भारत और अमेरिका के बीच रिश्‍तों में खटास ला सकते हैं कुछ मुद्दे, इनका सुलझना जरूरी

भारत और अमेरिका के रणनीतिक और कूटनीतिक रिश्ते भले ही बेहद ऐतिहासिक मोड़ ले चुके हों, लेकिन अब भी कुछ मुद्दे ऐसे बने हुए हैं जो दोनों देशों के बीच रिश्‍तों में खटास का कारण बन सकते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sun, 25 Feb 2018 03:11 PM (IST) Updated:Wed, 28 Feb 2018 10:32 AM (IST)
भारत और अमेरिका के बीच रिश्‍तों में खटास ला सकते हैं कुछ मुद्दे, इनका सुलझना जरूरी
भारत और अमेरिका के बीच रिश्‍तों में खटास ला सकते हैं कुछ मुद्दे, इनका सुलझना जरूरी

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और अमेरिका के रणनीतिक और कूटनीतिक रिश्ते भले ही बेहद ऐतिहासिक मोड़ ले चुके हों, लेकिन अब भी कुछ मुद्दे ऐसे बने हुए हैं जो दोनों देशों के बीच रिश्‍तों में खटास का कारण बन सकते हैं। इनमें विशेषकर एच-1बी वीजा नियम, सीमा शुल्‍क और पेरिस समझौता है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत व अमेरिका की सरकारें वैश्विक व कूटनीतिक मामलों में तो सहयोग की जरूरत महसूस कर रही हैं, लेकिन कारोबारी क्षेत्र में दोनों घरेलू राजनीति के मुताबिक कदम उठा रही हैं। राष्ट्रपति ट्रंप को अगर ‘हायर अमेरिका, बाई अमेरिका’ की नीति को सही साबित करना है तो भारत को भी मेक इन इंडिया कार्यक्रम को सफल बनाना है।

एच-1बी वीजा

आपको बता दें कि भारत की तरफ से लाख आग्रह करने और पीएम नरेंद्र मोदी व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की तरफ से कई बार मुद्दा उठाने के बावजूद ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीजा मुद्दे पर कोई रियायत नहीं दी। हाल ही में अमेरिकी सरकार ने जो एच-1बी नियमों में जो बदलाव किए उससे भारतीय आइटी कंपनियों के लिए वहां कारोबार करना काफी महंगा हो जाएगा। एच-1 बी वीजा काफी समय से अमेरिका में बसे भारतीयों के लिए बड़ा मुद्दा है। 1998 और 2015 में इसके नियमों में बदलाव किया गया था। इसके बाद ट्रंप ने इसमें फिर बदलाव पर जोर दिया था। आपको बता दें कि जिन्‍हें एच-1बी वीजा मिलता है उन्हें ही अमरीका में अस्थायी रुप से काम करने की इजाजत होती है। वहीं दूसरी तरफ एच1बी वीजा धारकों के परिवारजनों को एच4 वीजा मिलता है और वो भी अमरीका में रह सकते हैं।

अमेरिका को नागवार गुजरा सीमा शुल्‍क बढ़ाना

इसके अलावा अमेरिका की तरफ से बार-बार आग्रह के बावजूद भारत ने वहां से आयातित मोटर वाहनों, सौर ऊर्जा से जुड़े उपकरणों पर लगाए जाने वाले सीमा शुल्क में कोई राहत नहीं दी है, बल्कि आम बजट 2018 में जिन कई उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ाया गया वह भी अमेरिका को नागवार गुजरा है। ट्रंप कुछ ही दिन पहले कांग्रेस में दिए अपने भाषण में इसको लेकर भारत की आलोचना भी कर चुके हैं। आपको बता दें कि पिछले आम बजट में भारत ने महंगी मोटरसाइकिलों पर आयात शुल्क को 60 फीसद व 75 फीसद से घटा कर 50 फीसद कर दिया है। इसके बावजूद ट्रंप उसे नाकाफी मान रहे हैं। वह वाहनों पर आयात शुल्क को पूरी तरह से खत्म करने की मांग कर रहे हैं। वहीं इस मुद्दे पर भारत ने अपना रुख स्‍पष्‍ट करते हुए कहा है कि इन कंपनियों को भारत में मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट लगाना चाहिए। इसलिए इन पर ज्यादा शुल्क लगाया है। भारत की तरफ से कई तरह के लग्जरी उत्पादों (परफ्यूम, महंगी घड़ियां आदि) पर भी सीमा शुल्क बढ़ाया गया है, जो अमेरिकी कंपनियों को नागवार गुजर रहा है।

रिटेल सेक्टर में विदेशी कंपनियों का प्रवेश

भारत की तरफ से रिटेल सेक्टर में विदेशी कंपनियों के प्रवेश को लेकर ज्यादा कुछ नहीं होने और कृषि आयात के कड़े नियम का मुद्दा भी अमेरिका की तरफ से बार-बार उठाया जाता है। अमेरिका भारत के साथ मुक्‍त व्‍यापार समझौता एफटीए करने को ज्यादा इच्छुक है, जबकि भारत फिलहाल सिर्फ द्विपक्षीय निवेश समझौते (बीआइटी) के पक्ष में है। कारोबारी क्षेत्र में बढ़ते तनाव का ही नतीजा है कि मौजूदा 110 अरब डॉलर के द्विपक्षीय कारोबार को बढ़ाकर 500 अरब डॉलर करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोई ठोस रोडमैप नहीं बन पाया है।

पेरिस समझौते से अमेरिका का हटना और भारत को दोषी ठहराना

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने के अपने फैसले के लिए भारत और चीन को दोषी ठहराया है। आपको बता दें कि ट्रंप ने पिछले साल जून में पेरिस समझौता से पीछे हटने की घोषणा की थी। उनका कहना था कि यह समझौता सही नहीं था क्योंकि अमेरिका को उन राष्ट्रों को भुगतान करना होता, जिन्हें इसका सबसे ज्यादा लाभ मिल रहा था। उनके मुताबिक इस समझौते से अमेरिका को खरबों डॉलर का बोझ पड़ेगा। नौकरियां खत्म होंगी और तेल, गैस, कोयला एवं निर्माण उद्योगों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि फिर से समझौता करने का विकल्प वह खुला रखेंगे।

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