योगी आदित्‍यनाथ ने कहा- राष्ट्र की रक्षा हर संत-संन्यासी का पहला कर्तव्य Gorakhpur News

महंत दिग्विजयनाथ आनन्दमठ की संन्यासी परंपरा के संत थे। समूची गोरक्ष पीठ ने ही सन्यासी परंपरा का अनुशरण किया और मानती रही कि राष्ट्र धर्म ही हमारा व्यक्तिगत धर्म है।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Tue, 17 Sep 2019 06:42 PM (IST) Updated:Tue, 17 Sep 2019 07:00 PM (IST)
योगी आदित्‍यनाथ ने कहा- राष्ट्र की रक्षा हर संत-संन्यासी का पहला कर्तव्य Gorakhpur News
योगी आदित्‍यनाथ ने कहा- राष्ट्र की रक्षा हर संत-संन्यासी का पहला कर्तव्य Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। गोरखनाथ मंदिर में मंगलवार को ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते मुख्यमंत्री ने योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राष्ट्रधर्म सभी धर्मों से श्रेष्ठ है। संत होते हुए महंत दिग्विजयनाथ का स्वतंत्रता संग्राम में आगे बढ़कर हिस्सा लेना इस बात का प्रमाण है। आजाद भारत को राष्ट्रभक्त युवा देने के लिए उन्होंने 1932 में ही महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की और कई विद्यालयों की नींव रखी। गोरखपुर विश्वविद्यालय को अपने दो महाविद्यालयों की संपत्ति दान कर दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।

आनंद मठ परंपरा के संन्‍यासी थे दिग्विजयनाथ

योगी ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ आनन्दमठ की संन्यासी परंपरा के संत थे। समूची गोरक्ष पीठ ने ही सन्यासी परंपरा का अनुशरण किया और मानती रही कि राष्ट्र धर्म ही हमारा व्यक्तिगत धर्म है। पीठ की हमेशा से यह मान्यता रही कि राष्ट्र की रक्षा सन्यासी का पहला कर्तव्य है। हर किसी को यह समझना होगा कि राष्ट्र का विकास व्यक्ति के विकास की आवश्यक शर्त है।

हिंदुत्‍व के आदर्शों की स्‍थापना के राजनीति की राह पर भी चले

मुख्यमंत्री ने कहा कि बाबा गंभीरनाथ की तपस्या में पले-बढ़े दिग्विजयनाथ हिंदुत्व के मूल्यों व आदर्शों की स्थापना के लिए राजनीति की राह पर चले। राष्ट्र निर्माण में महंत दिग्विजयनाथ के योगदान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत-नेपाल संबंध को बनाए रखने के लिए नेहरू सरकार को कई बार महंत दिग्विजयनाथ की सहायता लेनी पड़ी थी। खिलाफत आंदोलन के बाद कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति के विरोध में दिग्विजयनाथ ने राष्ट्रवादी राजनीति का शंखनाद किया था। वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर का द्वार सबके लिए खुलवाया।

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