फलक छूने का जज्बा, मगर नहीं बिछी शतरंज की बिसात

जिले में खिलाड़ियों की पौध तैयार होने में संसाधनों की कमी सबसे बड़ा गतिरोध है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 Jul 2022 12:54 PM (IST) Updated:Fri, 22 Jul 2022 12:54 PM (IST)
फलक छूने का जज्बा, मगर नहीं बिछी शतरंज की बिसात
फलक छूने का जज्बा, मगर नहीं बिछी शतरंज की बिसात

फलक छूने का जज्बा, मगर नहीं बिछी शतरंज की बिसात

श्लोक मिश्र, बलरामपुर : जिले में खिलाड़ियों की पौध तैयार होने में संसाधनों की कमी सबसे बड़ा गतिरोध है। हाकी, फुटबाल व ताइक्वांडो में जिले के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर भारत का परचम लहरा चुके हैं। शतरंज का खेल लोकप्रिय तो है, लेकिन इसकी बिसात बिछाने की पहल आज तक नहीं की गई। परिणाम, यह खेल घरों में शौक तक सिमट कर रह गया है। खिलाड़ियों को शतरंज की चाल सिखाने के लिए जिला खेल कार्यालय में कोई सुविधा नहीं है। एक निजी संस्था प्रतिवर्ष शतरंज प्रतियोगिता आयोजित करती है। इसमें प्रतिभाग के लिए खिलाड़ी ढूंढ़े नहीं मिलते। स्कूल-कालेजों में भी इस खेल को अधिक महत्व नहीं मिलता, जिससे यह खेल अपने वजूद को तरस रहा है। स्पोर्ट्स स्टेडियम में इनडोर हाल तो है, लेकिन शतरंज के प्रशिक्षक व संसाधन नहीं हैं। ऐसे में यहां के खिलाड़ी मन मसोस कर रह जाते हैं। खिलाड़ियों का छलका दर्द : अर्पित श्रीवास्तव का कहना है कि उसे शतरंज खेलना बहुत पसंद है। अपने बड़े भाई से शतरंज की कुछ चाल सीखी थी। कोई प्रशिक्षण केंद्र न होने से शतरंज की बारीकियों की जानकारी नहीं मिल पाती है। शतरंज को बढ़ावा न मिलने से उसके शौकीन खिलाड़ी सिर्फ घरों में सिमट कर रह गए हैं। इससे उनकी बौद्धिक क्षमता में निखार नहीं हो पा रहा है। मोइन खान का कहना है कि पिछले चार साल से पहलवारा निवासी शोभित चौधरी शतरंज प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मानकों की जानकारी न हो पाने से इसमें प्रतिभाग नहीं कर पा रहा हूं। स्कूलों में बच्चों को शतरंज के गुर भी सिखाए जाने चाहिए। ताकि खिलाड़ियों को प्रतियोगिताओं में अपनी क्षमता प्रदर्शन का अवसर मिल सके। निदेशालय से नहीं मान्यता : क्रीड़ाधिकारी दिनेश कुमार का कहना है कि शतरंज को खेल निदेशालय से मान्यता नहीं मिली है। विभाग में शतरंज का कोई कोच नहीं है। इस वजह से यहां शतरंज की गतिविधियां नहीं होती हैं।

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