दंगे के आरोपी भाजपा विधायकों से रासुका हटी, रिहाई का रास्ता साफ

मुजफ्फरनगर दंगे में सक्रिय भूमिका के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) में निरुद्ध किए गए भाजपा विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा पर रासुका समाप्त हो गया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) एडवाइजरी बोर्ड ने दोनों विधायकों पर रासुका के प्रस्ताव को अन

By Edited By: Publish:Fri, 08 Nov 2013 05:24 AM (IST) Updated:Fri, 08 Nov 2013 06:16 AM (IST)
दंगे के आरोपी भाजपा विधायकों से रासुका हटी, रिहाई का रास्ता साफ

लखनऊ, जागरण न्यूज नेटवर्क। मुजफ्फरनगर दंगे में सक्रिय भूमिका के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) में निरुद्ध किए गए भाजपा विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा पर रासुका समाप्त हो गया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) एडवाइजरी बोर्ड ने दोनों विधायकों पर रासुका के प्रस्ताव को अनुमोदित नहीं किया है। इस वजह से यह स्वत: निष्प्रभावी हो गया है। सरधना सीट से विधायक संगीत सोम पर आपत्तिजनक वीडियो शेयर करने और भड़काऊ भाषण देने, जबकि थानाभवन के विधायक सुरेश राणा पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। दोनों पर इन आरोपों में मुकदमे भी दर्ज हैं। सोम और राणा करीब डेढ़ माह से जेल में बंद हैं। रासुका हटने से बाद दोनों विधायकों की रिहाई का रास्ता साफ हो गया है।

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संगीत व राणा को बुंदेलखंड की जेलों पर भेजने जवाब-तलब

गृह विभाग के सूत्रों के मुताबिक सूत्रों के मुताबिक एडवाइजरी बोर्ड के वरिष्ठ न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह, सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एसएन सहाय व न्यायमूर्ति खेमकरन ने दो बार की सुनवाई के बाद यह निर्णय लिया। अक्टूबर माह में दोनों विधायकों और मुजफ्फरनगर के डीएम और एसएसपी की दो बार बोर्ड के समक्ष पेशी हुई। बताते हैं कि रासुका के लिए प्रशासन ने जो आधार बनाए थे, उसके बनिस्बत प्रमाणिक दस्तावेज नहीं दे सके। बोर्ड के इस फैसले से वहां के प्रशासन पर लग रहे एक तरफा कार्रवाई के आरोपों की भी पुष्टि हुई है। इस निर्णय से शासन में सन्नाटा खिंच गया है। मुजफ्फरनगर दंगे को लेकर दर्ज मुकदमे में राणा को गत 21 सितंबर को लखनऊ, जबकि अगले दिन संगीत सोम को मेरठ के सरधना से गिरफ्तार किया गया था।

हुकूमत ने खूब किए सितम, पर जोश नहीं हुआ कम

मुजफ्फरनगर, जागरण संवाददाता। दो माह पूर्व नंगला मंदौड़ की महापंचायत में विधायकों के तेवर देख सरकार हिल गई। इसके बाद सरकार के इशारे पर विधायकों पर खूब सितम ढहाया गया, लेकिन उनका जोश कम नहीं हुआ। उरई से लेकर बांदा तक वज्र वाहन में इधर से उधर अपराधियों की तरह सुलूक किया गया, लेकिन हुकूमत ने जितने भी सितम ढहाये विधायकों की ताकत बढ़ती गई। इस दौरान परिवार वालों से चंद लम्हे भी मुलाकात शायद हुई हो, पर जनता ने उन्हें हाथों हाथ लिया।

भाजपा विधायक संगीत सोम पर भड़काऊ भाषण देने के एक आरोप। आइटी एक्ट का भी एक मुकदमा। विधायक सुरेश राणा पर भड़काऊ भाषण देने के दो मामले। पुलिस ने राणा को लखनऊ से 20 सितंबर को गिरफ्तार कर मुजफ्फरनगर कोर्ट में पेश किया। 21 सितंबर की रात बांदा जेल भेज दिया। 21 सितंबर को सरधना में गिरफ्तारी देने के बाद सोम को कोर्ट में पेश कर उरई जेल भेज दिया। रासुका लगा दी गई। जेल में हत्या के आरोपी की तरह दोनों से मुलाकात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। भाजपाइयों ने उरई और बांदा की जेल में खूब बवाल काटा। फिर कोर्ट के आदेश पर मुजफ्फरनगर जेल की महिला बैरक में बंद किया गया। वहां चाय भी दोपहर 12 बजे मिलती। अखबार और टीवी की सुविधा नदारत थी।

नौ अक्टूबर को दोनों विधायकों को वज्र वाहन में लखनऊ ले जाया गया। तब सुलूक अजमल कसाब जैसा किया गया। वज्र वाहन में लुकाछिपी के रास्तों से दोनों को बोर्ड के सामने पेश किया गया। जुल्म की इंतिहा इस कदर रही की मच्छरों ने जेल में उन्हें बीमार बना दिया। संगीत सोम को फीवर तो राणा की रीढ़ में प्राब्लम के अलावा डायबिटीज। 22 अक्टूबर को भी बोर्ड में पेशी के दौरान सरकार के इशारे पर सख्ती का पहाड़ तोड़ा गया, पर विधायकों के तेवर चंद समर्थकों को देख जोश से लबरेज थे और निशाना सीधा आजम खां पर।

विधायकों की पीड़ा छलकी थी जुबान पर

रासुका बोर्ड के सामने पेशी पर ले जाए जाने के दौरान विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा की जुबान पर दर्द साफतौर आ गया। मीडिया के सामने बोले थे कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी विधायक हैं और हम भी। हमारे साथ सुलूक अपराधियों से भी बदतर हो रहा है, पर हम झुकने वाले नहीं।

परिजनों से भी जेल में नहीं हुई मुलाकात

जिला कारागार में बंद दोनों विधायकों पर सख्ती का आलम इस कदर था कि उनके परिवार वाले भी मुलाकात नहीं कर सके। सिर्फ वकीलों को मिलने के लिए छूट थी। वो भी वकालातनामे के साथ। सिर्फ विधानमंडल दल के नेता हुकुम सिंह और प्रदेश महासचिव पंकज सिंह समेत चंद लोग ही जेल में मिल सके।

सात का आंकड़ा विधायकों के लिए लकी

सात सितंबर को नगला मंदौड़ में महापंचायत थी। दोनों विधायक दमखम के साथ पंचायत में पहुंचे। दोपहर बाद जनपद सांप्रदायिक हिंसा की आग में धधक गया। सात नवंबर को ठीक दो माह पूरे होते ही बृहस्पतिवार देर शाम दोनों विधायकों से रासुका हटाने का फैसला बोर्ड ने कर दिया।

सरकार की हिटलिस्ट में रहे विधायक

सपा सरकार की हिटलिस्ट में दोनों विधायक टाप पर थे। बसपा सांसद कादिर राना, मौलाना जमील समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ सरकार ने नरमी बरती और दोनों विधायकों ने सरकार की जड़ें हिलाई तो वे टागरेट बन गए।

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