भोजन मांगने पर अंग्रेज अधिकारियों ने कोड़ों से पीटा

दिलदारनगर (गाजीपुर) : देश को अंग्रेजों के चुंगल से आजाद कराने में नगर के क्रांतिकारिय

By JagranEdited By: Publish:Mon, 13 Aug 2018 09:52 PM (IST) Updated:Mon, 13 Aug 2018 09:52 PM (IST)
भोजन मांगने पर अंग्रेज अधिकारियों ने कोड़ों से पीटा
भोजन मांगने पर अंग्रेज अधिकारियों ने कोड़ों से पीटा

दिलदारनगर (गाजीपुर) : देश को अंग्रेजों के चुंगल से आजाद कराने में नगर के क्रांतिकारियों ने अपनी जान लड़ा दी। वह अपने जान की परवाह किए बिना अंग्रेजी हुक्मरानों से लोहा लेते रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में नगर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरजू प्रसाद भी कूद पड़े थे जिन्हें छह वर्ष की कठोर सजा और छह बेंत की सजा भी मिली थी। जेल में बंद होने के दौरान भोजन मांगने पर अंग्रेज अधिकारियों ने कोड़ों से पीटा। स्वतंत्रता संग्राम की पूरी दास्तां सरजू प्रसाद ने कागज पर उकेरा है जिसे उनके वंशजों ने आज भी सहेज कर रखा है। वह आज इस दुनिया में तो नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के जेहन में तैर रही हैं।

स्व. सरजू प्रसाद के पुत्र मुन्ना गुप्ता ने बताया कि उस समय हम लोग पैदा नहीं हुए थे। पिता जी द्वारा देश को आजाद कराने में जो कार्य किया था उन्होंने उस घटनाक्रम को लिखा है। उनके इस ऐतिहासिक गौरव गाथा को आज भी हम लोग सहेज कर रखे हुए हैं। उन्होंने लिखा है कि बापू के इशारे पर भारत छोड़ो का आंदोलन छिड़ गया था। सन 1942 में मैं अन्य साथियों के साथ ताड़ीघाट, नगसर, दिलदारनगर रेलवे स्टेशन, डाकखाना तथा थाना पर हमला कर रेल पटरियों को उखाड़ते दिया और वापस दिलदारनगर बाजार में आ गया। उसी समय मुगलसराय से आये अंग्रेज सिपाहियों ने मुझे और मेरे साथियों को गिरफ्तार कर मुगलसराय रेलवे स्टेशन स्थित हवालात में 24 घंटे के लिए बंद कर दिए। नाश्ता और खाना के बदले अंग्रेज एसपी तथा डीएसपी द्वारा कोड़ों से पीटा गया। इसके बाद वाराणसी कैंट भेज दिया गया। वहां भी नाश्ता और खाना के बदले अंग्रेज सिपाहियों द्वारा निर्दयता पूर्वक हंटर और कोड़े से पीटा गया। अंग्रेज अधिकारियों द्वारा हम लोगों को तत्काल गोली से उड़ाने का आदेश दिया गया। गोली मारने की बात सुनकर कुछ साथी बेहोश होकर गिर गए। स्थिति गंभीर होती देख अंग्रेज अधिकारी ने हम लोगों को ट्रकों में भरकर सारनाथ के जंगल मे छोड़ दिए। किसी तरह हम लोग सारनाथ से पैदल दिलदारनगर अपने अपने घर पहुंचे। फिर भी देश को आजाद कराने का जज्बा कम नहीं हुआ। अंग्रेजों का दमन शुरू था। जिला मुख्यालय स्थित कचहरी पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए मैं जा रहा था। नगसर रेलवे स्टेशन के पास दिलदारनगर थाना के थानेदार शिव बालक ¨सह अपने सिपाहियों के साथ गिरफ्तारकर धारा 395/ 35 ड़ीआईआर के अंतर्गत गाजीपुर जिला कारागार भेज दिए। लगभग दो माह हवालात में रहने के बाद स्पेशल जज गाजीपुर न्यायालय द्वारा 6 वर्ष का कठोर कारावास तथा 6 बेंत की सजा दी गयी। 28 नवंबर 1942 को धारा 395/ 35 डीआइआर के अंतर्गत सजा भुगतने के लिए गाजीपुर से सेंट्रल जेल वाराणसी भेज दिया गया। 18 मई 1946 को उक्त कारागार से मुक्त किया गया। चार साल बाद जेल यात्रा से घर लौटने के बाद विद्यालय में अध्यापन का कार्य किए। वर्ष 2007 में चिर ¨नद्रा में विलीन हो गए।

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