शिक्षक व्यक्ति नहीं, शक्ति का स्वरूप

भारत में प्राचीन काल से गुरु को ईश्वर के तुल्य माना गया है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 Sep 2018 10:55 AM (IST) Updated:Wed, 12 Sep 2018 10:55 AM (IST)
शिक्षक व्यक्ति नहीं, शक्ति का स्वरूप
शिक्षक व्यक्ति नहीं, शक्ति का स्वरूप

जेएनएन, बरेली: भारत में प्राचीन काल से गुरु को ईश्वर के तुल्य माना गया है। शिक्षक ईश्वर द्वारा दिया गया वह उपहार है, जो बगैर किसी स्वार्थ के अपने व्यवहार से विद्यार्थियों को सही-गलत का ज्ञान कराता है। हर समाज में अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। क्योंकि समाज उन्हीं बच्चों से बनता है, जिन्हें शिक्षक परिपक्व बनाते हैं। श्रेष्ठ इंसान बनाने की जिम्मेदारी अध्यापक की होती है। इतिहास इसका गवाह है कि हर सफल इंसान की सफलता में गुरु की अहम भूमिका होती है। महाभारत में अर्जुन इसका उदाहरण हैं। चंद्र गुप्त मौर्य से लेकर स्वामी विवेकानंद तक गुरु के तराशे हुए हीरे हैं। आज पूरा विश्व चाणक्य और परमहंस की भूमिका के आगे नतमस्तक है। शिक्षक, व्यक्ति नहीं बल्कि एक शक्ति का स्वरूप है। वह अपने छात्रों में असीम ऊर्जा का संचार करता है। द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपना शिष्य स्वीकार नहीं किया था, क्योंकि वह एक निषाद के पुत्र थे। लेकिन एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मूर्ति को गुरु मानकर धर्नुविद्या का अभ्यास किया। निपुण बने। गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा त्यागने के बावजूद उन्होंने धर्नुविद्या में उंगलियों के प्रयोग से आधुनिक तकनीक का अविष्कार किया। हर कदम पर शिक्षक की जरूरत है। हम क्या बनेंगे यह भी शिक्षक पर निर्भर है। विद्यार्थियों की क्षमता परखकर शिक्षक उन्हें भविष्य में नई भूमिका के लिए तराशते हैं। शिक्षक की सराहना छात्र के लिए प्रेरणा होती है। वहीं, जब छात्र की सफलता से शिक्षक को अपार खुशी मिलती है। शिक्षक उस उपवन के माली हैं जिसकी देखरेख में देश का भविष्य पल्लवित होता है। अपने परिश्रम और तप से बच्चों के चरित्र निर्माण की क्षमता रखते हैं। उनमें श्रद्धा और विवेक की अखंड ज्योति जलाते हैं। शिक्षक इस समाज को राम-लक्ष्मण, नानक देव, जीसस आदि महापुरुषों के गुणों से अवगत कराकर अपने शिष्यों में ज्ञान का संचार करते हैं। शिक्षक हर देश के विकास की अहम कड़ी होते हैं। वह एक विकासशील, आदर्शवादी समाज का निर्माण करते हैं। शिक्षकों के योगदान, सम्मान-प्रयास की सराहना जरूरी है। इससे उनका हौसला बढ़ेगा। उनमें सुरक्षा की भावना पैदा करनी होगी ताकि वह अपना सौ फीसद विद्यार्थियों के विकास को दे पाएं। जन्म देने वाले और पालने वाले से ज्यादा महत्वपूर्ण शिक्षकों का दायित्व होता है। वह बच्चे को जीवन जीने की कला सिखाते हैं।

- शील सक्सेना, प्रधानाचार्य, जीआरएम स्कूल, डोहरा

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