Taj Mahal: यमुना के पानी से चलते थे ताज के फुव्वारे, आज भी यहां मौजूद है इतिहास की वो निशानी
Taj Mahal ताजमहल के पास बाग खान-ए-आलम में है जल प्रणाली। रहट से ताज के लिए यमुना का पानी लिफ्ट किया जाता था। जहांगीर के दरबारी का है मकबरा अफीम का था लती। मौत के बाद उसके लगवाए बाग में ही दफन कर दिया गया था।
आगरा, जागरण संवाददाता। ताजमहल में लगे फुव्वारे कभी यमुना के पानी से चला करते थे। रहट से यमुना का पानी लिफ्ट किया जाता था। ऊपर से तेजी के साथ जब पानी नीचे आता था तो फुव्वारे एक साथ चल उठते थे। आज भले ही फुव्वारे भूगर्भ जल से चलते हों, लेकिन प्राचीन जल प्रणाली बाग खान-ए-आलम और ताजमहल की पश्चिमी दीवार के मध्य में अब भी है। खान-ए-आलम जहांगीर का दरबारी था, जिसे मौत के बाद उसके लगवाए बाग में ही दफन कर दिया गया था।
ताजमहल के पश्चिमी गेट से यमुना किनारा की तरफ बसई घाट तक एक मार्ग जाता है। यहां करीब छह दशक पूर्व तक घाट अस्तित्व में था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा ताजमहल की दीवार से टकराते यमुना के पानी को रोकने के लिए पत्थरों का रोका लगाए जाने से घाट दब गया। बाग खान-ए-आलम में एएसआइ की उद्यान शाखा ने नर्सरी बना रखी है। बाग अौर ताजमहल की पश्चिमी दीवार के बीच में ताजमहल की प्राचीन जल प्रणाली है, जो यमुना किनारा से शुरू होकर ताजमहल की पश्चिमी दीवार से जुड़ी है। मुगल काल में रहट से यमुना का पानी लिफ्ट कर वाटर चैनल में पहुंचाया जाता था। वाटर चैनल से होता हुआ पानी ओवरहैड टैंक तक पहुंचता था। टैंक से जब यह पानी छोड़ा जाता था तो उसके दबाव से ताजमहल में लगे हुए सभी फुव्वारे चलने लगते थे। ताजमहल के फुव्वारे वर्षों से यमुना के पानी से नहीं चल रहे हैं। अब टंकी में सबमर्सिबल से पानी भरा जाता है और उसी से फुव्वारे चलते हैं।
जहांगीर का दरबारी था खान-ए-आलम
इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब 'द कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवरफ्रंट गार्डन्स आफ आगरा' में लिखा है कि खान-ए-आलम एक तूरानी (मध्य एशियाई) था। वो जहांगीर के दरबार में पांच हजार का मनसबदार था। जहांगीर ने उसे वर्ष 1609 में खान-ए-आलम की उपाधि दी थी। दो वर्ष बाद उसे ईरान के शाह अब्बास के दरबार में राजदूत के रूप मेें उपहारों के साथ भेजा गया था। वो शाहजहां के दरबार में भी रहा। वर्ष 1632 में अधिक उम्र व अफीम की लत के चलते वो सेवानिवृत्त हो गया था। उसने ताजमहल की पश्चिमी दिशा में बाग लगवाया था। उसकी मृत्यु के बाद बाग में ही उसे दफन कर दिया गया था। बाग में यमुना के तट पर भवन और तहखाना बना हुआ है। एएसआइ ने यहां संरक्षण कराया था, लेकिन भवन की छत नहीं बनाई जा सकी। इसकी वजह छत के पुराने साक्ष्य उपलब्ध नहीं होना था। यहां एक चबूतरे पर कई कब्रें हैं, लेकिन कोई शिलालेख न होने से यह जानकारी नहीं मिलती कि यहां बनीं कब्रें किसकी हैं?
ब्रिटिश काल में कर दिया था नीलाम
इतिहासविद राजकिशोर राजे ने अपनी किताब तवारीख-ए-आगरा में बाग खान-ए-आलम की नीलामी का जिक्र किया है। राजे लिखते हैं कि वर्ष 1898 में अंग्रेजों ने बाग को अलीगढ़ के एक धनी व्यक्ति को बेच दिया था। उसने जब बाग में खोदाई शुरू कराई तो ताजमहल की जलापूर्ति व्यवस्था भंग हो गई। बाद में उस धनी व्यक्ति ने बाग को एक वेश्या को चार हजार रुपये में बेच दिया था। आगरा के तत्कालीन अंग्रेज कमिश्नर रोज ने बाग को वापस हासिल किया और एएसआइ को सौंप दिया। खान-ए-आलम का नाम मिर्जा बरखुरदार था।