अकीदत के साथ मना मलिक जदा का उर्स

By Edited By: Publish:Fri, 22 Aug 2014 07:48 PM (IST) Updated:Fri, 22 Aug 2014 07:48 PM (IST)
अकीदत के साथ मना मलिक जदा का उर्स

नौपेड़वा (जौनपुर): बक्शा थाना परिसर में स्थित सैय्यद मलिक जदा का उर्स हर वर्ष की भांति गुरुवार को पूरे अकीदत के साथ मनाया गया। परंपरा के अनुसार थानाध्यक्ष रवींद्र श्रीवास्तव ने चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगी। देर रात तक मजार पर आने वाले सभी धर्म के लोगों का चादर चढ़ाने के लिए तांता लगा रहा।

बाबा की यह मजार वर्ष 1881 में निर्मित कराई गई। जो आज भी हिंदू और मुसलमानों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। बाबा सैय्यद मलिक जदा पांच भाइयों में सबसे बड़े थे, जिनमें से दो सगे भाइयों की मजार थाना परिसर में ही अगल-बगल मौजूद है। तीसरे भाई की मजार वहीं से सटे हुए गांव लखनीपुर की सांई बस्ती में है, जिन्हें मल्लू बाबा के नाम से जाना जाता है। जबकि चौथे व पांचवें भाई की मजार क्रमश: बेलापार तथा थोड़ी दूर पर ही स्थित उटरूखुर्द गांव के लाल बाग में मौजूद है।

गुरुवार को यहां परंपरानुसार सबसे पहले चादर बक्शा थानाध्यक्ष रवींद्र श्रीवास्तव ने चढ़ाई। इसके बाद बक्शा, लखनीपुर, बेलापार, नौपेड़वा, रन्नो, भकड़ी सहित अन्य गांव के सैकड़ों लोगों ने बैंडबाजे के साथ चादर चढ़ाने व देर रात तक मुरादें मांगने वालों का तांता लगा रहा। जिसमें सभी धर्मो के लोग शामिल रहे।

विदित हो कि अंग्रेजों के शासनकाल में जब बक्शा थाने का निर्माण शुरू हुआ तो दिन में जितनी भी दीवारें बनाई जाती थीं रात में वह स्वत: ध्वस्त हो जाती थीं। यह क्रम कई दिनों तक निरंतर चलता रहा परंतु किसी को यह पता नहीं था कि यहीं पर बाबा सैय्यद की मजार है। उसी दौरान एक रात तत्कालीन थानाध्यक्ष ने रात में स्वप्न देखा कि थाने के पश्चिमी हिस्से में बाबा की मजार है फिर पहले सभी कार्य रोककर बाबा की मजार पक्की कराई गई। तब जाकर निर्माण कार्य पूरा हो सका।

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