गोरखपुर की मस्जिदों में चल रही संस्कार की पाठशाला

गोरखपुर के मस्जिदों में संस्कार की पाठशाला चल रही है। यहां सम्मान, सफाई, सच्चाई, देशप्रेम, ईमानदारी और गरीबों की मदद जैसे विषयों पर शिक्षा दी जाती है।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Sun, 21 May 2017 08:12 PM (IST) Updated:Sun, 21 May 2017 11:11 PM (IST)
गोरखपुर की मस्जिदों में चल रही संस्कार की पाठशाला
गोरखपुर की मस्जिदों में चल रही संस्कार की पाठशाला

गोरखपुर (काशिफ अली)। शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी जरूरी है। कम उम्र में जो कुछ सिखाया जाता है जिंदगी भर वो बातें याद रहती है। वह एक ऐसा नक्श होता है जो कभी मिटता नहीं। इसी को ध्यान में रखते हुए शहर के मस्जिदों में संस्कार की पाठशाला चलाई जा रही है। बच्चों को बड़ों का सम्मान, सफाई का महत्व, सच बोलने की अहमियत, मुल्क के प्रति जिम्मेदारी, ईमानदारी की जरूरत और गरीबों की मदद जैसे विषयों पर शिक्षा दी जा रही है।

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गोरखपुर के 50 केंद्रों पर दिनीयात नाम से एक प्रशिक्षण शिविर चलाया जा रहा है। रविवार को छोड़कर प्रतिदिन एक-एक घंटे की कक्षाएं चलती हैं। इसका मकसद बच्चों में अच्छे संस्कार के साथ उन्हें उर्दू और अरबी की शिक्षा देना भी है। खास बात यह है कि यहां आने वालों में अंग्रेजी मीडियम के बच्चों की तादाद सबसे ज्यादा है। एक सेंटर उचवां स्थित मस्जिद में भी है। दोपहर ढाई बजे से पहले बच्चे सेंटर पहुंच जाते हैं। एक शिफ्ट में महज 15 बच्चों को प्रशिक्षण दिया जाता है। उनके लिए बाकायदा पाठ्यक्रम बनाया गया है। बच्चों का दिल प्रशिक्षण में लगे इसलिए सप्ताह में दो दिन उन्हें चाकलेट दिया जाता है। तीन माह में एक बार टेस्ट लिया जाता है। मुबंई जाकर शिक्षक प्रशिक्षण भी लेते हैं। बच्चों को डांटने-मारने पर पाबंदी है।

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साढ़े चार वर्ष पहले संस्कार सिखाने की मुहिम गोरखनाथ जामा मस्जिद से शुरू हुई थी तब महज पांच बच्चे थे। धीरे-धीरे बच्चों और सेंटरों की संख्या भी बढऩे लगी। अलग-अलग सेंटरों में अब 4600 बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं। गोरखपुर के अलावा देवरिया, संतकबीर नगर, बस्ती, महराजगंज और कुशीनगर में भी सौ से ज्यादा मस्जिदों में यह नेक काम हो रहा है। केंद्र संचालक खालिद हबीब बताते हैं कि हमारा काम उस वक्त तक काबिले इत्मीनान नहीं होगा जब तक मुसलमान तालीम और तहजीब को अपनी सभी जरूरतों से अहम नहीं समझेंगे।

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प्रशिक्षण ले रहीं फाइजा फातमा ने बताया कि स्कूल से एक बजे लौटती हूं और खाना खाने के बाद सेंटर पहुंच जाती हूं। यहां आकर बहुत सी ऐसी बाते सीखने और समझने को मिली जो घर में किसी ने नहीं बताया था। मोहम्मद माज बताते हैं कि यहां हमें यह बताया गया कि बड़ों के साथ कैसे पेश आना है।

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