Rajasthan: निचली अदालतों में 17 लाख मुकदमें पेंडिंग, जजों के पद खाली रहने से नहीं हो रहा निस्तारण

Rajasthan Lower Court. राजस्थान में 16 लाख 75 हजार 761 मुकदमें निचली अदालतों में कई साल से पेंडिंग चल रहे हैं।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Wed, 29 Jan 2020 01:43 PM (IST) Updated:Wed, 29 Jan 2020 05:29 PM (IST)
Rajasthan: निचली अदालतों में 17 लाख मुकदमें पेंडिंग, जजों के पद खाली रहने से नहीं हो रहा निस्तारण
Rajasthan: निचली अदालतों में 17 लाख मुकदमें पेंडिंग, जजों के पद खाली रहने से नहीं हो रहा निस्तारण

जयपुर, जागरण संवाददाता। Rajasthan Lower Court. निचली अदालतों में मुकदमों के पेंडिंग रहने के मामले में राजस्थान देश में चौथे नंबर पर है। निचली अदालतों में सबसे अधिक मुकदमें 75 लाख 99 हजार 593 उत्तर प्रदेश में, 37 लाख 85 हजार 231 महाराष्ट्र एवं 28 लाख 46 हजार 77 मुकदमें बिहार में पेंडिंग हैं। राजस्थान में 16 लाख 75 हजार 761 मुकदमें निचली अदालतों में कई साल से पेंडिंग चल रहे हैं। इसी तरह गुजरात की निचली अदालतों में 16 लाख 33 हजार 295, मध्य प्रदेश में 14 लाख 33 हजार 131, दिल्ली में आठ लाख 45 हजार 913 एवं पंजाब में छह लाख 35 हजार 503 मुकदमें पेंडिंग हैं।

जजों के पद खाली रहने से नहीं हो रहा निस्तारण

राजस्थान सरकार के विधि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य की निचली अदालतों के कुल 1330 पदों में से 236 पद खाली हैं। ये पद जिला एवं सत्र न्यायाधीश,सीनियर सिविल जज, सिविल जज एवं विभिन्न विशेष अदालतों के हैं। राज्य ज्यूडिशरी सर्विस (आरजेएस) में पदों की भर्ती प्रक्रिया तय समय पर नहीं होने एवं अनुपात के मुकाबले कम भर्ती होने के कारण मुकदमों का निस्तारण सही समय पर नहीं हो पा रहा है।

इसी कारण प्रदेश की निचली अदालतों में 16 लाख 75 हजार 761 मुकदमें पेंडिंग चल रहे हैं। इनमें से करीब 15 हजार मुकदमें पिछले 20 साल से चल रहे हैं। इनमें सबसे अधिक दो लाख 82 हजार 318 मुकदमें जयपुर की विभिन्न अदालतों में पेंडिंग हैं। जयपुर मेट्रो कोर्ट में सबसे अधिक 19 हजार 927 मुकदमें महिलाओं से संबंधित पेंडिंग चल रहे हैं। इसी तरह अलवर में नौ हजार 819, कोटा में आठ हजार 540, जोधपुर में आठ हजार 50 और अजमेर में सात हजार 594 महिलाओं से संबंधित मुकदमें पेंडिंग चल रहे हैं।

गौरतलब है कि अदालतों में मुकदमें पेंडिंग होने की वजह से वादियों और उनके परिजनों को परेशानी हो रही हैं। वह अदालतों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।

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