कोरोना की उत्पत्ति के सवालों में घिरा ड्रैगन, आंकड़ों में बदलाव लगा रहे चीन की मंशा पर प्रश्नचिह्न
कोरोना वायरस को लेकर सवालों से घिरे चीन ने अपने यहां आंकड़ों में अचानक बदलाव कर दिया है। इसको लेकर उसकी मंशा पर संदेह के बादल और अधिक गहरा गए हैं।
नई दिल्ली। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में पांच महीनों से कोहराम मचाया हुआ है। पांच माह के बाद भी वैज्ञानिक अब तक इसकी दवा बनाने में ही जुटे हैं। पूरी दुनिया में ही वैक्सीन बनाने के करीब 150 प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिनमें से पांच देशों ने ही अपने यहां पर वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है। इनमें चीन, अमेरिका, इजरायल, ब्रिटेन और जर्मनी शामिल हैं। भारत भी मई में वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर सकता है। इस बीच कोरोना वायरस को लेकर चीन पर सवाल उठते रहे हैं। इनमें से कुछ सवाल उसकी उत्पति से जुड़े हैं तो कुछ इस वायरस से हुई चीन में हुई मौतों और मामलों की संख्या से जुड़े हुए हैं। अमेरिका लगातार इसको लेकर सवाल उठाता रहा है। अब इसमें यूरोप के कुछ देश भी शामिल हो गए हैं जो मानते हैं कि चीन से ही ये जानलेवा वायरस पूरी दुनिया में आया और इसकी उत्पत्ति की वजह चीन ही है।
आगे बढ़ने से पहले आपको ये भी बता दें कि अमेरिका इसे चीनी वायरस कहकर कोरोना वायरस अटैक करने का आरोप लगा चुका है वहीं, चीन ने भी इस वायरस को अमेरिका की उत्पत्ति बताया है। चीन का कहना है कि ये साजिशन चीन में लाकर छोड़ा गया और आज ये पूरी दुनिया में कोहराम मचा रहा है। हालांकि, इन आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि इसकी वजह से चीन को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। इस बारे में लंदन के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत मानते हैं कि चीन ने जिस तरह से सवालों के उठने के बाद अपने यहां के आंकड़ों में बदलाव किया है उससे उस पर संदेह के बादल और अधिक गहरा जाते हैं। हालांकि, इनके पीछे उसका तर्क है कि इनमें चीन ने अस्पतालों के बाहर मारे गए कोरोना मरीजों के आंकड़ों को शामिल किया है जिन्हें पहले नहीं किया गया था। बड़ा सवाल ये है कि ऐसा सवालों के उठने के बाद ही क्यों किया गया।
जहां तक अमेरिका के बाद यूरोप के भी चीन पर सवाल उठाने की बात है तो प्रोफेसर पंत मानते हैंकि यूरोपीय संघ अपने यहां बड़े देशों में हालात पर काबू पाने में काफी हद तक नाकाम रहा। वहीं उसको लगने लगा कि चीन इसकी बदौलत यूरोप की एकता में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है। एक तरफ जहां यूरोपीय संघ में शामिल कुछ देशों ने अपने दूसरे साथियों को जरूरी उपकरणों की सप्लाई या प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स की सप्लाई देने से इनकार कर दिया वहीं, चीन इस संकट का इस्तेमाल अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने में किया है। यहां पर गौर करने वाली एक बात ये भी है कि कोरोना वायरस से संबंधित आंकड़ों और चीन पर भरोसा करने का खामियाजा विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी उठाना पड़ा है। चीन की वजह से ही अमेरिका और डब्ल्यूएचओ के बीच दरार भी बढ़ गई है और अमेरिका ने इसको दी जाने वाली फंडिंग बंद कर दी है।
प्रोफेसर के मुताबिक, चीन की मंशा इस बात से कभी कटघरे में आई है, क्योंकि एक तरफ जहां पूरी दुनिया इस संकट से जूझ रही है वहीं, चीन ने अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम और सिल्क रोड का काम फिर शुरू कर दिया है। पहले की ही तरह चीन यूरोप से लेकर अफ्रीका तक अपनी पहुंच बनाने में जुट गया है। वह मानते हैं कि बीते दो दशकों में चीन की कंपनियों ने यूरोपीय कंपनियों में बड़ा निवेश और उनका अधिग्रहण किया है। ऐसे में यूरोप में चीनी दखल की नई संभावनाएं काफी अधिक हो गई हैं। इस बात से यूरोप पूरी तरह से अनजान नहीं है। यही वजह है कि यूरोपीय संघ के कॉम्पिटीशन कमिशनर ने हाल ही में कहा है कि इससे बचने के लिए यूरोपीय देशों को अपनी कंपनियों में शेयर बढ़ाना चाहिए।
आपको बता दें कि इस संकट के काल में चीन अपने सैन्य कार्यक्रम को बढ़ाने पर भी काम कर रहा है। दक्षिण चीन सागर में सैनिकों की आवाजाही तेज कर दी है। इसके अलावा वह लगातार ताईवान, जापान और दक्षिण कोरिया को धमकी दे रहा है। प्रोफेसर पंत मानते हैं कि कोविड-19 की वजह से दुनिया को अभूतपूर्व क्षति हुई है। इसकी वजह से चीन और उसकी सरकार के चेहरे से बनावटी मुखौटा भी हट गया है। पंत को ये भी उम्मीद है कि वैज्ञानिक जिस तेजी से इस जानलेवा वायरस की वैक्सीन खोजने में लगे हैं कि उसमें शायद जल्द ही कामयाबी भी हासिल हो जाए।
आपको यहां पर ये भी बता दें अब तक हुए विभिन्न शोधों में ये बात सामने आई है कि इस वायरस के तीन प्रकार पूरी दुनिया में फैले हैं। शोध के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने इन्हें ए,बी और सी का नाम दिया है। इनमें से सी वायरस जिसने अमेरिका के न्यूयॉर्क में सबसे अधिक कहर मचाया है वो ए वायरस की तुलना में अधिक घातक माना गया है। शोध में ये बात भी सामने आई है कि चमगादड़ों में कोरोना वायरस की सैकड़ों किस्म होती हैं। वैज्ञानिकों ने इस बात का भी अंदेशा जताया है कि यदि इसकी वैक्सीन बना भी ली जाती है तो भी ये वायरस पूरी तरह से खत्म नहीं होगा और ये भविष्य में दोबारा हमला कर सकता है। इसके अलावा वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि जिस तरह से इसके अलग-अलग प्रकार सामने आए हैं उस तरह से इसकी कोई भी एक वैक्सीन किसी दूसरे मरीज पर कारगर नहीं होगी। इतना ही नहीं यदि इसका स्वरूप यूं ही बदलता रहा तो इसकी वैक्सीन बनाने में वैज्ञानिकों को और दिक्कतें आ सकती हैं।
ये भी पढ़ें:-
भारत में बीते 14 दिनों में सामने आए 17 हजार से अधिक मामले, 3 मार्च के बाद तेजी से बढ़े मरीज
जानें क्या होती है हर्ड इम्युनिटी और भारत जैसे देशों के लिए कैसे कारगर हो सकती है ये
कार के स्पेयर पार्ट्स से पोर्टेबल वेंटिलेटर बनाने में जुटी हैं 14 से 17 साल की ये युवतियां
जब इंसान की जान बचाने का आया सवाल तो हर किसी ने दिया अपनी तरह से योगदान, जानें कैसे