निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हो सकता है लेकिन निर्बाध नहीं - केन्द्र

निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।

By Manish NegiEdited By: Publish:Wed, 26 Jul 2017 08:51 PM (IST) Updated:Wed, 26 Jul 2017 08:51 PM (IST)
निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हो सकता है लेकिन निर्बाध नहीं - केन्द्र
निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हो सकता है लेकिन निर्बाध नहीं - केन्द्र

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। निजता के अधिकार को लगातार मौलिक अधिकार मानने से इन्कार कर रही केन्द्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हो सकता है लेकिन वो निर्बाध नहीं है। उसका हर पहलू मौलिक अधिकार का हिस्सा नहीं माना जा सकता। ये हर केस पर अलग अलग निर्भर करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा मामले (आधार के लिए आंकड़े एकत्र करना) में यह मौलिक अधिकार नहीं माना जाएगा। निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।

दिन भर से निजता को मौलिक अधिकार मानने से इन्कार कर रहे अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दोपहर के बाद ये बात तब कही जब कोर्ट ने उनसे कहा कि उनकी दलीलों का मतलब तो यही निकलता है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार के दायरे में आता है लेकिन ये पूर्ण अधिकार नहीं है और इस पर तर्कसंगत नियंत्रण लगाया जा सकता है। ये हर केस की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अगर वे ऐसा कहना चाहते हैं तो इस बावत साफ साफ बयान दे दें। ये मामला ही खतम हो जाएगा। कोर्ट उनका बयान दर्ज कर लेगा। इस पर वेणुगोपाल ने कहा कि वे अपना केस लड़ेंगे वे केस नहीं छोड़ रहे है। उन्हें पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष निजता के अधिकार पर बहस करने का मौका दिया जाए ताकि वे साबित कर सकें कि भारत एक विकासशील देश है और यहां की परिस्थितियां विकसित देशों की परिस्थितियों से भिन्न हैं और इसलिए यहां निजता के अधिकार के मायने और पहलू भी भिन्न होंगे।

पीठ ने कहा कि आधार पर यह पीठ विचार नहीं कर रही। यहां निजता के मौलिक अधिकार होने या न होने के मुद्दे पर सुनवाई चल रही है। आप जिम्मेदार विधि अधिकारी हैं और आप अपना स्टैंड ले सकते हैं। इसके बाद वेणुगोपाल ने उपरोक्त बात कही लेकिन यह भी कहा कि ये उनकी वैकल्पिक दलील है। अगर कोर्ट निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानती भी है तो भी उसे मौजूदा परिस्थितियों, कानून के उद्देश्य (आधार कानून) और कोर्ट के पूर्व आदेशों को ध्यान मे रख कर व्यवस्था देनी चाहिए। वेणुगोपाल ने यह भी कहा कि वे मुख्य मामले में अपनी बहस जारी रखेंगे। जब वेणुगोपाल ने ये बयान दिया तो यूआइडीएआई की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सुन्दरम ने तत्काल कहा कि वे अभी पक्ष रखेंगे। उनकी मुख्य दलील यही है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। उधर एक अन्य राज्य की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने भी इस पहलू पर पक्ष रखने की बात कही।

सुबह सुनवाई की शुरुआत में चार राज्यों पंजाब, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और पुद्दूचेरी की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा कि निजता के बारे में एमपी शर्मा और खड़क सिंह के फैसलों की आज के समय में प्रासंगिकता नहीं रह गई है। टक्नोलाजी के युग में कोर्ट को इस मामले में नये सिरे से विचार करना होगा। उनके बाद अटार्नी जनरल ने केन्द्र का पक्ष रखना शुरू किया। उन्होंने कहा कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है। संविधान में इसे मूल अधिकार का दर्जा दिया जा सकता था लेकिन संविधान निर्माताओं ने जानबूझ कर इसे छोड़ दिया। निजता का अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है लेकिन इसके कई पहलू हैं। अनुच्छेद 21 के तहत मिला स्वतंत्रता का अधिकार भी पूर्ण अधिकार नहीं है। उन्होने कहा कि आधार योजना गरीबी रेखा के नीचे रह रहे 27 करोड़ लोगों के जीवन के अधिकार की रक्षा करती है। इस पहलू पर ध्यान दिया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान पीठ के न्यायाधीश भी उदाहरणों के साथ सवाल पूछते रहे। मामले में गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।

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