Chauri Chaura Kand के सत्याग्रहियों को एक ही नहीं अलग-अलग तिथियों पर दी गई थी फांसी, यहां पढ़ें- विशेष जानकारी

Independence day 2022 स्वतंत्रता आंदोलन में पूर्वांचल की भूमिका को याद किया जाए और चौरी चौरा कांड को शामिल न किया जाए ऐसा हो ही नहीं सकता है। आज हम आपके लिए इस घटना से जुड़ी खास जानकारी लेकर आए हैं...

By Pragati ChandEdited By: Publish:Mon, 15 Aug 2022 11:30 AM (IST) Updated:Mon, 15 Aug 2022 11:30 AM (IST)
Chauri Chaura Kand के सत्याग्रहियों को एक ही नहीं अलग-अलग तिथियों पर दी गई थी फांसी, यहां पढ़ें- विशेष जानकारी
Independence day 2022: चौरी चौरा कांड के बलिदानियों की याद में बना स्मारक। (फाइल फोटो)

गोरखपुर, उमेश पाठक। Independence day 2022: चौरी चौरा कांड (Chauri Chaura Kand) के बाद फांसी की सजा पाए 19 सत्याग्रहियों को फांसी देने की तिथि को लेकर काफी भ्रम की स्थिति है। सत्याग्रहियों के सम्मान में बने शहीद स्मारक पर दिया गया विवरण हो या प्रदेश सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की ओर से प्रकाशित पुस्तक, दोनों जगह सत्याग्रहियों को फांसी देने की तिथि दो जुलाई 1923 ही दर्ज है। जबकि इस केस से जुड़े दस्तावेजों में फांसी दिए जाने का दिन अलग-अलग है। सभी सत्याग्रहियों को दो जुलाई से 11 जुलाई 1923 के बीच अलग-अलग जिलों के कारागार में फांसी दी गई थी।

इस पुस्तक में बताई गई है खास बात

शहीद स्मारक हो या सरकार की ओर से प्रकाशित किताब, दो जुलाई 1923 ही दर्ज है। चौरी चौरा शहीद स्मारक पर जाने वाला व्यक्ति यदि वहां दर्ज तथ्य देखेगा तो सभी सत्याग्रहियों को फांसी पर लटकाए जाने की तिथि दो जुलाई 1923 ही नजर आएगी। चौरी चौरा घटना से जुड़े दस्तावेजों के संदर्भ के आधार पर सुभाष चंद्र कुशवाहा ने अपनी किताब 'चौरी चौरा : विद्रोह और स्वाधीनता आंदोलन' में सभी सत्याग्रहियों की फांसी की तिथि को अलग-अलग बताया है। किसी भी सत्याग्रही को गोरखपुर में फांसी नहीं दी गई थी। सुभाष कहते हैं कि अभी इस घटना से जुड़े तथ्यों को दुरुस्त करने की जरूरत है। फांसी से जुड़े दस्तावेज अलग-अलग आर्काइव में मौजूद हैं, जिन्हें कोई भी देख सकता है। स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास की इस अत्यंत महत्वपूर्ण घटना के बारे में सभी को सही जानकारी होनी चाहिए।

कब किस सत्याग्रही को हुई फांसी

सत्याग्रही : फांसी की तिथि स्थान

रघुबीर सुनार : दो जुलाई 1923 कानपुर कारागार

संपत अहीर : दो जुलाई 1923 इटावा कारागार

श्याम सुंदर मिसिर : दो जुलाई 1923 इटावा कारागार

अब्दुल्ला: तीन जुलाई 1923 बाराबंकी कारागार

लाल मुहम्मद सेन : तीन जुलाई 1923 रायबरेली कारागार

लवटू कोहार : तीन जुलाई 1923 रायबरेली कारागार

मेघू उर्फ लाल बिहारी: चार जुलाई 1923 आगरा कारागार

नजर अली : चार जुलाई 1923 फतेहगढ़ कारागार

भगवान अहीर : चार जुलाई 1923 अलीगढ़ कारागार

रामरूप बरई : चार जुलाई 1923 उन्नाव कारागार

महादेव : चार जुलाई 1923 बरेली कारागार

कालीचरन : चार जुलाई 1923 गाजीपुर कारागार

बिकरम अहीर : पांच जुलाई 1923 मेरठ कारागार

रुदली केवट : पांच जुलाई 1923 प्रतापगढ़ कारागार

संपत : नौ जुलाई 1923 झांसी कारागार

सहदेव : नौ जुलाई 1923 झांसी कारागार

दुधई भर : 11 जुलाई 1923 जौनपुर कारागार

नोट : रामलगन एवं सीताराम की फांसी किस तिथि को हुई, यह स्पष्ट नहीं हो सका। (स्रोत : चौरी चौरा विद्रोह पर लिखी किताब 'चौरी चौरा : विद्रोह और स्वाधीनता आंदोलन')

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