लड़की हूं लड़ सकती हूं: कांग्रेस से कोई महिला नहीं बनी विधायक, जाने विस्‍तार से

नया प्रयोग कितना सफल होता हैयह देखने वाली बात होगी। बहरहाल चार सीटों-शहर कोल अतरौली बरौली पर घोषित प्रत्याशियों में कोई महिला नहीं। खैर इगलास व छर्रा पर घोषणा होनी बाकी है। महिला दावेदार लखनऊ से लेकर दिल्ली तक दौड़ रही हैं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Sun, 16 Jan 2022 06:40 AM (IST) Updated:Sun, 16 Jan 2022 06:40 AM (IST)
लड़की हूं लड़ सकती हूं: कांग्रेस से कोई महिला नहीं बनी विधायक, जाने विस्‍तार से
‘लड़की हूं लड़ सकती हूं।’ यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यही नारा दिया है।

अलीगढ़, विनोद भारती। ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं।’ यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यही नारा दिया है। 40 फीसद सीटें महिलाओं को देने का एलान किया है। पहली सूची में काफी महिलाओं को प्रत्याशी घोषित भी किया है, लेकिन अतीत को टटोलें तो कांग्रेस ने अब तक चार बार ही महिला प्रत्याशियों पर दांव खेला। तीन बार इगलास से और एक बार खैर सीट से। चारों बार ही हार हुई। तीन बार तीसरे व एक बार दूसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा। अब तक कोई महिला विधायक नहीं बनींं। राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का महिलाओं को लेकर नया प्रयोग कितना सफल होता है,यह देखने वाली बात होगी। बहरहाल, चार सीटों-शहर, कोल, अतरौली, बरौली पर घोषित प्रत्याशियों में कोई महिला नहीं। खैर, इगलास व छर्रा पर घोषणा होनी बाकी है। महिला दावेदार लखनऊ से लेकर दिल्ली तक दौड़ रही हैं।

1962 में पहली बार महिला प्रत्याशी

आजादी के बाद 1951 व 1957 में कांग्रेस ने किसी महिला प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया। वर्ष 1962 में बतौर प्रयोग पहली इगलास सीट से हरीश कुमारी (रानी) को चुनाव लड़ाया। जनसंघ के सोरन लाल शर्मा व निर्दलीय श्योदान सिंह से सीधा मुकाबला हुआ। निर्दलीय प्रत्याशी श्योदान सिंह ने 9770 मत पाकर जीत हासिल की। दूसरे नंबर पर सोरनलाल शर्मा (7693 मत) व तीसरे पर हरीश कुमारी (7264 मत) रहीं। चुनाव में कुल 45448 वैध मत पड़े थे।

1980 में उषा रानी पर दांव

हरीश कुमारी की हार के बाद कांग्रेस ने 1967, 1969 व 1974 के चुनाव में किसी महिला प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया। 18 साल बाद 1980 में चुनाव हुआ। जनता पार्टी का कुनबा बिखरा गया था। नवगठित भाजपा ने पहली बार प्रत्याशी उतारे। हाईकमान ने इकमात्र इगलास सीट से उषा रानी पर दांव खेला। इस चुनाव में भाजपा पहली बार मैदान में उतरी थी। खैर, बरौली, कोल व अतरौली सीट तो भाजपा ने जीत ली, लेकिन इगलास सीट फिर हाथ से चली गई। जनता पार्टी (सेक्युलर) प्रत्याशी राजेंद्र सिंह (32 हजार 220 मत) चुनाव जीते। उषा रानी (30 हजार 774) कड़ी टक्कर देने के बाद दूसरे स्थान पर रही। भाजपा सातवें स्थान पर रही।

1991 में फिर उषा रानी पर भरोसा

कांग्रेस के लिए 1962 व 1980 में महिला प्रत्याशी उतारने का अनुभव अच्छा नहीं रहा, लेकिन 1991 के चुनाव में रामलहर शुरू हो गई। कांग्रेस की हालत थी। उषा रानी ने फिर टिकट मांगा। पार्टी ने उन्हें इगलास की बजाय खैर से टिकट थमाया, क्योंकि इगलास में चौ. चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती (जनता दल) से मैदान में थीं। खैर में भी उषा रानी (मात्र 10 हजार 237 मत) की करारी हार हुई। चुनाव में भाजपा प्रत्याशी चौ. महेंद्र सिंह (33 हजार 736 मत) विजयी हुई। जनता दल प्रत्याशी जगवीर सिंह (28 हजार 344 मत) दूसरे स्थान पर रहे। इगलास में जनता दल प्रत्याशी के रूप में ज्ञानवती ने जीत हासिल की।

2007 में राकेश चौधरी की हार

1991 की हार के बाद कांग्रेस ने 26 साल तक किसी महिला प्रत्याशी पर दांव नहीं खेला। 2007 में कांग्रेस इगलास सीट पर तीसरी बार महिला प्रत्याशी के रूप में राकेश चौधरी को चुनाव लड़ाया। उनकी भी करारी हार हुई। दरअसल, इस चुनाव में रालोद व भाजपा ने भी महिला कार्ड खेला। रालोद प्रत्याशी बिमलेश सिंह (53 हजार 522 मत) ने शानदार जीत हासिल की। दूसरे स्थान पर बसपा के मुकुल उपाध्याय (46 हजार 822 मत) दूसरे स्थान व कांग्रेस प्रत्याशी राकेश चौधरी (21 हजार 274 मत) तीसरे स्थान पर रह गईं। इसके बाद कांग्रेस ने फिर महिला प्रत्याशियों से दूरी बना ली। कोई मजबूत महिला प्रत्याशी भी नहीं मिलीं।

chat bot
आपका साथी