आखिर क्‍या है Electoral Bond जिसको लेकर संसद में हंगामा है बरपा

भारतीय जनता पार्टी ने इसका पलटवार करते हुए कहा है कि विपक्षी दल इसे बेवजह का मुद्दा बना रहे हैं। चुनावी फंडिंग को पारदर्शी बनाने के मकसद से लाए गए चुनावी बॉन्‍ड पर पेश है एक नजर...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 22 Nov 2019 09:38 AM (IST) Updated:Fri, 22 Nov 2019 03:56 PM (IST)
आखिर क्‍या है Electoral Bond जिसको लेकर संसद में हंगामा है बरपा
आखिर क्‍या है Electoral Bond जिसको लेकर संसद में हंगामा है बरपा

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चुनावी बॉन्‍ड को औपचारिक भ्रष्टाचार का स्रोत बताते हुए कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने संसद में हंगामा किया। भारतीय जनता पार्टी ने इसका पलटवार करते हुए कहा है कि विपक्षी दल इसे बेवजह का मुद्दा बना रहे हैं। चुनावी फंडिंग को पारदर्शी बनाने के मकसद से लाए गए चुनावी बॉन्‍ड पर पेश है एक नजर...

क्या है चुनावी बॉन्‍ड?

केंद्र सरकार ने देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में चुनावी बॉन्‍ड शुरू करने का एलान किया था। चुनावी बॉन्‍ड का इस्तेमाल व्यक्तियों, संस्थाओं और भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जाता है। नकद चंदे के रूप में दो हजार से बड़ी रकम नहीं ली जा सकती है। सरकार की दलील है कि चूंकि बॉन्‍ड पर दानदाता का नाम नहीं होता है, और पार्टी को भी दानदाता का नाम नहीं पता होता है। सिर्फ बैंक जानता है कि किसने किसको यह चंदा दिया है। इसका मूल मंतव्य है कि पार्टी अपनी बैलेंसशीट में चंदे की रकम को बिना दानदाता के नाम के जाहिर कर सके।

कौन ले सकता है?

एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपये की कीमत में उपलब्ध इन बॉन्‍डों को जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत वे राजनीतिक पार्टियां ही भुना सकती हैं, जो पिछले आम चुनाव या विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसद वोट हासिल की होती हैं। चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित बैंक खाते में ही इस धन को जमा किया जा सकता है।

विशेष विंडो

एक आरटीआइ के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने वित्त मंत्रालय को दो मौकों पर राज्य विधानसभा चुनावों के लिए  समय से पहले बिक्री को मंजूरी देने के लिए विशेष विंडो खोलने को कहा। जबकिनियम के मुताबिक बॉन्‍ड की बिक्री के लिए एक विशिष्ट वार्षिक अवधि निर्धारित है। भाजपा को मिला सबसे ज्यादा बॉन्‍ड 2017-18 में सबसे ज्यादा 222 करोड़ रुपये (95 फीसद) के बॉन्‍ड भारतीय जनता पार्टी को मिले।

आपत्तियां

एक अन्य आरटीआइ के जवाब से पता चलता है कि भारतीय रिजर्व बैंक और चुनाव आयोग ने इस योजना पर आपत्तियां जताई थीं, लेकिन सरकार द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था। आरबीआइ ने 30 जनवरी, 2017 को लिखे एक पत्र में कहा था कि यह योजना पारदर्शी नहीं है, मनी लांड्रिंग बिल को कमजोर करती है और वैश्विक प्रथाओं के खिलाफ है। इससे केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा। चुनाव आयोग ने दानदाताओं के नामों को उजागर न करने और घाटे में चल रही कंपनियों (जो केवल शेल कंपनियों के स्थापित होने की संभावनाएं खोलती हैं) को बॉन्‍ड खरीदने की अनुमति देने को लेकर चिंता जताई थी।

कानून मंत्रालय का सुझाव

एक अन्य आरटीआइ द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेजों के मुताबिक, कानून मंत्रालय ने सुझाव दिया था कि न्यूनतम वोट शेयर की आवश्यकता या तो 6 फीसद होनी चाहिए (मान्यता प्राप्त 52 राज्य और 8 राष्ट्रीय दलों के लिए) या बिल्कुल नहीं ( वर्तमान आवश्यकता 1 फीसद है)। जबकि यह स्पष्ट नहीं है कि 2,487 गैर-मान्यता प्राप्त दलों में से 1 फीसद वोट शेयर कितनों का है। कुछ लोगों ने यह भी आरोप लगाया है कि चूंकि इन बॉन्‍ड को बेचने वाला भारतीय स्टेट बैंक खरीदार की पहचान जानता है, इसलिए सत्ता में सरकार आसानी से यह पता लगा सकती है कि बॉन्‍ड किसने और किसके लिए खरीदा है। सुप्रीम कोर्ट इन बॉन्‍ड की वैधता पर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है।

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