'ट्रंप प्रशासन में दक्षिण एशियाई नागरिकों के खिलाफ होने वाली घटनाओं में हुआ सुधार'

भारतीय मूल के अमेरिकी एक्टर-डायरेक्टर मनीष दयाल ने अपनी नई फिल्म 'फिफ्टीन ईयर्स लेटर' के माध्यम से एक नई कहानी कहने की कोशिश की है।

By Srishti VermaEdited By: Publish:Thu, 31 May 2018 03:50 PM (IST) Updated:Thu, 31 May 2018 05:11 PM (IST)
'ट्रंप प्रशासन में दक्षिण एशियाई नागरिकों के खिलाफ होने वाली घटनाओं में हुआ सुधार'
'ट्रंप प्रशासन में दक्षिण एशियाई नागरिकों के खिलाफ होने वाली घटनाओं में हुआ सुधार'

नई दिल्ली (आइएएनएस)। सिनेमा के क्षेत्र में भारतीय प्रतिभाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना नाम मजबूती से दर्ज करा रही है। ये बात भारतीय अमेरिकी एक्टर मनीष दयाल ने साबित कर दिखाई है। मनीष दयाल के मुताबिक वे भारतीय सिनेमा देख कर बड़े हुए हैं। उनका मानना है कि अब अमेरिका में भारतीय अभिनेताओं और निर्देशकों के साथ नस्लवाद की नीति नहीं अपनाई जाती है हालात पहले से काफी बदल गए हैं। उन्होंने इस ओर इशारा किया कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के अंतर्गत दक्षिण एशिया, सिख, अरब और मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली घटनाओं में सुधार हुआ है।

आपको बता दें कि मनीष जल्द ही अपनी फिल्म 'फिफ्टीन इयर्स लेटर' के साथ पर्दे पर आ रहे हैं। इस फिल्म को अप्रैल में लॉस एंजेलिस में भारतीय फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था। इसमें नस्लवाद, पुलिस की बर्बरता और 9-11 के बाद अमेरिका के बदले हालात के बारे में बताया गया है। मनीष कहते हैं कि, मैं एक ऐसी कहानी बनाना चाहता था जो आज के अमेरिका के बारे में बात करता हो। ये कहानी दो जवान लड़कों की है, जिनकी जिंदगी 9-11 त्रासदी के बाद कितनी बदल गई है। 

मुझे उम्मीद है कि ये फिल्म नस्लवाद, न्याय और कानून प्रवर्तन पर चर्चा को बढ़ावा देगा। कहा कि दक्षिण एशियाई और अन्य कई समुदायों की कई कहानियां ऐसी हैं जिसे नहीं कही जाती है। इसलिए मैं अपनी पहली कहानी के माध्यम से इसे बताना चाहता था। मनीष ने इसके पहले रुबीकॉन, हाल्ट, कैच फायर, 90210 जैसे शोज में काम किया है। वर्तमान में वे स्टार वर्ल्ड पर प्रसारित होने वाले शो द रेसीडेंट में डॉक्टर देवोन प्रवेश के किरदार को निभा रहे हैं।

दक्षिण एशियाई अमेरिकन लोगों को आम तौर पर इस तरह की फिल्मों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है यही कारण है कि मैं उनके लिए एक ऐसी कहानी लेकर आना चाहता था। मनीष कहते हैं कि ये देखना दिलचस्प होगा कि हम स्क्रीन पर किस तरह काम कर रहे हैं। क्या हम सिर्फ अपने विषय को कह पाते हैं कि उसका कुछ प्रभाव भी पड़ता है।

मनीष कहते हैं कि मैं एक भारतीय अमेरकिन हूं। मेरी मां कनैडियन थी, मेरे पिता अग्रेज थे। मैं बाइबल औऱ गीता दोनों पढ़ता था। मेरे माता-पिता जैसे प्रवासी इस देश में अपनी नई जिंदगी शुरू करने के लिए आए थे। मनीष ने आगे कहा कि उनके जीवन के संघर्ष ने उन्हें इस इंडस्ट्री में प्रवेश करने में मदद की। इसके साथ ही हमें अपनी साख भी बनाए रखनी पड़ती है। कई मौकों पर मुझे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। एक घटना को याद करते हुए मनीष ने कहा, मैं जब यंग था तब एक कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझसे पूछा कि मैं कहां से हूं।

मुझे पता था कि वह मुझसे क्या जानना चाहती है। वह मुझसे कहलवाना चाहती थी कि मैं भारत से हूं। लेकिन मैंने कहा कि मैं अमेरिकन हूं, तब उसने पूछा कि आप वास्तव में कहां से हैं। इस बिजनेस में अक्सर इस तरह के सवालों का सामना करना पड़ता है। ये आपको तय करना होता है कि आप उनके अनुसार उत्तर देना चाहते हैं कि अपने मुताबिक। लेकिन उनकी महानता है कि उन्होंने अपनी फिल्म के लिए इस तरह के क्षेत्रवाद को सामने नहीं रखा।

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