शाहजहांपुर में एक गांव ऐसा जहां आजादी के बाद से एक ही परिवार की सरकार, आइये जानें इस गांव और परिवार के बारे में

इसे किस्मत का खेल कहें या बेहतर काम से लोगों की दुआओं का नतीजा...। त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था में आरक्षण लागू होने के बावजूद एक ही परिवार गांव की सरकार चला रहा है। हम बात कर रहे हैं शाहजहांपुर निगोही विकास खंड की ग्राम पंचायत धुल्लिया की।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Wed, 14 Apr 2021 04:44 PM (IST) Updated:Wed, 14 Apr 2021 04:44 PM (IST)
शाहजहांपुर में एक गांव ऐसा जहां आजादी के बाद से एक ही परिवार की सरकार, आइये जानें इस गांव और परिवार के बारे में
आजादी के बाद से 1959 तक दयाराम सिंह गांव के मुखिया रहे।

बरेली, (नरेंद्र यादव)। इसे किस्मत का खेल कहें या बेहतर काम से लोगों की दुआओं का नतीजा...।  त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था में आरक्षण लागू होने के बावजूद एक ही परिवार गांव की सरकार चला रहा है। हम बात कर रहे हैं शाहजहांपुर निगोही विकास खंड की ग्राम पंचायत धुल्लिया की। यहां आजादी के बाद से 1959 तक दयाराम सिंह गांव के मुखिया रहे। दो अक्टूबर 1959 में पंचायतीराज व्यवस्था के तहत चुनाव होने पर उनके बेटे बंधू सिंह लगातार 36 साल तक प्रधान रहे। 1995 में त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था लागू होने पर प्रधान पद महिला वर्ग के लिए आरक्षित हो गया। तब बंधू सिंह की पत्नी रामादेवी चुनाव में मैदान में उतरी। वह निर्विरोध प्रधान चुन ली गई। वर्ष 2000 में बंधू सिंह के भाई की पत्नी प्रधान बनी। इसके बाद बंधु सिंह के बेटे संदीप यादव दस साल प्रधान रहे। 2015 में रामादेवी गांव की दोबारा प्रधान तथा संदीप यादव क्षेत्र पंचायत सदस्य चुने गए। 

दोबारा परिसीमन में बना रहा रिकार्ड 

इस बार 1995 के आरक्षण के आधार पर धुल्लिया ग्राम पंचायत को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश पर 2015 के आरक्षण के तहत हुए परिसीमन व आरक्षण निर्धारण में प्रधान पद अनारक्षित हो गया। नतीजतन संदीप यादव ने फिर से प्रधान पद के लिए दावेदारी ठोंक दी। गांव वरिष्ठतम नागरिक सुबेदार सिंह ने बताया कि जनता, नेता नहीं सेवक व सरंक्षक चाहती है। 86 साल की उम्र में हमने यही अनुभव किया। हमारे पिता दयाराम ङ्क्षसह ने गांव को परिवार की तरह माना। यही कार्य बड़े भाई बंधू ङ्क्षसह ने किया। नतीजतन 36 साल तक वह प्रधान रहे। इसके बाद उनकी रामादेवी व बेटा संदीप को गांव वालों ने मुखिया बना लिया। निवर्तमान प्रधान रामादेवी ने बताया कि हमारा परिवार गांव के विकास के साथ ही सभी के सुखदुख में शामिल रहा। दरवाजे से कोई निराश नहीं हुआ। इसीलिए जनता के साथ ईश्वर ने भी साथ दिया। 

पंचायतीराज के बारे में 

- आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में पंचायतीराज गठन के बाद पहला चुनाव 1947 में हुआ था।

- 2 अक्टूबर 1959 मे केंद्र सरकार की आर से पंचायतों की स्थापना की गई।

- 1994 में उत्तरप्रदेश में 73वां संविधान संशोधन विधेयक के तहत आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई। 

- 1995 में यूपी पंचायतीराज अधिनियम 1947 और यूपी क्षेत्र पंचायत जिला पंचायत अधिनियम 1961 में संशोधन के बाद आरक्षण व्यवस्था के तहत चुनाव हुआ। 

धुल्लिया ग्राम पंचायत में मुस्लिम व अन्य पिछड़ा वग की आबादी ज्यादा

जिला पंचायतीराज अधिकारी पवन कुमार ने बताया कि धुल्लिया ग्राम पंचायत में मुस्लिम व अन्य पिछड़ा वग की आबादी ज्यादा है। 2015 के आरक्षण के आधार पर जनपद में 18 फीसद से अधिक अनुसूचित जाति वाली ग्राम पंचायतों को अनुसूचित जाति में रखा गया है। 1995 के आधार पर आरक्षण की दशा में धुल्लिया अनुसूचित जाति के कोटे में जा रही थी। लेकिन सात फीसद अनुसूचित जाति की आबादी की वजह से अनारक्षित हो गई। 

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