Death anniversary of Firaq Gorakhpuri : मां की गोद की तरह है रामचरित मानस, कहते थे फिराक

यश मालवीय बताते हैं कि बैंक रोड पर स्थित फिराक साहब का आवास अपने आप में साहित्य तीर्थ हुआ करता था। इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद रामस्वरूप चतुर्वेदी रघुवंश विजयदेव नारायण शाही गोपीकृष्ण गोपेश जैसे दिग्गज बैंक रोड पर रहा करते थे। फिराक साहब के घर पर इनकी महफिल जमा करती थी।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Wed, 03 Mar 2021 01:00 PM (IST) Updated:Wed, 03 Mar 2021 04:17 PM (IST)
Death anniversary of Firaq Gorakhpuri : मां की गोद की तरह है रामचरित मानस, कहते थे फिराक
फिराक साहब कहते थे कि जब मुझे मां की गोद की तलब होती है मैं रामचरितमानस के पास जाता हूं।

प्रयागराज, जेएनएन। फिराक उपनाम से मशहूर अजीम शायर रघुपति सहाय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे। हाजिर जवाब फिराक को लेकर कई किस्से-कहानियां कही और सुनी जाती हैं। उन पर हिंदी विरोधी होने का आरोप भी अक्सर लगाया जाता है लेकिन कई मौकों पर उन्होंने हिंदी से प्रेम का इजहार भी किया है। तुलसीकृत रामचरित मानस को तो वे मां की संज्ञा देते थे। फिराक से रूबरू हो चुके शहर के वरिष्ठ साहित्यकार यश मालवीय कहते हैं फिराक साहब कहते थे कि जब मुझे मां की गोद की तलब होती है तो मैं रामचरितमानस के पास जाता हूं। आइये सुनते हैं फिराक की कहानी यश मालवीय की जुबानी...।

अपने जीवनकाल में ही किवदंती बन गए थे फिराक
यश मालवीय कहते हैं कि फिराक साहब अपनी शेरो-शायरी और बिंदास जीवन शैली के चलते जीवनकाल में ही किवदंती बन गए थे। एक बार प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका सारिका के लिए मेरे पिता उमाकांत मालवीय जी ने फिराक साहब से उनके जीवन के अंतिम वर्षों में विस्तृत संवाद किया था तो पिता के साथ मैं भी बैंक रोड पर स्थित उनके आवास पर गया था। उस समय उन्हें करीब से देखने और जानने का मौका मिला था।

बैंक रोड स्थित उनका घर होता था साहित्यकारों का तीर्थ
यश मालवीय बताते हैं कि उन दिनों बैंक रोड पर स्थित फिराक साहब का आवास अपने आप में साहित्य तीर्थ हुआ करता था। इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद, रामस्वरूप चतुर्वेदी, रघुवंश, विजयदेव नारायण शाही, गोपीकृष्ण गोपेश जैसे दिग्गज बैंक रोड पर रहा करते थे। फिराक साहब के घर पर इन सबकी महफिल जमा करती थी। ऐसी ही किसी महफिल में फिराक साहब के मुंह से निकले यह शेर मुझे आज भी याद है।
'यूं मुद्दतों जिया हूं किसी दोस्त के बगैर
अब तुम भी साथ छोडऩे की कह रहे हो खैर।
'तर दामनी पे शेख हमारे न जाइयो
दामन निचोड़ दूं तो फरिश्ते वुजू करें।

शामे गम कुछ उस निगाहे नाज की बातें करो,
बेखुदी बढ़ती चली है रात की बातें करो।

उन्हें भाषा की कृत्रिमता से थी नफरत, हिंदी से नहीं
उन्हेंं आमतौर पर हिंदी विरोधी कहा जाता है,जबकि कतई ऐसा नहीं था। उनकी और महाप्राण निराला की मैत्री अद्भुत और अप्रतिम थी। आग्रह करके निराला जी से वे राम की शक्ति पूजा सुना करते थे और सुनते समय उनकी आखों से अश्रुधार बह निकलती थी। उन्हेंं भाषा की कृत्रिमता से नफरत थी। वह संस्कृतनिष्ठ हिंदी और फारसीनिष्ठ उर्दू पसंद नहीं करते थे। हिंदुस्तानी जुबान के कायल थे। बोलचाल की जुबान ही उनकी शायरी का भी सच है। वे कहते थे कि जब मुझे मां की गोद की तलब होती है तो मैं रामचरित मानस के पास जाता हूं।

सही बात कहने में नहीं करते थे कभी संकोच
यश बताते हैं कि वे सीएवी इंटर कॉलेज में पढ़ते थे और साहित्य मंत्री थे। एक बार कॉलेज में कवि सम्मेलन और मुशायरा आयोजित कराया था। मंच पर बाबा नागार्जुन भी थे। नाश्ते आदि के लिए जब फिराक साहब को ऊपर छत की ओर ले जा रहा था तो सीढिय़ों पर जीरो पॉवर का बल्ब जल रहा था और उसके इर्द-गिर्द मकड़ी ने जाले बना रखे थे। यह देखकर उन्होंने कहा था कि ये कहां ले आए बेटा, इससे ज्यादा रोशनी तो नरक में होती है। शायर एहतराम इस्लाम देर से पहुंचे थे तब तक फिराक साहब कलाम पढ़ चुके थे। एहतराम भाई अपनी गजलें पढऩे में संकोच कर रहे थे तो फिराक साहब ने कहा कि भाई जब मेरे बाद तुमने पैदा होने में संकोच नहीं किया तो कविता सुनाने में भला कैसा संकोच। बहुत सारे किस्से हैं, उन्हीं के शेर से उन्हें याद करता हूं।
शाम भी थी धुआं-धुआं, हुस्न भी था उदास-उदास,
दिल को कई कहानियां याद सी आके रह गईं।

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