अद्भुत परंपरा : एक किलोमीटर के तिरंगे में समा गया समूचा सेंट एंड्रयूज कॉलेज

गोरखपुर के सेंट एंड्रयूज कॉलेज में में पिछले करीब डेढ़ दशक से एक परपंरा है। उसी परंपरा के तहत पूरे कालेज को तिरंगे में चारो तरफ से लपेटा गया है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 14 Aug 2019 05:31 PM (IST) Updated:Thu, 15 Aug 2019 06:29 AM (IST)
अद्भुत परंपरा : एक किलोमीटर के तिरंगे में समा गया समूचा सेंट एंड्रयूज कॉलेज
अद्भुत परंपरा : एक किलोमीटर के तिरंगे में समा गया समूचा सेंट एंड्रयूज कॉलेज

गोरखपुर, जेएनएन। शहर के सेंट एंड्रयूज कॉलेज में जश्न-ए-आजादी को मनाने की अद्भुत और अनुकरणीय परंपरा है। यहां 15 अगस्त और 26 जनवरी को पूरा कैंपस एक तिरंगे में समेट दिया जाता है। बीते डेढ़ दशक से चली आ रही इस परंपरा को जारी रखने के लिए कॉलेज प्रशासन ने एक मीटर चौड़ाई में एक किलोमीटर का तिरंगा तैयार करा रखा है। इसके पीछे कॉलेज प्रशासन का उद्देश्य समाज को एकता का संदेश देना है।

कॉलेज के मीडिया प्रभारी डॉ. सुशील कुमार राय ने बताया कि कॉलेज परिसर में बदले अंदाज में जश्ने-आजादी मनाने की परंपरा की शुरुआत 2001 में वर्तमान प्राचार्य प्रो.जेके लाल ने की थी। शुरुआती दौर में इस परंपरा का निर्वहन कॉलेज के प्रशासनिक भवन से मुख्य द्वार के बीच किया जाता था। अगले ही वर्ष प्राचार्य ने पूरे कॉलेज को तिरंगे में समेटने की सोची और 2005 तक इसे कर दिखाया।

2005 से शुरू हुई परंपरा

2005 से हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर कॉलेज के सभी भवनों को तिरंगे के माध्यम से जोड़ दिया जाता है। इसके लिए एक किलोमीटर का झंडा तैयार कराया गया है। तिरंगे से परिसर को एकाकार करने में दो से तीन दिन लगते हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी को ध्वजारोहण के अगले दिन से इसे उतारने में भी दो दिन का समय लगता है। इस कार्य के दौरान तिरंगे की गरिमा का पूरा ख्याल रखा जाता है। कॉलेज प्रशासन की प्रतिबद्धता इस बात से भी आंकी जा सकती है कि सभी शिक्षक और कर्मचारी इसमें अपना सहयोग सुनिश्चित करने के लिए आतुर रहते हैं।

कुछ हमारी भी जिम्मेदारी

सेंट एंड्रयूज कॉलेज के प्राचार्य प्रो.जेके लाल के अनुसार सेंट एंड्रयूज कॉलेज जिले का सबसे पुराना डिग्री कॉलेज है। ऐसे में इसकी जिम्मेदारी भी बड़ी है। कॉलेज परिसर को एक किलोमीटर के तिरंगे से एकाकार करना इस जिम्मेदारी के निर्वहन की एक कड़ी है। इस अनोखी परंपरा की शुरुआत मैंने ही की है। पूरी कोशिश होगी कि यह परंपरा टूटने न पाए।

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