Janmashtmi 2020: ब्रज का अनूठा मंदिर जहां दिन में होता है कान्हा का जन्म

Shri Krishna Janmashtmi 2020 गोपाल भट्ट गोस्वामी ने दिन में प्रकट किए थे वृंदावन में राधारमण लालजू।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Sat, 08 Aug 2020 06:50 PM (IST) Updated:Sat, 08 Aug 2020 06:50 PM (IST)
Janmashtmi 2020: ब्रज का अनूठा मंदिर जहां दिन में होता है कान्हा का जन्म
Janmashtmi 2020: ब्रज का अनूठा मंदिर जहां दिन में होता है कान्हा का जन्म

आगरा, जेएनएन। भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में जन्म लिया और दूसरे दिन जन्मोत्सव की खुशियां गोकुल में मनाई गईं। मथुरा-गोकुल सहित देश दुनिया में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव रात में होता है। ब्रज में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां कन्हैया का जन्मदिन दिन में मनाया जाता है। वृंदावन के ठा. राधारमण मंदिर में आराध्य श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव दिन में मनाया जाता है। इसके पीछे तर्क है ठा. राधारमणलालजू भोर में प्रकट हुए थे। इसलिए दिन में ही आराध्य का जन्मोत्सव मनाने की परंपरा है। मंदिर में 12 अगस्त को सुबह 9 बजे ठाकुरजी का सवामन दूध, दही, घी समेत पंचामृत व जड़ी-बूटियों से महाभिषेक होगा।

निधिवन राज मंदिर के समीप स्थित ठा. राधारमण मंदिर में मान्यता है कि करीब 476 वर्ष पहले चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी के प्रेम के वशीभूत होकर ठा. राधारमणलालजू शालिग्राम शिला से वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की प्रभातबेला में प्रकट हुए थे। मंदिर सेवायत वैष्णवाचार्य अभिषेक गोस्वामी ने बताया आचार्य गोपाल भट्ट की इच्छा शालिग्राम शिला में ही गोङ्क्षवददेव जी का मुख, गोपीनाथजी का वक्षस्थल और मदनमोहनजी के चरणारङ्क्षवद के दर्शन की थी। बताया कि भगवान नृङ्क्षसहदेव के प्राकट््य दिवस पर आचार्य गोपालभट्ट गोस्वामी ने अपने आराध्य से यह इच्छा जताई। इस पर आचार्य गोपाल भट्ट की साधना से प्रसन्न होकर वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की भोर में शालिग्राम शिला से ठा. राधारमणलालजू का प्राकट््य हुआ। तब से भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट््योत्सव भी दिन में ही मनाया जाता है। यह परंपरा खुद आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी ने ही शुरू की।

मंदिर की रसोई का ही अर्पित होता है प्रसाद 

राधारमण मंदिर की रसोई में सेवायत खुद अपने हाथ से ठाकुरजी का प्रसाद तैयार करके भोग में अर्पित करते हैं। मंदिर की रसोई में किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है।

माचिस का नहीं होता प्रयोग

मंदिर की परंपरा के अनुसार किसी भी कार्य में माचिस का प्रयोग नहीं होता। पिछले 476 साल से मंदिर की रसोई में प्रज्वलित अग्नि से ही रसोई समेत अनेक कार्य संपादित होते हैं।  

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