VIDEO: स्वर्गीय नरेंद्र मोहन स्मृति व्याख्यानमाला में योगेंद्र नारायण बोले, संघीय ढांचे के लिए कांटा बन चुका है अनुच्छेद 356

राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण ने संविधान के अनुच्छेद 356 को समाप्त किये जाने की जरूरत बताई है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Thu, 10 Oct 2019 11:59 PM (IST) Updated:Fri, 11 Oct 2019 07:08 AM (IST)
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जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण ने संविधान के अनुच्छेद 356 को समाप्त किये जाने की जरूरत बताई है। अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग की फेहरिश्त बताते हुए उन्होंने इसे केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की शुरुआत का मूल करार दिया। इसके साथ ही उन्होंने संघीय ढांचे को और मजबूत बनाने के लिए राज्यपालों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और गृहमंत्री की सदस्यता वाली एक चयन समिति के गठन का सुझाव दिया।

उन्होंने जीएसटी को केंद्र-राज्य के संयुक्त शासन के स्वरूप नई शुरुआत बताते हुए जन कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी जीएसटी काउंसिल की तर्ज पर राष्ट्रीय विकास काउंसिल के रूप में एक नए वैधानिक संस्था के गठन की वकालत की। दैनिक जागरण समूह के प्रधान संपादक संजय गुप्त ने यह सुनिश्चित करने की जरूरत बताई कि राजनीतिक दलों के आपसी टकराव के बीच आम जनता नहीं पीसना पड़े।

राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण ने संविधान के अनुच्छेद 356 को समाप्त किये जाने की जरूरत बताई है। pic.twitter.com/bSV9WLjgZz

— Arun Singh (@5b9e0884948640b) October 10, 2019

 दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक स्वर्गीय नरेंद्र मोहन की स्मृति में 'संघीय ढांचा और राष्ट्रीय हित' विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में बोलते हुए योगेंद्र नारायण ने कहा 'अनुच्छेद 356 भारत के संघीय ढांचे के लिए एक कांटा बन चुका है।' उन्होंने बताया कि किस तरह पहली बार इस प्रावधान को अंग्रेजों ने 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में शामिल किया था, जिसे आजादी के बाद हमने ज्यों का त्यों अपना लिया।

126 बार हुआ दुरुपयोग

अनुच्छेद 356 को समाप्त करने की पुरजोर वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद अभी तक इसका 126 बार दुरुपयोग हो चुका है। 1957 में केरल में नंबूदरीपाद सरकार को गिराने के लिए किया गया इसके दुरूपयोग से केंद्र और राज्य के बीच टकराव की शुरुआत हुई थी। उन्होंने विस्तार से बताया कि किस तरह राजनीतिक कारणों से विभिन्न पार्टियों की सरकारें इस अनुच्छेद का दुरुपयोग करती रही हैं। योगेंद्र नारायण के अनुसार संविधान में किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए कई और प्रावधान मौजूद हैं और अनुच्छेद 356 को बनाए रखने की कोई जरूरत नहीं है।

योगेंद्र नारायण ने अनुच्छेद 356 को समाप्त करने के साथ ही राज्यपालों की नियुक्ति की प्रक्रिया को भी पारदर्शी बनाने की जरूरत बताई। pic.twitter.com/yL6kOmulrI

— Arun Singh (@5b9e0884948640b) October 10, 2019

राज्यपालों की नियुक्ति हो पारदर्शी 

संघीय ढांचे को मजबूत करने के लिए योगेंद्र नारायण ने अनुच्छेद 356 को समाप्त करने के साथ ही राज्यपालों की नियुक्ति की प्रक्रिया को भी पारदर्शी बनाने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि किस तरह से बिहार में राज्यपाल बूटा सिंह के विधानसभा भंग करने की सिफारिश और उस पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से दुखी तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इस्तीफे की पेशकश तक कर दी थी। बाद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने व्यक्तिगत रूप से अनुरोध कर उन्हें मनाया था। मौजूदा प्रणाली में राज्यपालों को केंद्र सरकार के अधीन बताते हुए उन्होंने कहा कि उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और गृहमंत्री की सदस्यता में एक समिति के गठन का सुझाव दिया।

जन कल्याणकारी योजनाओं के लागू होने में दिक्‍कतें

योगेंद्र नारायण ने राज्यों और केंद्र के बीच टकराव के कारण जन कल्याणकारी योजनाओं के लागू होने में आ रही दिक्कतों पर चिंता जताई। खासकर आयुष्मान भारत, खुले में शौच मुक्त, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाओं को दिल्ली और पश्चिम बंगाल समेत विभिन्न राज्यों में राजनीतिक कारणों से लागू नहीं किये जाने का उल्लेख किया, जिसका खामियाजा आखिरकार आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। जीएसटी लागू करने को संघीय व्यवस्था का सबसे सफल उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि इसी तरह की प्रणाली जन कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में भी अपनाने की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने जीएसटी कौंसिल की तर्ज पर राष्ट्रीय विकास परिषद के रूप में एक वैधानिक संस्था बनाने का सुझाव दिया, जिनमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री या उनके ओर से नामित मंत्री सदस्य हों।

केंद्रीयकृत व्यवस्था की ओर बढ़ने का संकेत

योगेंद्र नारायण के अनुसार पिछले 70 सालों में देश की राजनीतिक हालात के अनुसार संघीय ढांचे के तहत केंद्र और राज्यों के संबंध बदलते रहे हैं और अब राज्य और केंद्र के संयुक्त शासन का स्वरूप में सामने आ रहा है। शुरू में केंद्र और राज्यों में एक ही सरकार के तहत आपसी सहयोग से लेकर 1960 से 1980 के दशक के बीच टकराव का दौर रहा। लेकिन 1990 के दशक के बाद गठबंधन की सरकारों में केंद्र सरकार में राज्यों का दबदबा बढ़ गया। एनआइए और जीएसटी को योगेंद्र नारायण ने संघीय ढांचे के केंद्रीयकृत व्यवस्था की ओर बढ़ने का संकेत बताया। खास कर जीएसटी ने राज्यों और केंद्र के बीच तालमेल और संयुक्त रूप से फैसला लेने का नया तरीका इजाद किया है। यह संघीय ढांचे के लिए शुभ संकेत है।

आम जनता को भुगतना नहीं पड़े खामियाजा

दैनिक जागरण समूह के प्रधान संपादक संजय गुप्त ने योगेंद्र नारायण समेत सभागार में मौजूद लोगों का धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कहा कि सभागार में तमाम नेता भी बैठे हैं। हकीकत यही है कि नौकरशाह भी राजनेताओं का मन बनाते हैं। कई बार देखने आया है कि राजनीतिक मतभेदों को चलते आम जनता को पिसना पड़ता है। राजनेता और नौकरशाह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके आपसी मतभेदों का खामियाजा आम जनता को भुगतना नहीं पड़े। साथ ही आम जनता को यह नहीं लगना चाहिए कि उसके अधिकारों की रक्षा में संविधान समर्थ नहीं हो पा रहा है।  

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