कुपोषण दूर करने के लिए अधिकारियों की ओर से गांवों को गोद लेने की व्यवस्था तो की गई लेकिन अधिकारी गांवों तक नहीं पहुंच सके। अधिकांश ग्रामीणों को तो पता ही नहीं कि उनके बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उनके गांवों को गोद भी लिया गया था। हालांकि गत तीन वर्ष से इस व्यवस्था को बंद करते हुए सरकार ने खुद कुपोषण की रोकथाम की कमान थाम ली है जिसके बेहतर परिणाम भी सामने आए हैं। मौजूदा समय में सुजानगंज में सबसे अधिक तो मुफ्तीगंज में सबसे कम कुपोषित बच्चे हैं। शासन की ओर से संचालित तमाम योजनाओं से इस अंतर को भी कम करने की पूरी कोशिश की जा रही है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 05 Sep 2021 10:41 PM (IST) Updated:Sun, 05 Sep 2021 10:41 PM (IST)
सुजानगंज में सबसे अधिक तो मुफ्तीगंज में कम हैं कुपोषित बच्चे
सुजानगंज में सबसे अधिक तो मुफ्तीगंज में कम हैं कुपोषित बच्चे

जागरण संवाददाता, जौनपुर : पूर्व में कुपोषण दूर करने के लिए अधिकारियों की ओर से गांवों को गोद लेने की व्यवस्था तो की गई, लेकिन अधिकारी गांवों तक नहीं पहुंच सके। अधिकांश ग्रामीणों को तो पता ही नहीं कि उनके बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उनके गांवों को गोद भी लिया गया था। हालांकि गत तीन वर्ष से इस व्यवस्था को बंद करते हुए सरकार ने खुद कुपोषण की रोकथाम की कमान थाम ली है, जिसके बेहतर परिणाम भी सामने आए हैं। मौजूदा समय में सुजानगंज में सबसे अधिक तो मुफ्तीगंज में सबसे कम कुपोषित बच्चे हैं। शासन की ओर से संचालित तमाम योजनाओं से इस अंतर को भी कम करने की पूरी कोशिश की जा रही है। 35 अधिकारियों ने 70 गांव लिया था गोद

जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी, जिला कार्यक्रम अधिकारी, परियोजना निदेशक समेत अन्य 35 अधिकारियों ने 70 गांवों को गोद लिया था, जिसमें इक्का-दुक्का को छोड़कर कोई नहीं पहुंचा। इस महत्वपूर्ण कड़ी को लेकर बरती गई उदासीनता की वजह से कुपोषण के खिलाफ जंग में अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सका। यही वजह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए खुद कमान संभाली, जिससे न सिर्फ तस्वीर बदली, बल्कि सार्थक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। पहले जहां 11 हजार से अधिक कुपोषित बच्चे थे, वहीं अब इनकी संख्या काफी कम हुई है। ग्रामीणों को नहीं पता कि उनके गांव लिए गए थे गोद

सुइथाकलां में चार गांवों को कुपोषण दूर करने के लिए चयनित किया गया था। इसमें मुख्य पशु चिकित्साधिकारी ने भगासा व पूरा असालत खां को, जबकि सूरापुर व ऊंचगांव को मुख्य कार्यकारी अधिकारी मत्स्य ने गोद लिया था। इनमें पूरा असालत खां की तत्कालीन प्रधान रजिया व भगासा की किरन सिंह ने स्वीकार किया कि गोद लेने वाले अधिकारी गांव में दो-तीन बार आए थे और कुपोषण के शिकार लोगों से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर मिले थे। अन्य गांव जैसे ऊंचगांव की तत्कालीन प्रधान विद्या तिवारी, सूरापुर की प्रेमलता सिंह आदि ने साफ कहा कि गांव में न कभी कोई अधिकारी आए और न ही इस तरह की किसी योजना की उन्हें जानकारी ही है। केराकत के घरौरा व गोबरहां गांव को उपायुक्त उद्योग ने गोद लिया था, लेकिन वहां की सीडीपीओ को यह पता ही नहीं कि पूर्व में ऐसी कोई योजना भी चली थी। जलालपुर के डोभी के पोखरा व डीहा गांव में भी अधिकारी गांव में नहीं पहुंचे। अतिकुपोषित बच्चों का यह है ब्लाकवार आंकड़ा

केराकत ब्लाक में 368, डोभी में 219, सिकरारा में 298, मछलीशहर में 285, जलालपुर में 249, धर्मापुर में 185, सुइथाकला में 234, मुफ्तीगंज में 176, रामपुर में 275, मुंगराबादहशापुर में 319, महराजगंज में 282, बरसठी में 281, बदलापुर में 319, बक्शा में 269, करंजाकला में 389, खुटहन में 355, मड़ियाहूं में 276, रामनगर में 339, शाहगंज में 340, सुजानगंज में 360, सिरकोनी में 324 व नगर क्षेत्र में 301 बच्चे अतिकुपोषित हैं।

-------------------- गोद लेने की व्यवस्था तीन वर्ष पहले बंद हो चुकी है। शासन की ओर से कुपोषण दूर करने को टार्गेट दिया गया है। अब हर वर्ष अलग थीम के साथ इसे आगे बढ़ाया जा रहा है, जिसके सार्थक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। हमारी कोशिश है कि बच्चों के साथ एनीमिया की शिकार किशोरियों को भी स्वस्थ बनाया जा सके।

- दीपक चौबे, प्रभारी डीपीओ।

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