इलाहबाद हाई कोर्ट का निर्देश : पति या पत्नी को बिना तलाक लिव इन रिलेशन में रहना अवैध

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि बिना तलाक दिये पति या पत्नी से अलग होकर लिव इन रिलेशन में रहने वालों को कोर्ट संरक्षण नहीं दे सकती है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Publish:Tue, 25 Feb 2020 04:25 PM (IST) Updated:Tue, 25 Feb 2020 04:26 PM (IST)
इलाहबाद हाई कोर्ट का निर्देश : पति या पत्नी को बिना तलाक लिव इन रिलेशन में रहना अवैध
इलाहबाद हाई कोर्ट का निर्देश : पति या पत्नी को बिना तलाक लिव इन रिलेशन में रहना अवैध

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशन में रहने वालों विवाहित या विवाहिता के लिए के लिए सख्त निर्देश दिया है। हाई कोर्ट ने ऐसी ही एक प्रकरण में तीन बच्चों की माँ को सुरक्षा व संरक्षण देने से इंकार कर दिया है। 

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि बिना तलाक दिये पति या पत्नी से अलग होकर लिव इन रिलेशन में रहने वालों को कोर्ट संरक्षण नहीं दे सकती है। इस आधार पर कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति भारती सप्रू तथा न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने श्रीमती अखिलेश व जितेन्द्र की याचिका पर दिया है।

इस मामले में याची अखिलेश की शादी रामपुर के धुलिका धरमपुर के जगतपाल के साथ हुई। इनके तीन बच्चे हैं। पति के शराब पीकर मारपीट करने व कमाकर लाने को कहने से आजिज आकर याची मुरादाबाद के विवाहित शादीशुदा जितेन्द्र के साथ रहने लगी।

श्रीमती अखिलेश ने कोर्ट को बताया कि वह जितेन्द्र के साथ लिव इन रिलेशन में है। उसे धमकाया जा रहा है। जितेन्द्र ने पूछने पर कोर्ट से कहा कि उसकी मर्जी के खिलाफ परिवार वालों ने उसकी शादी की है। इसी कारण वह याची के साथ रह रहा है। कोर्ट ने कहा कि बिना तलाक दिये पति या पत्नी को छोड़कर दूसरे के साथ लिव इन रिलेशन में रहना अवैध है। ऐसे में कोर्ट संरक्षण नही दे सकती। इस तरह के प्रकरणों से समाज में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट यह पहले ही कह चुका है कि लिव इन रिलेशनशिप अपराध तथा पाप है। विवाहित होते हुए लिव इन में रहना अवैध होगा। इससे पहले भी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव इन संबंधों को लेकर अहम फैसला दिया था। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि विवाहित महिलाएं, किसी दूसरे पुरुष (जो उसका पति हो) के साथ 'लिव इन रिलेशन' में नहीं रह सकतीं। यानी शादीशुदा महिला का ऐसे संबंधों में रहना अवैध है। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि ऐसे संबंध में विवाहिता का रहना अवैध है।

केवल बालिग और अविवाहित लड़कियां ऐसे संबंधों में रह सकती हैं, पर नैतिक दृष्टि से यह भी सही नहीं है। यह फैसला जस्टिस सुनित कुमार ने मिर्जापुर की कुसुम और अन्य की याचिका पर सुनाया था। कुसुम की पहले ही शादी हो चुकी थी, पर यह उसकी मर्जी के बिना हुई थी। पर वह कई वर्षों से अपने प्रेमी के साथ रह रही है। इन दोनों को इस संबंध में रहने में कोई दिक्कत नहीं थी पर परिवार वाले इन्हें परेशान कर रहे थे, इसलिए उन्होंने न्यायालय में सुरक्षा दिलाने का आवेदन दिया था। 

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