श्रीकृष्ण ने धर्म की रक्षा कर रिश्तों की बजाय कर्तव्य को महत्व दिया

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 22 Aug 2019 03:35 PM (IST) Updated:Thu, 22 Aug 2019 03:35 PM (IST)
श्रीकृष्ण ने धर्म की रक्षा कर रिश्तों की बजाय कर्तव्य को महत्व दिया
श्रीकृष्ण ने धर्म की रक्षा कर रिश्तों की बजाय कर्तव्य को महत्व दिया

संवाद सहयोगी, दातारपुर : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। तपोमूर्ति स्वामी महेश पुरी ने शिव मंदिर फतेहपुर में कहा कि यह पर्व भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में जन्म लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते है। स्वामी महेश ने कहा यशोदा नंदन, देवकी पुत्र भारतीय समाज में कृष्ण के नाम से सदियों से पूजे जा रहे हैं। श्री कृष्ण से हमें ऐसी कई शिक्षाएं मिलती हैं, जो विपरीत परिस्थिति में भी सकारात्मक सोच को कायम रखने की सीख देती हैं। कृष्ण के जन्म से पहले ही उनकी मृत्यु का षड्यंत्र रचा जाना और कारावास जैसे नकारात्मक परिवेश में जन्म होना किसी त्रासदी से कम नहीं था। श्री कृष्ण की संपूर्ण जीवन कथा कई रूपों में दिखाई पड़ती है। श्रीकृष्ण उस संपूर्णता के परिचायक हैं, जिसमें मनुष्य, देवता, योगीराज तथा संत आदि सभी के गुण समाहित हैं।

समस्त शक्तियों के अधिपति युवा कृष्ण महाभारत में कर्म पर ही विश्वास करते हैं। कृष्ण का मानवीय रूप महाभारत काल में स्पष्ट दिखाई देता है। गोकुल का ग्वाला, बिरज का कान्हा धर्म की रक्षा के लिए रिश्तों के मायाजाल से दूर मोह-माया के बंधनों से अलग है। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि कर्म प्रधान गीता के उपदेशों को यदि हम व्यवहार में अपना लें तो हम सभी की चेतना भी कृष्ण के जैसी विकसित हो सकती है।

कृष्ण का जीवन दो छोरों में बंधा है। एक ओर बांसुरी है, जिसमें सृजन का संगीत है, आनंद है, अमृत है और रास है। तो दूसरी ओर शंख है, जिसमें युद्ध की वेदना है। ये विरोधाभास ये समझाते हैं कि सुख है तो दुख भी है। महंत ने कहा यशोदा नंदन की कथा किसी द्वापर की कथा नहीं है, किसी ईश्वर का आख्यान नहीं है और ना ही किसी अवतार की लीला। वो तो यमुना के मैदान में बसने वाली भावात्मक रूह की पहचान है।

यशोदा का नटखट लाल है तो कहीं द्रोपदी का रक्षक, गोपियों का मनमोहन तो कहीं सुदामा का मित्र। हर रिश्ते में रंगे कृष्ण का जीवन नवरस में समाया हुआ है।

महंत जी ने आज श्री कृष्णावतार के अवसर पर सभी को बधाई दी। इस अवसर पर अजय परमार, करतार चंद, प्रदीप कुमार, प्रेम कुमार, प्रवीण ठाकुर, रामदास, मुकेश, सचिन, सन्नी, बबलू, कमल तथा सुभाष चंद्र मौजूद थे।

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