जज ने दुर्गध और मक्खी मच्छरों से ग्रस्त मरीजों को देख एसएमओ को लगाई फटकार

मंगलवार को सिविल अस्पताल का लीगल अथॉरिटी की न्यायाधीश कंवरदीप कौर राणा ने औचक निरीक्षण किया।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 15 Oct 2019 07:24 PM (IST) Updated:Wed, 16 Oct 2019 06:08 AM (IST)
जज ने दुर्गध और मक्खी मच्छरों से ग्रस्त मरीजों को देख एसएमओ को लगाई फटकार
जज ने दुर्गध और मक्खी मच्छरों से ग्रस्त मरीजों को देख एसएमओ को लगाई फटकार

जागरण संवाददाता, गुरदासपुर : मंगलवार को सिविल अस्पताल का लीगल अथॉरिटी की न्यायाधीश कंवरदीप कौर राणा ने औचक निरीक्षण किया। न्यायाधीश वाहेगुरु बोल कदे न डोल संस्था की शिकायत पर अस्पताल में बेसहारा मरीजों को मिलने वाली सुविधाओं संबंधी जायजा लेने के लिए पहुंची थीं। इस दौरान न्यायधीश ने दुर्गध और मक्खी मच्छरों से ग्रस्त मरीजों को देखकर अस्पताल की एसएमओ डॉ. चेतना को फटकार लगाई। इसके बाद जैसे ही एसएमओ ने मामले को लेकर ऊंची आवाज में अपनी सफाई देनी शुरू की तो न्यायाधीश ने आवाज धीमी रखने की सलाह दी।

बता दें कि वाहेगुरु बोल कदे न डोल संस्था के प्रधान विक्रमजीत सिंह अस्पताल में तीन बेसहारा मरीजों का इलाज करवा रहे थे। लेकिन बार-बार कहने के बावजूद भी जब मरीजों को अच्छी सुविधाएं नहीं दी गई तो उन्होंने अमृतसर के पिगलवाड़ा में उक्त तीनों मरीजों को भर्ती करवाने की अपील की। लेकिन वहां भी मरीजों की संख्या अधिक होने के कारण गुरदासपुर के इन तीनों बेसहारा मरीजों को जगह नहीं दी गई। इसके बाद सिविल अस्पताल में भी मरीजों की देखभाल नहीं होती देख संस्था के सदस्यों ने डीसी विपुल उज्जवल और न्यायाधीश को इस मामले संबंधी अवगत करवाया था। इसके बाद अस्पताल में पहुंचकर न्यायधीश ने स्टाफ सहित एसएमओ को जमकर फटकार लगाई। मानसिक परेशान मरीजों को संस्था ने कराया था अस्पताल में भर्ती

वाहेगुरु बोल संस्था के सदस्यों ने सिविल अस्पताल में पिछले चार महीने में तीन मरीजों को भर्ती करवाया था। इन मरीजों की मानसिक हालत ठीक नहीं थी। ये मरीज ऐसे थे, जो सड़कों पर बेसहारा घूमते थे और शारीरिक तौर पर बीमारियों से ग्रस्त थे। संस्था के सदस्य ऐसे मरीजों को उठाकर इलाज के लिए सिविल अस्पताल में पहुंचाते हैं। उसका पूरा फॉलोअप करती है, लेकिन संस्था के सदस्यों को दुख तब हुआ जब लगातार बार-बार कहने के बावजूद भी उक्त मरीजों की कोई ट्रीटमेंट व देखभाल नहीं की जा रही। हालांकि इनमें से एक मरीज जिसके पांव पर चोट लगी थी, का ऑपरेशन सिविल के ऑर्थो स्पेशलिस्ट डॉ. दीपक ने किया। चार महीने के बाद मंगलवार को उक्त संस्था के सदस्यों के पहुंचने के बाद मरीज को चला कर देखा गया।

एसएमओ बोली-सिविल अस्पताल शेल्टर होम नहीं, इलाज के बाद भी संस्था वाले मरीज नहीं ले जाते

मामले को लेकर एसएमओ डॉक्टर चेतना का कहना है कि वाहेगुरु बोल कदे न डोल संस्था के सदस्य चार महीने पहले तीन मरीजों को अस्पताल में दाखिल करवाकर गए थे। इन मरीजों की दिमागी हालत और शारीरिक हालत काफी दयनीय थी। अस्पताल ने ऐसे मरीजों को कपड़े, बेड और अन्य सामान दिया गया। संस्था के सदस्य बार-बार कहते थे कि इलाज के बाद ऐसे मरीजों को वापस ले जाएंगे, लेकिन लेकर नहीं गए। उन्होंने कहा कि सिविल अस्पताल शेल्टर होम नहीं है, जिसमें कोई भी ऐसा मरीज लाकर दाखिल कर दिया जाए। उनका कहना था कि ऐसे मरीजों से अस्पताल में भर्ती दूसरे मरीज परेशान होते हैं। क्योंकि दिमागी परेशान मरीज बेड पर ही शौचालय व बाथरूम कर देते हैं। उन्होंने कहा कि माननीय न्यायधीश के आने पर उन्हें पूरे हालात से अवगत करवाया गया और संस्था के सदस्यों को भी अस्पताल प्रबंधकों की मजबूरी बताई गई। उन्होंने कहा कि विधायक और उच्च अधिकारियों को भी कई बार पत्र लिखा है कि ऐसे मरीजों के लिए अलग से शेल्टर होम का निर्माण किया जाए।

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