जिन बागों में कभी लाल-लाल सेब लटकते थे, आज बह रहा खून

आज आतंकवाद की पनाहगाह बने दक्षिण कश्मीर के पुलवामा, अनंतनाग, शोपियां और कुलगाम जैसे जिले कभी अपने रसीले सेबों के बगानों के लिए मशहूर थे।

By Digpal SinghEdited By: Publish:Sat, 20 May 2017 04:33 PM (IST) Updated:Sat, 20 May 2017 05:12 PM (IST)
जिन बागों में कभी लाल-लाल सेब लटकते थे, आज बह रहा खून
जिन बागों में कभी लाल-लाल सेब लटकते थे, आज बह रहा खून

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। पिछले कुछ महीनों से कश्मीर घाटी में एक के बाद एक आतंकी घटनाएं सामने आयी हैं। लेकिन सुरक्षाबलों के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि दक्षिण कश्मीर के हिस्से में सामने आ रहे ज्यादातर आतंकी वहीं के पुराने रहवासी हैं। खुफिया जानकारी के अनुसार कश्मीर घाटी के 10 जिलों में 200 आतंकी सक्रीय हैं और इनमें से भी 90 दक्षिण कश्मीर से हैं।

आज आतंकवाद की पनाहगाह बने दक्षिण कश्मीर के पुलवामा, अनंतनाग, शोपियां और कुलगाम जैसे जिले कभी अपने रसीले सेबों के बगानों के लिए मशहूर थे। कभी यहां के बगानों ने लाल-लाल खूबसूरत और रसीले सेबों का नजारा देखने लायक होता था। इन बागानों में कई हिन्दी फिल्मों की शूटिंग भी होती थी। आज यह बागान आतंकियों और सेना के बीच मुठभेड़ के ठिकाने बन गए हैं। अब यहां लाल-लाल सेब कम और लाल खून ज्यादा दिखायी पड़ता है।

पीडीपी से मोहभंग

जानकारों का तो यहां तक मानना है कि दक्षिण कश्मीर में ऐसे हालात के लिए राजनीति दोषी है। वे मानते हैं कि राज्य की सत्तारूढ़ पीडीपी से जनता का मोहभंग हो रहा है और यही कारण है कि अब स्थानीय लोग भी हथियार उठा रहे हैं।

पीडीपी की अपनी राजनीति के कारण पार्टी की स्थानीय उग्रवादी गुटों और जमात-ए-इस्लामी जैसे सामाजिक धार्मिक संगठनों के बीच अच्छी पैठ थी। इस क्षेत्र को महबूबा मुफ्ती के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का गढ़ माना जाता था।

जानकारों का कहना है, 'स्थानीय स्तर पर पीडीपी की पकड़ अब वैसी नहीं रही। खासकर भाजपा के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाने के बाद उसकी स्थिति बहुत बिगड़ी है। यहां कई लोग खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। यहां तक कि पीडीपी के ही कुछ नेताओं का भी मानना है कि क्षेत्र में अब आतंकवादी ज्यादा सक्रिय हो गए हैं।'

पत्थरबाजी की शुरुआत

मई 2009 में शोपियां में दो लड़कियों के कथित बलात्कार और हत्या के बाद इसी दक्षिण कश्मीर के हिस्से में पत्थरबाजी की घटनाएं भी सामने आयीं थीं। तब से ही स्थानीय लोगों में प्रशासन के लिए गुस्सा अब तक चला आ रहा है और अक्सर होने वाली घटनाएं इस गुस्से को और बढ़ाती ही हैं।

हिजबुल मुजाहिद्दीन का कमांडर बुरहान वानी पिछले साल सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। वह सोशल मीडिया पर स्थानीय युवकों के साथ जुड़ा था, उसने कई युवाओं को आतंकवाद की तरफ प्रेरित किया। यही नहीं वीडियो में वानी सेब के बगीचों के बीच बंदूक लिए हुए दिखता है। वानी ने घाटी के इस हिस्से में आतंकवाद को एक चेहरा दिया। जबकि अब तक आतंकी अपना चेहरा छिपाने में ही भलाई समझते थे।

अधिकारियों का कहना है कि वानी के वीडियो ने आतंकवादियों के लिए अच्छा काम किया। इसके बाद काफी संख्या में स्थानीय युवा आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए। जहां 2013 में सिर्फ 31 स्थानीय युवा आतंकी बने वहीं 2015 में 66 युवकों में आंतकवादी की राह पकड़ी। इस साल अप्रैल तक ही यह आंकड़ा 88 तक पहुंच गया है।


हुर्रियत का सियासी खेल

26 राजनीतिक पार्टियों, सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने मिलकर 1993 में ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन किया। इनका एक संयुक्त मकसद कश्मीर को भारत से अलग करने का है। हुर्रियत को पाकिस्तान की ओर से भरपूर समर्थन मिलता रहा है। हाल के समय में सेना पर हुई पत्थरबाजी में भी हुर्रियत द्वारा स्थानीय युवाओं को भड़काने और पैसे दिए जाने की बातें सामने आती रही हैं।


हुर्रियत नेताओं के मुखौटे

पूर्वोत्तर विकास मंत्री जनरल वीके सिंह कश्मीर की हुर्रियत कांफ्रेंस को आतंकी संगठन बताते हैं। उन्होंने इसके नेताओं को जेल में डालने की बात कही। हंगामा तो मचना ही था, लेकिन इस जवाब ने अलगाववादियों की नीति और नीयत दोनों पर ही सवाल खड़े कर दिए। दरअसल हुर्रियत कांफ्रेंस कश्मीरी युवकों को तो हिंसा के रास्ते पर ले जाना चाहता है, लेकिन जब बात अपने बच्चों की आती है तो वे उन्हें इससे दूर रखते हैं।

ये अलगाववादी बार-बार कश्मीरियों को इस बात की हिदायत देते हैं कि वे अपने बच्चों को सेना द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में पढ़ने न भेजें। इससे कश्मीरी बच्चे अपने धर्म और संस्कृति से दूर हो जाएंगे। जबकि इन नेताओं के अपने बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर विदेश में ऐशो आराम की जिंदगी जी रहे हैं। पिछले साल कश्मीर में 20 से अधिक स्कूलों पर हुए आतंकी हमलों में अलगाववादियों के हाथ होने की आशंका जताई गई थी।

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