सत्यकथा बनी फिल्मी पटकथा, 20 साल बाद मिला बेटा

फैजाबाद : यह ¨हदी फिल्म की पटकथा जैसा है, जिसमें अनुशासन की मूर्ति समान पिता हैं। चार बेट

By JagranEdited By: Publish:Sat, 06 Oct 2018 11:53 PM (IST) Updated:Sat, 06 Oct 2018 11:53 PM (IST)
सत्यकथा बनी फिल्मी पटकथा, 20 साल बाद मिला बेटा
सत्यकथा बनी फिल्मी पटकथा, 20 साल बाद मिला बेटा

फैजाबाद : यह ¨हदी फिल्म की पटकथा जैसा है, जिसमें अनुशासन की मूर्ति समान पिता हैं। चार बेटों में सबसे छोटा 20 साल पहले कम अंक आने की आत्मग्लानि में घर से चला जाता है। फिर 20 साल बाद वह साधुवेश में अपने गांव के करीब पहुंचता है। साधुशाही की मर्यादा से बंधा बेटा अपनी पहचान को गुप्त रखना चाहता है, लेकिन लोगों के बार-बार पूछने पर वह भजन सुनाकर अपना परिचय बताता है। यह सुन पिता पहुंचते हैं और अपनी ममतामयी आंखों से उसे पहचान लेते हैं। घर लाते हैं। घर पर परिवार, मित्र और शुभेच्छुओं का जमावड़ा शुरू हो जाता है। घर में होली और दीपावली जैसा उत्सवी माहौल होता है। यह फिल्मी पटकथा एसएसवी इंटर कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य डॉ. वीरेंद्र कुमार त्रिपाठी के लिए 'सत्यकथा' बन गई है।

डॉ. त्रिपाठी के चार पुत्रों में सबसे छोटे राघवेंद्र वर्ष 1998 में 14 मई को कक्षा आठ में कम अंक आने की आत्मग्लानि में स्कूल से ही घर- परिवार छोड़ चले गए थे। काफी खोजबीन के बाद भी उनका पता नहीं चला। थक हार कर पिता और परिवार के बाकी सदस्यों से इसे नियति मान ली। इस दौरान डॉ. त्रिपाठी की पत्नी निर्मला त्रिपाठी बेहद परेशान रहती थी। बीती चार अक्टूबर को राघवेंद्र अचानक अपने गांव के करीब साधुवेश में अंबेडकरनगर जिले के सुरहुर पहुंचे। एक दुकान पर चाय पीने के दौरान ही दुकानदार ने उनसे परिचय पूछा। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहाकि 'यहीं पास में आजमगढ़ में मेरी भी जन्मभूमि है'। दुकानदार ने शंका होने पर डॉ. त्रिपाठी के परिवारवालों को इसकी सूचना दी। इसके बाद डॉ. त्रिपाठी ने भतीजे अजय त्रिपाठी को उनसे मिलने भेजा। बार-बार परिचय पूछने पर उन्होंने कहा, सिर्फ भजन सुनाउंगा, जिसका पुत्र हूं यदि उसने पहचाना तो ठीक है। शाम को उन्होंने गांव के ही एक मंदिर में भजन सुनाया, जिसमें अपने फैजाबाद के बछड़ा सुल्तानपुर की स्टेट बैंक कॉलोनी स्थित घर का नक्शा बताया। इसके बाद डॉ. त्रिपाठी उनसे मिलने पहुंचे और राघवेंद्र को पहचान लिया। डॉ. त्रिपाठी राघवेंद्र को घर ले आए, हालांकि परिवार के सदस्य अब उन्हें दोबारा गृहस्थ स्वरूप में वापस ले आए।

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लगा मिलने वालों का तांता

-डॉ. त्रिपाठी के बेटे के लौटने का समाचार जैसे ही प्रसारित हुआ, वैसे ही उनके घर लोगों का तांता लग गया। जिले भर के लोग डॉ. त्रिपाठी को बेटे के 20 वर्ष बाद घर लौटने की बधाई देने के लिए जुट रहे हैं। डॉ. त्रिपाठी और उनकी पत्नी निर्मला त्रिपाठी बेहद खुश हैं। ----------------------

छत्तीसगढ़ में रहे राघवेंद्र

-घर छोड़ने के बाद राघवेंद्र इलाहाबाद गए, जहां उन्हें कुछ साधु मिल गए। उन्हीं के साथ वे छत्तीसगढ़ चले गए। वे छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 85 किलोमीटर दूर स्थित एक आश्रम में रहे। उन्होंने साधुवेश भी धारण किया। बीच-बीच में उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों का भ्रमण किया। साधु के रूप में वे कुछ दिन सोहावल भी रहे, हालांकि तब वे घर नहीं आए।

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