आदिवासियों के प्रसिद्ध धाम बेणेश्वर की 400 साल पुरानी कलाकृतियों होंगी संरक्षित

आदिवासियों के प्रसिद्ध धाम बेणेश्वर की 400 साल पुरानी कलाकृतियों होंगी संरक्षित। तैयार की जाएगी रेप्लिका जनजाति कला-संस्कृति के संरक्षण के तहत पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र ने डिजिटलाइजेशन कार्य किया शुरू। डिजीटलाइजेशन के बाद कलाकारों के माध्यम से इसकी प्रतिकृतियां तैयार करवाते हुए शिल्पग्राम में इनकी प्रदर्शनी लगाई जाएगी।

By Priti JhaEdited By: Publish:Wed, 26 Jan 2022 12:31 PM (IST) Updated:Wed, 26 Jan 2022 12:31 PM (IST)
आदिवासियों के प्रसिद्ध धाम बेणेश्वर की 400 साल पुरानी कलाकृतियों होंगी संरक्षित
बेणेश्चर धाम पर मौजूद चार सौ साल पुरानी कलाकृतियों को संरक्षित किया जा सकेगा।

उदयपुर, संवाद सूत्र। राजस्थान में आदिवासियों के प्रसिद्ध तीर्थ बेणेश्वर धाम की कलाकृतियों के डिजिटलाइजेशन का कार्य शुरू हो गया है। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र ने जनजाति कला-संस्कृति के संरक्षण के तहत यह काम शुरू किया है। जिसके चलते बेणेश्चर धाम पर मौजूद चार सौ साल पुरानी कलाकृतियों को संरक्षित किया जा सकेगा। जिसमें संत मावजी के चौपड़े भी शामिल हैं।

भारतीय प्रशासनिक सेवा की वरिष्ठ अधिकारी एवं पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र उदयपुर की निदेशक किरण सोनी गुप्ता ने बताया कि बेणेश्वर धाम के महंत अच्युतानंद के आग्रह पर कलाकृतियों के डिजिटलाइजेशन का कार्य शुरू किया गया है। प्रथम चरण में साबला व शेषपुर स्थित संत मावजी के चोपड़े का डिजीटलाइजेशन करते हुए इनकी (रेप्लिका) प्रतिकृतियां तैयार करवाई जाएंगी। जनजाति आस्था धाम बेणेश्वर पर संत मावजी के हाथों रचित चोपड़े, इन चौपड़ों में उकेरे गए प्राकृतिक रंगों के चित्र और यहां पर किया जाने वाला महारास पूरी दुनिया में अनूठा है।

उन्होंने कहा कि डिजीटलाइजेशन के बाद कलाकारों के माध्यम से इसकी प्रतिकृतियां तैयार करवाते हुए शिल्पग्राम में इनकी प्रदर्शनी लगाई जाएगी।

साबला के बाद शेषपुर चोपड़ा होगा डिजिटल

चौपड़ों के डिजिटलाइजेशन कार्य के समन्वयक व उदयपुर के सूचना एवं जनसंपर्क उपनिदेशक कमलेश शर्मा ने बताया कि पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र ने टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से एक फर्म को इन कलाकृतियों को डिजिटलाइजेशन का कार्यादेश दिया है। जो हरि मंदिर साबला स्थित चोपड़े की फोटोग्राफी कर चुका है। आगामी 28 जनवरी को शेषपुर स्थित चोपड़े की फोटोग्राफी की जाएगी। जिनके जरिए तैयार की जाने वाली डिजिटल बुक ऑनलाइन उपलब्ध होगी।

चौपड़ों का डिजिटलाइजेशन बड़ी बात

धाम के महंत अच्युतानंद ने बताया कि बेणेश्वर धाम की प्राचीनता, संत मावजी और इनके परवर्ती संतों, मावजी रचित चारों चौपड़ों, इनमें उकेरे गए भविष्य दर्शाते चित्रों, धाम की धार्मिक महत्ता और इससे संबंधित परंपराओं, बेणेश्वर धाम मेला और इसके वैशिष्ट्य को देखते हुए यदि बेणेश्वर केंद्रित प्रदर्शनी या संग्रहालय बनता है तो श्रद्धालुओं और भक्तों को खुशी होगी। इससे संत मावजी और बेणेश्वर धाम की महत्ता और गौरव दिक दिगंत तक प्रसारित होगा। ऐसे थे मावजी महाराज, जिन्होंने तीन सौ पहले कर दी थी उपग्रह और ऐरोप्लेन की परिकल्पना विज्ञान की प्रगति के दम पर मनुष्य चांद और मंगल ग्रह तक पहुंच चुका है, लेकिन भारतीय संत महात्माओं की दिव्य शक्तियों पर कोई पारावार नहीं हैं।

वर्तमान में मनुष्य हवाई जहाज तथा उपग्रहों की मदद से आसमान तथा अंतरिक्ष की सैर कर रहा है, उसकी परिकल्पना 300 साल पहले संत मावजी ने कर दी थी। बेणेश्वर धाम को तपोस्थली बनाने वाले संत मावजी ने कपड़े पर उपग्रह और वायुयान के चित्र उत्केरित कर दिए थे जो वर्तमान में निर्मित उपकरणों से हूबहू मिलते हैं। मावजी महाराज ने 300 वर्ष पहले गीत व दोहों के माध्यम से भविष्यवाणियां की थी, उन्हें आगमवाणी कहा जाता है।

डूंगरपुर जिले के शेषपुर के हरिमंदिर में सुरक्षित रखे गए वस्त्र-पट-चित्र (कपड़े पर रंगों से बने चित्र) पर बने हुए उपग्रह एवं हवाई जहाज के चित्र की आकृतियां तथा इस चित्र के नीचे लिखी इबारत 'विज्ञान शास्त्र वधी ने आकाश लागेगा उपग्रह वास करें विचार करने को मजबूर करती है।  

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