रेलवे को नहीं रास आ रहा एनआइडी और निफ्ट का साथ

डेढ़ साल बीतने के बाद भी दोनों राष्ट्रीय संस्थान कोई ढंग का डिजाइन देने में नाकाम रहे हैं। लिहाजा रेलवे को खुद अपने डिजाइनों से काम चलाना पड़ रहा है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Wed, 28 Sep 2016 04:01 AM (IST) Updated:Wed, 28 Sep 2016 05:08 AM (IST)
रेलवे को नहीं रास आ रहा एनआइडी और निफ्ट का साथ

नई दिल्ली, [संजय सिंह]। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (एनआईडी) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट) की मदद से बोगियों और बेडरोल के डिजाइन सुधारने की रेलवे की स्कीम को झटका लगा है। डेढ़ साल बीतने के बाद भी दोनों राष्ट्रीय संस्थान कोई ढंग का डिजाइन देने में नाकाम रहे हैं। लिहाजा रेलवे को खुद अपने डिजाइनों से काम चलाना पड़ रहा है।

बेहतर डिजाइन के लिए रेलवे ने 2015 में दो समझौते किए थे। इनमें एक समझौता अहमदाबाद के एनआईडी के साथ किया गया था। इसके तहत उसे यात्री बोगियों के अलावा स्टेशनों की इमारतों तथा डिस्प्ले व साइन बोर्डों आदि के बेहतर डिजाइन तैयार करके देने थे।

दूसरा समझौता दिल्ली स्थित फैशन संस्थान निफ्ट के साथ किया गया था। इन्हें रेलवे को रेल यात्रियों के लिए नए किस्म के बेडरोल डिजाइन करके देने थे। लेकिन दोनों ही संस्थान रेलवे की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं।


एनआईडी के साथ समझौते के तहत एनआईडी कैंपस में रेलवे रिसर्च सेंटर भी खोला गया है। इसके लिए एनआईडी को रेलवे की ओर से 10 करोड़ रुपए की मदद भी दी गई है। एक संयुक्त समिति पर इसके कामकाज की निगरानी की जिम्मेदारी है।

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इसके बावजूद यह सेंटर अभी तक अपनी उपयोगिता साबित नहीं कर सका है। ऐसा नहीं है कि सेंटर ने कोई काम नहीं किया है। ऊपर की बर्थ पर चढ़ने के लिए सुविधाजनक सीढ़ियां बनाने में इसे कामयाबी मिली है। लेकिन चारों दरवाजों को पारदर्शी खिड़की युक्त बनाने और हर दरवाजे पर डिजिटल रिजर्वेशन चार्ट लगाने का काम पूरा नहीं हुआ है।

दूसरी ओर, बेडरोल के मामले में निफ्ट की सलाह पर यात्रियों के बीच एक सर्वे कराया गया। लेकिन उसके आधार पर तैयार नया बेडरोल मिलना अभी बाकी है। इसका परिणाम यह हुआ है कि नई ट्रेनों के कोच के लिए रेलवे को खुद अपने डिजाइन तैयार करने पड़ रहे हैं।

पिछले दिनों चलाई गई और निकट भविष्य में चलाई जाने वाली प्रायः सभी ट्रेनों के कोच रेलवे कोच फैक्ट्रियों के अपने डिजाइन के आधार पर तैयार किए गए हैं। फिर चाहे वह महामना के कोच हों या दीनदयाल, हमसफर अथवा तेजस के।

इसी तरह जब तक बेडरोल का डिजाइन नहीं बदल जाता, यात्रियों को डिस्पोजेबल बेडरोल देकर फुसलाया जा रहा है। जबकि रेलकर्मियों की यूनीफार्म डिजाइन करने के लिए फैशन डिजाइनर रितु बेरी की सेवाएं ली गईं।

रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, "एनआईडी और निफ्ट दोनों ने निराश किया है। इनके साथ समझौते इसलिए किए गए थे ताकि काम बढ़िया होने के साथ जल्दी भी हो। लेकिन दोनों सरकारी विभागों की तरह ही काम कर रहे हैं। जब भी पूछो जवाब मिलता है-जी, कर रहे हैं।"

वैसे बोर्ड के दूसरे अफसरों को इसमें सामंजस्य की कमी दिखाई देती है। उनका कहना है कि एनआइडी और निफ्ट स्वतंत्र प्रकृति के कलात्मक संस्थान हैं। बाबू मानसिकता वाले रेलवे इंजीनियरों के साथ उनका तालमेल बैठना बहुत मुश्किल है।

एनआईडी के जिम्मे डिजाइन
-स्टेशन बिल्डिंग, प्लेटफार्म, फुट ओवरब्रिज आदि की कलर स्कीम
-स्टेशनों के नाम के बोर्ड
-डिस्प्ले बोर्ड, साइन बोर्ड
-कोच टंकियों में पानी भरने की प्रणाली
-स्टेशन, प्लेटफार्म के टायलेट
-कचरा निस्तारण के लिए डस्टबिन
-"मे आइ हेल्प यू", टिकट कियास्क
-प्रवेश व निकास द्वार व पार्किंग
-दिव्यांगों के लिए रैम्प
-एस्केलेटर के लिए उपयुक्त जगह
-स्टेशन की कबूतर मुक्त छतें
-पेयजल बूथ
-मोबाइल, लैपटॉप चार्जिंग प्वाइंट
-वर्षा जल संग्रहण प्रणाली
-अवरोधमुक्त स्टेशन परिसर

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