Baisakhi 2020: मुगलिया इतिहास ही नहीं सिखों का सुनहरा अतीत भी जुड़ा है आगरा से

गुरु गोविंद सिंह महाराज बहादुर शाह के साथ लाल किले में दीवान ए आम में घोड़े पर सवार होकर बहादुर शाह को ताजपोशी करने को पहुंचे थे।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Mon, 13 Apr 2020 09:35 AM (IST) Updated:Mon, 13 Apr 2020 09:35 AM (IST)
Baisakhi 2020: मुगलिया इतिहास ही नहीं सिखों का सुनहरा अतीत भी जुड़ा है आगरा से
Baisakhi 2020: मुगलिया इतिहास ही नहीं सिखों का सुनहरा अतीत भी जुड़ा है आगरा से

आगरा, आदर्श नन्दन गुप्त। सूर, कबीर, नजीर कि यह धरती सिख संतों के चरण रज से धन्य हुई है। गुरुओं के प्रताप से आगरा का सिख समाज संपूर्ण देश में साहस व उद्यमिता का संदेश देता है । प्रमुख गुरुद्वारा में जहां गुरुओं के संदेश दिए जा रहे है, वहीं गुरुवाणी के गायन से जन-जन कोई सुख शांति के लिए प्रार्थना की जाती है । सिख संगत ने अपनी मेहनत से इस शहर में अपना वर्चस्व कायम किया हुआ है । शिक्षा, व्यापार का अथवा आध्यात्मिक क्षेत्र हो, सभी में अपनी अनमोल प्रतिभा प्रदर्शित की है।

गुरुओं के पड़े चरण

गुरुद्वारा गुरु का ताल के गुरुनाम सिंह के अनुसार श्री गुरु नानक देव महाराज दक्षिण की पहली यात्रा के दौरान वापसी समय वर्ष 1509 से 1510 ईस्वी में आगरा आए। श्री गुरु हरगोबिंद साहिब वर्ष 1612 ईस्वी में आगरा पधारे। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब वर्ष 1675 ईस्वी में आगरा आगमन हुआ। श्री गुरु गोविंद सिंह जी वर्ष 1707 ईस्वी में आगरा पधारे। आगरा शहर का सिख धर्म से एक विशेष नाता रहा है। आगरा शहर में सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव, सिखों के 6 वे गुरु गुरु हरगोबिंद साहिब, सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर साहिब और सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी आगरा की धरती पर पधारे । इसलिए आगरा की धरती का सिख इतिहास के साथ काफी गहरा संबंध है। इसके साथ साथ सिखों के प्रसिद्ध विद्वान भाई नंद लाल और भाई गुरदास भी आगरा रहकर सिखों का प्रचार किया करते थे, जिसका की असर आज भी आगरा की धरती पर देखने को मिलता है। आज आगरा में जहां गुरु नानक देव आए वहां गुरुद्वारा दुख निवारण नया बांस लोहा मंडी, जहां गुरु हरगोबिंद साहिब आये, वहां गुरुद्वारा दमदमा साहिब और जहां गुरु तेग बहादुर साहिब पधारे, वहां गुरुद्वारा माईथान है। जहां गुरु गोविंद सिंह का आगमन हुआ , वहां गुरुद्वारा हाथी घाट है। जहां गुरु तेग बहादुर साहिब के चरण पड़े, वह गुरुद्वारा दुख निवारण गुरु का ताल है ।

गुरु गोविंद सिंह का आगरा की धरती से एक गहरा नाता है। बहादुर शाह की मदद के लिए गुरु गोविंद सिंह ने आगरा में तारा आजम के साथ जंग कर बहादुर शाह को राज दिलवाया था। बहादुर शाह ने गुरु गोविंद सिंह जी को खुदा का रूप जानते हुए एक सैफ नामा शास्त्र भेंट किया जो कि आज भी तखत श्री आनंदपुर साहिब में शोभायमान है। रोज शाम को उस शास्त्र के दर्शन करवाए जाते हैं। सभी को बताया जाता है कि यह शास्त्र गुरु गोविंद सिंह को बहादुर शाह ने आगरा के किले में भेंट किया था। गुरु गोविंद सिंह आगरा में लगभग पौने दो महीने रहे। गुरु गोविंद सिंह महाराज बहादुर शाह के साथ लाल किले में दीवान ए आम में घोड़े पर सवार होकर बहादुर शाह को ताजपोशी करने को पहुंचे थे।

आगरा के प्रमुख गुरुद्वारे

शहर में 40 गुरुद्वारा है, इनमें चार गुरुद्वारा ऐतिहासिक हैं

- गुरुद्वारा लोहामंडी में पहले गुरु नानक देव जी महाराज आए थे।

- गुरुद्वारा दमदमा साहिब में छठे गुरु हरगोविंद साहिब पधारे थे।

- गुरुद्वारा माईथान में माता जस्सी ने नवें गुरु तेगबहादुर को कपड़े का थान दिया था, तभी से इसका नाम माईथान पड़ गया।

- गुरुद्वारा गुरु का ताल में मंजी साहिब से गुरु तेग बहादुर साहिब ने गिरफ्तारी दी थी।

- हाथीघाट गुरुद्वारा में दसवें गुरु गोविंद सिंह महाराज के पावन चरण पड़े।

सिख विद्यालय

- दीवान बहादुर खालसा इंटर कॉलेज, (डीवी खालसा ), प्रतापपुरा

- गुरुतेग बहादुर स्कूल, माईथान

- गुरुनानक बाल विद्यालय, काछीपुरा

सिख बाहुल्य क्षेत्र

बालूगंज, छीपीटोला, बुन्दूकटरा, मधु नगर,बल्केश्वर।

मुख्य व्यवसाय

पहले ज्यादातर लोग ट्रांसपोर्ट का काम करते थे। यहाँ से देशभर में ट्रक जाते थे। अब शूज एक्सपोर्ट सहित बडे बडे उद्योग से जुड़े हैं।

खालसा पंथ की स्थापना की बहुत बहुत बधाई। सभी पर गुरु महाराज कृपा बनाए रखें। सभीजन घर पर बैठ कर गुरु महाराज की अरदास करें।

सन्त प्रीतम सिंह, प्रमुख सन्त, गुरुद्वारा गुरु का ताल

आगरा सन्तों धरती है। आगरा का गुरुद्वारा गुरु का ताल, प्रदेश में सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण है, जहाँ मत्था टेकने दूर दूर से संगत आती है।

गुरुनाम सिंह गुरुद्वारा गुरु का ताल

आजादी के बाद से सिख समाज देश के विकास में लगा है। अपने साहस के कारण पूरे देश में ही नही पूरे विश्व मे आगरा के सिख समाज गौरव बढ़ा रहा है।

नरेंद्र सिंह खनूजा, समाजसेवी

यह रबी की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है। इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। 

कवलदीप सिंह, प्रधान, सिख समाज की केंद्रीय संस्था, श्री गुरुं सिंह सभा।

आगरा में सिखों का योगदान किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है। ज्यादातर तो ट्रांसपोर्ट और अब फुटवियर इंडस्ट्री के अलावा स्पोर्ट्स में भी जगवीर सिंह, हरदीप सिंह हीरा,मलकीत सिंह , हरविजय सिंह वाहिया का ने शहर को गौरवान्वित की है।

बंटी ग्रोवर, सामाजिक कार्यकर्ता

वैसाखी पंजाब का मुख्य त्योहार है जिसे पंजाब का किसान को फसल पकने की खुशी में मनाता है। खालसा पंथ के स्थापना दिवस भी इसी दिन हुई थी। इस खुशी में हर जगह मेले होते हैं। नवजात शिशु को अमृत छकाया जाता है।आगरा का सिख समाज इस बहुत भव्यता ओर श्रद्धा से मनाता है।

रानी सिंह , प्रधान स्त्री सिंह सभा, आगरा 

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