एक खेत में पांच फसलें उगाकर प्रयागराज में इस गांव के किसान हो रहे मालामाल

मातादीन का पूरा गांव के किसानों के अनुसार इस पंचफसली खेती की बोआई जून के अंतिम और जुलाई के प्रथम सप्ताह में होती है। एक खेत में खीरा तरोई कद्दू करैला चौरा और सेम की बोआई की जाती है। खीरा तरोई कद्दू नेनुआ की बोआई कतार में की जाती है।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Tue, 24 Nov 2020 06:00 AM (IST) Updated:Tue, 24 Nov 2020 06:00 AM (IST)
एक खेत में पांच फसलें उगाकर प्रयागराज में इस गांव के किसान हो रहे मालामाल
इन फसलों पर सूखे और अधिक बारिश का विशेष फर्क नहीं पड़ता।

प्रयागराज, जेएनएन। कृषि पर सूखे की मार से किसान एक फसल की खेती के लिए भगवान भरोसे रहते हैं। ऐसे में पंजाब की तर्ज पर एक वर्ष में पांच फसलों की मॉडल खेती क्षेत्र में किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इस तरह की पंचफसली आधुनिक खेती से शांतिपुरम से सटे मातादीन का पूरा गांव के किसान मालामाल हो रहे हैं। इन फसलों पर सूखे और अधिक बारिश का विशेष फर्क नहीं पड़ता। यह खेती कृषि से जुड़े किसानों के लिए जीविकोपार्जन का एक अच्छा विकल्प है।

जून-जुलाई में की जाती है खेती

मातादीन का पूरा गांव के किसानों के अनुसार इस पंचफसली खेती की बोआई जून के अंतिम और जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है। एक खेत में खीरा, तरोई, कद्दू, करैला, चौरा और सेम की बोआई की जाती है। खीरा, तरोई, कद्दू व नेनुआ की बोआई कतार जबकि करैला, चौरा और सेम की बोआई बनाए गए मानक के अनुसार थालों में की जाती है। सभी पौधे एक फीट के हो जाते हैं तो खेत में फैला दिया जाता है। करैला, चौरा व सेम के पौधों के लिए टहनी गाड़कर उनको ऊपर की ओर चढ़ा दिया जाता है। जब यह पौधे टहनी के ऊपर चढ़ जाते हैं तो करीब पांच फीट ऊपर बांस-बल्ली गाड़कर तार की जाल तैयार की जाती है जिस पर पौधे जाल पर पूरे खेत पर फैल जाते हैं। सबसे पहले खीरा फिर तरोई व नेनुआ, कद्दू की फसल तैयार होती है। खास बात यह है कि खीरा के बाद नेनुआ व तरोई उसके बाद कद्दू की फसल पैदावार देने के बाद स्वत: समाप्त हो जाती है। ऊपर जाल पर फैली करैला, चौरा और सेम में करैला और चौरा की फसल समाप्त होने के बाद पूरे जाल पर सेम की फसल फैलकर फल देने शुरू कर देती है। यह मार्च तक चलता है। 

बोले किसान

गांव के गामालाल, मक्खन, राम बरन, पुरूषोत्तम आदि किसान का कहना है कि एक बीघे की खेती में खाद, कीटनाशक दवाएं, बांस-बल्ली, तार आदि में 20-25 हजार तक खर्च हो जाते हैं। जबकि आमदनी 70-80 हजार रुपये तक की होती है। प्रशासन ध्यान दे तो लागत और कम की जा सकती है। 

बदल गए दिन

गांव की जनसंख्या चार हजार है और सभी किसानों का जीवन स्तर दिनोंदिन सुधर रहा है। शिक्षा के प्रति जागृति आई है। किसानों के बच्चे बाहर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। कई के पास ट्रैक्टर और खेती के संसाधन हैं। 95 फीसद के पास मकान पक्के हैं। किसान बेटियों की शादी अच्छे से कर रहे हैं।

जिला कृषि अधिकारी का है कहना

जिला कृषि अधिकारी डॉ. अश्विनी कुमार सिंह का कहना हैै कि फसली एक मॉडल खेती है। इसे किसान गोष्ठी और चौपाल के माध्यम से जागरूक कर प्रदेश सरकार की ओर से बढ़ावा दिया जा रहा है। कृषि से संबंधित यंत्रों की खरीदारी पर छूट देकर उनका उत्साहवर्धन किया जाएगा।

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