पालीथिन: मौत के फंदे में बेजुबान

जागरण संवाददाता, बरहज, देवरिया : पालीथिन का इस्तेमाल इंसान ही नहीं बल्कि बेजुबान जानवरों व पक्षिय

By Edited By: Publish:Sat, 06 Feb 2016 10:33 PM (IST) Updated:Sat, 06 Feb 2016 10:33 PM (IST)
पालीथिन: मौत के फंदे में बेजुबान

जागरण संवाददाता, बरहज, देवरिया : पालीथिन का इस्तेमाल इंसान ही नहीं बल्कि बेजुबान जानवरों व पक्षियों के लिए भी मौत का फंदा है। आदमी के शरीर में यह अगर धीमे जहर की तरह काम करती है तो जानवरों को थोड़े अंतराल पर ही मौत की नींद सुला देती है। सड़क पर छुट्टा घूमने वाले जानवर पालीथिन का सबसे ज्यादा शिकार बनते हैं। आंकड़े बताते हैं कि देवरिया जनपद में हर साल लगभग एक हजार जानवर पालीथिन चबाने से मर जाते हैं।

प्रदेश सरकार ने पालीथिन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है। बावजूद इसके उसका प्रयोग थम नहीं रहा है। जानवरों पर शोध करने वाले विशेषज्ञ बताते हैं कि प्लास्टिक की रस्सी, पन्नी, पालीथिन, गिलास, कटोरी तथा मिठाई के डिब्बों के साथ इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक सामान जानवर अनजाने में खाद्य पदार्थों के साथ सड़क पर निगलते रहते हैं।

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ऐसे होती है जानवरों की मौत

जानवरों द्वारा निगली जाने वाली पालीथिन उनके पेट में एकत्रित होकर एक गांठ के रूप में सामने आती है। बड़े जानवरों में 10-15 किग्रा तथा छोटे जानवरों में पांच से सात किग्रा प्लास्टिक खाने से यह स्थिति बनती है। इससे उनकी पाचन नली चोक हो जाती है। पशु चिकित्सा के क्षेत्र में इसे अफरा बीमारी के नाम से पहचानते हैं। इसमें जानवर का पेट फूलने से गैस बढ़ती है और उसकी मौत हो जाती है। इसका इलाज ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों पर नहीं हो पाता और पशु पालक जब तक पशुओं को जिला पशु चिकित्सालय ले जाते तब तक उनकी मौत हो जाती है।

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इनका कहना है

सड़क के किनारे कूड़े के ढेर में पड़ी पालीथिन आवारा व घरेलू जानवर खाते हैं। धीरे-धीरे यह इकट्ठा होकर गांठ बन जाती है और पशु की पाचन नली को बंद कर देती है। स्थानीय स्तर पर सर्जरी की व्यवस्था न होने से तमाम जानवर मरते हैं। हम इसे लेकर लोगों का जागरूक करने का प्रयास करते हैं।

डा. अशोक कुमार पांडेय, पशु चिकित्सक बरहज

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