Lok Sabha Election 2024: इस सीट पर अजेय रही है कांग्रेस, हार के छोटे अंतर को पाटने में जुटी भाजपा, त्रिकोणीय मुकाबले में कौन मारेगा बाजी?
West Bengal Lok Sabha Election 2024 पश्चिम बंगाल की दक्षिण मालदा लोकसभा सीट पर कांग्रेस तृणमूल और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला है। यहां पर पिछले चुनाव यानी 2019 में भाजपा की ‘निर्भया दीदी 8222 वोटों के मामूली अंतर से हार गई थीं। कांग्रेस के दबदबे वाली इस सीट पर भाजपा हार के अंतर को पाटना चाहेगी। वहीं तृणमूल भी मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है।
इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी। मोदी लहर रही हो या ममता लहर। देश व राज्य में भले ही उन लहरों ने जो भी असर किया हो लेकिन मालदा के पितामह गनी खान चौधरी के गढ़ मालदा दक्षिण लोकसभा क्षेत्र में अब तक इन दोनों में से कोई भी लहर नहीं चल पाई है। इस 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यहां किसी एक पार्टी की कोई लहर नजर नहीं आ रही है। इस बार कांग्रेस (कांग्रेस व माकपा नीत वाममोर्चा गठबंधन), भाजपा और तृणमूल के बीच त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है।
क्या है सीट का इतिहास?
वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद अपने गठन से लेकर अब तक यानी 2009, 2014 और 2019 तीनों ही लोकसभा चुनावों में देश व राज्य की लहरों के विपरीत यह सीट कांग्रेस की झोली में ही गई। मालदा के पितामह अबू बरकत अताउर गनी खान चौधरी उर्फ बरकत दा के भाई अबू हाशेम खान चौधरी उर्फ डालू दा यहां से अपनी जीत की हैट्रिक लगाते हुए लगातार तीन बार यहां के सांसद निर्वाचित हुए।
अब 86 वर्ष के हो चुके अबू हाशेम खान चौधरी ने अपनी उम्र व सेहत का हवाला देते हुए चुनावी राजनीति से विश्राम ले लिया है। इस बार उनकी जगह उनके 52 वर्षीय पुत्र कनाडा से स्नातक ईसा खान चौधरी यहां से कांग्रेस उम्मीदवार हैं, जो कि इसी लोकसभा क्षेत्र के वैष्णवनगर और सूजापुर के विधायक रह चुके हैं। गत 2021 के विधानसभा चुनाव में वह अपनी सूजापुर विधानसभा सीट तृणमूल कांग्रेस के मोहम्मद अब्दुल गनी के हाथों गंवा बैठे।
पिछले चुनाव में मिली थी हार
इससे पूर्व ईसा खान चौधरी वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मालदा उत्तर लोकसभा सीट के कांग्रेस उम्मीदवार हुए थे लेकिन जीत नहीं पाए। क्योंकि, तृणमूल कांग्रेस की ओर से उनकी प्रतिद्वंद्वी उनकी अपनी ही फुफेरी बहन मौसम बेनजीर नूर थीं। आपस की लड़ाई में दोनों हारे और जीत तीसरे को मिली। कुल 5,09,524 मत पा कर खगेन मुर्मु विजयी हुए और पहली बार मालदा उत्तर लोकसभा सीट भाजपा की झोली में गई।
तृणमूल कांग्रेस की मौसम नूर को 4,25,236 मतों के साथ द्वितीय और कांग्रेस के ईसा खान चौधरी को 3,05,270 मतों के साथ तृतीय स्थान मिला। मालदा दक्षिण लोकसभा सीट से भाजपा ने दोबारा इस बार भी श्रीरूपा मित्रा चौधरी उर्फ निर्भया दीदी को मैदान में उतारा है जो कि जानी-मानी समाजसेविका रही हैं। इसके साथ ही वह इसी लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत इंग्लिश बाजार की विधायक भी हैं।
मामूली अंतर से मिली थी हार
वह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मात्र 8,222 वोट से कांग्रेस के दिग्गज अबू हाशेम खान चौधरी से हार गई थीं, जिन्हें 4,44,270 वोट मिले थे और श्रीरूपा मित्रा चौधरी को 4,36,048 वोट आए थे। इस बार मालदा दक्षिण लोकसभा सीट से राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने बड़ी मिन्नतें करके शाहनवाज अली रैहान को अपना उम्मीदवार बनाया है।
वह लंदन में रहने वाले, मालदा मूल के ही हैं और इतिहासकार व पूर्व पत्रकार हैं। यह शाहनवाज का चुनावी राजनीति में प्रथम-प्रवेश है और सीधे-सीधे मालदा के पितामह माने जाने वाले एबीए गनी खान चौधरी के गढ़ में उनके ही वंशजों से मुकाबला है।
क्या है वर्तमान राजनीतिक समीरकण
मालदा दक्षिण लोकसभा सीट का वर्तमान राजनीतिक समीकरण यही है कि, लड़ाई किसी भी एक राजनीतिक पार्टी के पक्ष में एकतरफा नहीं कही जा सकती है। इस बार लड़ाई कांग्रेस, भाजपा व तृणमूल के बीच त्रिकोणीय है। 2009 और 2014 में कांग्रेस और वाममोर्चा का गठबंधन नहीं था। मगर, इस बार वे आपस में गठबंधन कर लड़ रहे हैं। इसका कांग्रेस को फायदा ही होगा नुकसान नहीं।
भाजपा का जनाधार पहले की तुलना में यहां काफी बढ़ा है। मगर, इस लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत सात में से छह सीटों पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है। भाजपा के खाते में एक ही विधानसभा सीट है। जबकि यहां से विधानसभा में कांग्रेस शून्य हो गई है। आजादी के बाद से अब तक लगातार गनी खान चौधरी के गढ़ माने जाने वाले मालदा में बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में सेंध लग गई। उनके अजेय किले के एक हिस्से मालदा उत्तर लोकसभा पर भाजपा की जय हो गई।
राजनीति ने ली करवट
उसी दिन से मालदा में नई राजनीति ने करवट लेनी शुरू कर दी। मालदा उत्तर सीट पर जीत के बाद भाजपा अब मालदा दक्षिण सीट सीट पर भी नजरें गड़ाए हुए है। वहीं, विशुद्ध कांग्रेसी गनी व उनके कुनबे के गढ़ पर तृणमूल कांग्रेस की भी नजरें हैं। जबकि, कांग्रेस भी इस बार तमाम गुटबाजी को दरकिनार कर अपने पारंपरिक गढ़ को बचाने को आमादा है।
इस बार यह सीट किसकी होगी, इसका पता तो तीसरे चरण के तहत यहां सात मई को मतदान और आगामी चार जून को देश भर के साथ मतदान के बाद ही पता चल पाएगा।