World tribal day 2020: आदिवासी बेटियों का अंधकार मिटा रहा ताजनगरी का एक डॉक्टर

World tribal day 2020 स्वतंत्रता सेनानी पिता के बेटे डॉ पंकज भाटिया बीते दो दशक से आदिवासी बेटियों को शिक्षित बनाने की मुहिम छेड़े हुए हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Sun, 09 Aug 2020 04:59 PM (IST) Updated:Sun, 09 Aug 2020 04:59 PM (IST)
World tribal day 2020: आदिवासी बेटियों का अंधकार मिटा रहा ताजनगरी का एक डॉक्टर
World tribal day 2020: आदिवासी बेटियों का अंधकार मिटा रहा ताजनगरी का एक डॉक्टर

आगरा, जागरण संवाददाता। एमबीबीएस की पढ़ाई और उच्च शिक्षित पत्नी। वह चाहते तो किसी बड़े शहर की राह पकड़ते। मगर, उन्होंने आदिवासी बेटियों के भविष्य को बेहतर बनाने की कठिन राह चुनी। स्वतंत्रता सेनानी पिता का डॉक्टर बेटा बीते दो दशक से आदिवासी बेटियों को शिक्षित बनाने की मुहिम छेड़े हुए हैं। इसके लिए पहले आदिवासी और नक्सल इलाकों की खाक छानीं। अब आगरा में ही इन बच्चियों को रखकर उनका अंधकार मिटा रहे हैं।

डॉ. पंकज भाटिया मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ही कुछ ऐसे लोगों के संपर्क में आए जो वंचित तबके के लिए काम करते थे। एमबीबीएस की डिग्र्री के बाद वह अखिल भारतीयवासी कल्याण आश्रम से जुड़ गए और काम के लिए ओडि़शा के फूलबनी इलाके को चुना। इसके बाद नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा इलाके में आदिवासियों के गांवों में काम किया। पंकज बताते हैं कि इन गांवों में अशिक्षा का अंधेरा देखा। बेटियों की दशा देख उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया। इसके लिए कई किलोमीटर पैदल चलते थे। दो साल बाद वहां से तो चले आए, लेकिन काम को जारी रखा। आदिवासी इलाके से बेटियों को चुनते और उन्हें रुद्रपुर(उत्तराखंड) के वनवासी छात्रावास में पढ़ाते। चार साल पहले उन्होंने बाइपास पर वनवासी कल्याण छात्रावास शुरू किया। छात्रावास को 30 लोगों की समिति चलाती है। यहां इस समय बिहार, झारखंड, पूर्वोत्तर राज्यों और नेपाल की 20 लड़कियां यहां रहकर उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं।

कौन है डॉ. पंकज

आगरा के कमला नगर निवासी पंकज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महेंद्र भाटिया के बेटे हैं। आगरा एसएन मेडकिल कॉलेज से एमबीबीएस किया। वर्ष 1987 में उन्होंने समाजशास्त्री अनुराधा भाटिया से शादी की। डॉ. पंकज के काम में उनकी पत्नी अनुराधा का भी साथ मिला है।

रॉल मॉडल बन गईं रीमित और पुष्पा

रोमित और पुष्पा डॉ. पंकज की मेहनत का मुकाम हैं। पांच साल की आयु में रीमित और आठ साल की उम्र में पुष्पा को डॉ. पंकज अपने साथ आगरा लाए और रुद्रपुर में पढऩे की व्यवस्था की। सिक्किम के जिला मंगन की रहने वाली रीमित लेपचा के माता-पिता मजदूरी करते थे। रीमित आज एम.कॉम और होटल मैनेजमेंट कर गांव लौट चुकी है। वह सिक्किम के मंगन जिले में लड़कियों को शिक्षित और अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए जागरूक कर रही हैं। पुष्पा मुंडा की मां असोम के चाय बागान में मजदूरी थी। एम.कॉम के बाद आज वह अपने गांव के हाईस्कूल में शिक्षिका है।

' छात्रावास में पढऩे वाली बच्चियां उन्हें मां की तरह मानती हैं। सारी बच्चियों की निश्शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। उन्हें गर्व है कि वह ऐसे काम से जुड़ी हैं।

- अनुराधा, डॉ. पंकज की पत्नी

'मेडिकल की पढ़ाई के दौरान उनके पास ओडिशा के कुष्ठ आश्रम में रहने वाले लोगों की सहायता के लिए टिकट बिकने आते थे। इन टिकट को बेचने के दौरान उन्होंने समाज के वंचित लोगों के लिए कुछ करने का मन बनाया। तब से यह मुहिम जारी है।

- डॉ. पंकज

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