कहीं सीट बंटवारे की सियासत तो नहीं है तमिलनाडु में राहुल की सक्रियता, द्रमुक ने कांग्रेस कोटे की सीटों पर दिए थे समीक्षा के संकेत

तमिलनाडु से लेकर बंगाल तक पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव ने राष्ट्रीय नेताओं की सक्रियता बढ़ा दी है। यही वजह है कि करीब दो हफ्ते की छुट्टी से लौटते ही राहुल ने जल्लीकट्टू के उत्सव में शरीक होने के बहाने पहला सियासी दौरा तमिलनाडु का किया था।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Thu, 14 Jan 2021 09:09 PM (IST) Updated:Fri, 15 Jan 2021 12:16 AM (IST)
कहीं सीट बंटवारे की सियासत तो नहीं है तमिलनाडु में राहुल की सक्रियता, द्रमुक ने कांग्रेस कोटे की सीटों पर दिए थे समीक्षा के संकेत
तमिलनाडु से लेकर बंगाल तक पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव ने राष्ट्रीय नेताओं की सक्रियता बढ़ा दी है।

नई दिल्ली, जेएनएन। तमिलनाडु से लेकर बंगाल तक पांच राज्यों के चुनाव की सरगर्मियों ने राष्ट्रीय नेताओं को अपनी सियासत दुरुस्त करने के लिए सक्रिय कर दिया है। तभी करीब दो हफ्ते की छुट्टी से लौटते ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जल्लीकट्टू के उत्सव में शरीक होने के बहाने गुरुवार को पहला सियासी दौरा तमिलनाडु का किया। राहुल की इस यात्रा का मकसद राज्य में कांग्रेस नेताओं और संगठन में सरगर्मी बढ़ाना है ताकि गठबंधन के सीट बंटवारे में पार्टी सम्मानजक सीटें हासिल कर सके।

स्टालिन पर दबाव बनाना है रणनीति

बिहार विधानसभा के बीते नवंबर में हुए चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस को तमिलनाडु में उसके बड़े सहयोगी द्रमुक के नेता स्टालिन पर दबाव बनाना है। इसीलिए राहुल गांधी ने पोंगल के मौके पर सूबे के अहम सियासी गढ़ मदुरै में अपने आक्रामक तेवरों के साथ सूबे की कांग्रेस में ऊर्जा भरने की कोशिश की। दरअसल, बिहार चुनाव के तत्काल बाद स्टालिन ने खुले तौर पर कांग्रेस को अपनी राजनीतिक वास्तविकता के हिसाब से सीटें लेने की सलाह दी थी।

स्टालिन के रुख से बेचैनी

साथ ही साफ संदेश भी दे दिया था कि तमिलनाडु में गठबंधन के सीट बंटवारे में वे बिहार के अनुभवों का ध्यान रखेंगे। स्टालिन के इस रुख के बाद से ही कांग्रेस अंदरखाने परेशान है। सूबे के पार्टी नेता नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं कि कांग्रेस की सीटों में द्रमुक किसी तरह की कटौती नहीं कर पाए। मालूम हो कि 2016 के विधानसभा चुनाव में द्रमुक ने कांग्रेस को 41 सीटें दी थीं, मगर पार्टी के केवल आठ प्रत्याशी ही जीत पाए थे।

जोखिम नहीं लेना चाहते स्‍टालिन

हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन ने राज्य की 39 में से 38 लोकसभा सीटें जीतीं। जयललिता के अवसान के बाद अन्नाद्रमुक में नेतृत्व को लेकर चल रही अंदरूनी खींचतान और सत्ता विरोधी भावना को देखते हुए अप्रैल में होने वाले चुनाव में द्रमुक को सत्ता का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। इस लिहाज से भी स्टालिन सीट बंटवारे में अबकी बार ज्यादा जोखिम नहीं उठाना चाहते। वैसे स्टालिन के साथ राहुल गांधी के निजी ताल्लुकात अच्छे हैं और इसे देखते हुए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष की तमिलनाडु में बढ़ी सियासी सक्रियता पार्टी की रणनीति का हिस्सा है। 

chat bot
आपका साथी