कुछ तो जादू है इस इंसान में, आए दिन करता है नया करिश्मा..

कुछ लोग हुनर के साथ जन्म लेते हैं तो कुछ उसको तराशते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने शौक को अपना हुनर बनाते हैं और फिर इसके जरिए ना जाने कितने लोगों के हुनर और सपनों को तराशने निकल पड़ते हैं। ऐसे ही एक इंसान हैं दक्षिण अफ्रीका में जन्में स्विट्जरलैंड के माइक हॉर्न। कहने को तो ये आदमी सिर्फ दुनिया भ्रम

By Edited By: Publish:Wed, 16 Jul 2014 03:10 PM (IST) Updated:Wed, 16 Jul 2014 03:11 PM (IST)
कुछ तो जादू है इस इंसान में, आए दिन करता है नया करिश्मा..

नई दिल्ली। कुछ लोग हुनर के साथ जन्म लेते हैं तो कुछ उसको तराशते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने शौक को अपना हुनर बनाते हैं और फिर इसके जरिए ना जाने कितने लोगों के हुनर और सपनों को तराशने निकल पड़ते हैं। ऐसे ही एक इंसान हैं दक्षिण अफ्रीका में जन्में स्विट्जरलैंड के माइक हॉर्न। कहने को तो ये आदमी सिर्फ दुनिया भ्रमण करने वाला और इसके जरिए कई रिकॉर्ड बनाने वाला एक एक्सप्लोरर है लेकिन इसके साथ ही प्रोत्साहित करने की अपनी कला को इस धुरंधर ने कुछ इस अंदाज में विकसित किया कि आज खेल जगत से लेकर तमाम अन्य क्षेत्रों में उनकी मांग बढ़ चुकी है। आइए आपको बताते हैं कि आखिर माइक हॉर्न ने ऐसे कौन-कौन से करिश्मे को अंजाम दिया है जो उनको किसी जादूगर से कम नहीं साबित करते।

- क्या याद है 2011 क्रिकेट विश्व कप?:

2011 क्रिकेट विश्व कप में टूर्नामेंट भारत में था। भारतीय टीम पर इसका दबाव जगजाहिर था। इसी को देखते हुए कोच गैरी क‌र्स्टन ने माइक हॉर्न से टीम इंडिया को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें टीम से जोड़ा। फिर क्या था 28 साल बाद भारतीय टीम एक बार फिर विश्व चैंपियन बनी और पूरा देश जश्न में झूम उठा, बहुत कम लोगों का इस ओर ध्यान गया कि माइक हॉर्न ने खिलाड़ियों की मनोस्थिति को किस कदर प्रभावित किया था जिससे ये नतीजा निकला। सचिन तेंदुलकर से लेकर तमाम अन्य खिलाड़ियों ने हॉर्न को इस सफलता का बड़ा श्रेय दिया।

- दक्षिण अफ्रीका की हो गई चांदी:

इसके बाद गैरी क‌र्स्टन दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम के मुख्य कोच बने और टीम की हालत को देखते हुए उन्होंने एक बार फिर हॉर्न की सहायता लेने का निर्णय लिया। हॉर्न दक्षिण अफ्रीकी टीम के साथ जुड़े और सब कुछ बदल गया। हॉर्न दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों को स्विट्जरलैंड की एल्प्स पहाड़ियों पर एक कठिन पर्वातरोहण अभियान पर ले गए और ना जाने उन्होंने इस दौरान खिलाड़ियों पर ऐसा क्या जादू किया कि वापस आते ही दक्षिण अफ्रीकी टीम ने पिछले 10 साल के अपने सभी प्रदर्शन को पीछे छोड़ते हुए इंग्लैंड को टेस्ट सीरीज में रौंदा और टेस्ट रैंकिंग में नंबर एक के स्थान पर कब्जा जमा लिया।

- शाहरुख खान की भी हो गई बल्ले-बल्ले:

बॉलीवुड के किंग खान शाहरुख खान की आइपीएल टीम कोलकाता नाइट राइडर्स 4 आइपीएल सीजन में एक बार भी खिताब नहीं जीत सकी थी। खबरें तो ये तक आने लगी थीं कि शायद शाहरुख टीम को बेच देंगे लेकिन टीम मैनेजमेंट ने माइक हॉर्न को टीम के साथ जोड़ने का मन बनाया और टीम में इतना बड़ा बदलाव आया कि केकेआर 2012 की आइपीएल चैंपियन बनी और अपना पहला आइपीएल खिताब उन्होंने अपने नाम किया। पर्दे के पीछे हॉर्न ने जिस अंदाज में खिलाड़ियों की मनोस्थिति व फिटनेस को सुधारा उसकी तारीफ सभी खिलाड़ियों ने की।

- फिर आया फुटबॉल विश्व कप 2014..:

जर्मनी की टीम 1990 के बाद से फुटबॉल विश्व कप नहीं जीत पाई थी। इस बीच वो कई बार फाइनल व ट्रॉफी के करीब तो पहुंचे लेकिन हर बार चूक जाते थे। इस बार टीम मैनेजमेंट ने माइक हॉर्न को विश्व कप से ठीक पहले टीम के साथ जोड़ने का फैसला लिया। हॉर्न ने ज्यादा कुछ नहीं किया बस वो जर्मन खिलाड़ियों को अपनी बोट पर समुद्र के एक दिलचस्प सफर पर ले गए और वहां उनके साथ बिताए वक्त और हॉर्न के ट्रेनिंग सेशन का जर्मन खिलाड़ियों पर इस कदर प्रभाव पड़ा कि आज वो विश्व चैंपियन बन गए। टीम के कप्तान फिलिप लाह्म ने भी हॉर्न के योगदान को सराहा और कहा कि हॉर्न ने हमारी आंखें खोल दीं और इस बात का अहसास कराया कि हमारे अंदर कितनी क्षमता मौजूद है।

- पहले अकेले भी किए हैं कई कारनामे:

अप्रैल 1997 में हॉर्न ने अकेले दुनिया की सबसे बड़ी नदी अमेजन को पार किया। वो 7000 किलोमीटर के उस सफर पर अकेले निकले और इस दौरान मछलियां खाकर उन्होंने गुजारा किया। ये अभियान उनका 6 महीने तक चला था। इसके बाद 1999 में उन्होंने एक नया रिकॉर्ड बनाया और 18 महीने में उन्होंने भूमध्यरेखा यानी 'इक्वेटर' पर पूरी दुनिया का चक्कर लगाया। ये चौंकाने वाली बात थी कि ये सफर उन्होंने महज अपने कदमों व समुद्र के जरिए ही किया। कोई गाड़ी, कोई मोटरसाइकिल या फिर किसी भी प्रकार के वाहन का उन्होंने प्रयोग नहीं किया। फिर साल 2004 में वो आर्कटिक सर्कल के लिए निकले और दो साल तीन महीने के इस सफर में वो पांच-छह देशों से गुजरे। इस 20 हजार किलोमीटर के सफर में भी उन्होंने किसी वाहन का इस्तेमाल नहीं किया। सिर्फ नाव और अपने कदमों का इस्तेमाल किया। फिर 2006 में वो उत्तरी धु्रव यानी नॉर्थ पोल के सफर को निकले और 60 दिन में इसको पूरा किया। इस दौरान कठिन परिस्थितियों में वो तकरीबन दो महीने तक हाड़कंपाऊ ठंड व बर्फ में अंधेरे में भी चलते रहे। वहां दो महीनों तक रात थी। फिर हिमालय में गैशरब्रम पाहाड़ी पर बिना ऑक्सीजन का सफर और ना जाने क्या-क्या...माइक के मुताबिक उन्होंने अपनी घूमने की दीवानगी को इस कदर अंजाम दिया कि वो आज बेहद खुश हैं और जब ये अनुभव किसी और के सपनों व हौसलों को उड़ान देने के काम आ जाए, तो क्या बात है।

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