KBC: बिना स्कूल गए सैकड़ों बच्चों की जिंदगी सवार रहे गाजी, बिग बी भी रह गए हैरान
पश्चिम बंगाल के सुंदरवन निवासी जलालुद्दीन गाजी ने न सिर्फ अपने जीवन की दिशा बदली बल्कि सैकड़ों बच्चों का भविष्य भी संवार रहे हैं।
नई दिल्ली (जेएनएन)। लोकप्रिय गेम शो केबीसी यानी कौन बनेगा करोड़पति के 10वें सीजन में शुक्रवार रात को हॉट सीट पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के सामने एक ऐसा शख्स बैठा जो खुद पढ़ नहीं सका लेकिन आज सैकड़ों बच्चों के जीवन में ज्ञान का उजियारा फैला रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं पश्चिम बंगाल के सुंदरवन के निवासी जलालुद्दीन गाजी। उनका साथ दिया बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान ने। दोनों मिलकर केबीसी में 25 लाख रुपये जीते।
जलालुद्दीन यानी प्रेरणा का स्रोत
केबीसी कार्यक्रम के दौरान अमिताभ बच्चन द्वारा जलालुद्दीन गाजी के जीवन संघर्ष को लेकर उनसे पूछे गए सवालों के जवाब में जो कहानी सामने आई वह काफी प्रेरणादायक है। पश्चिम बंगाल के सुंदरवन इलाके में जहां जलालुद्दीन का जन्म हुआ, वहां चारों तरफ घने जंगल और रायल बंगाल टाइगर का खतरा तो था ही जीवन यापन के साधन से लेकर शिक्षा-दीक्षा की सुविधाओं का नितांत अभाव था। बकौल गाजी वे पढ़ने में बहुत होशियार थे और चाहते थे कि पढ़-लिखकर डॉक्टर या मजिस्ट्रेट बनेंगे, लेकिन किस्मत को यह मंजूर नहीं था क्योंकि उनके पिता के पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए कक्षा दो के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
शुरु हुआ जीवन का संघर्ष
जलालुद्दीन ने बताया कि कोलकाता में रहने के दौरान वे हाथ रिक्शा चलाकर जीवन यापन कर रहे थे कि उनकी दोस्ती इलाहाबाद के एक शख्स से हुई जो टैक्सी चलाता था। उनके अनुरोध पर वह शख्स उन्हें ड्राइविंग सिखाने के लिए तैयार हो गया। सुबह वे हाथ रिक्शा चलाते और शाम को टैक्सी चलाना सीखते। टैक्सी चलाना सीखने के बाद वे टैक्सी ड्राइवर बन गए और उनके जीवन की गाड़ी चलने लगी, लेकिन उनके मन में कहीं न कहीं अपने न पढ़ पाने का गम कचोटता रहा।
जरूरतमंद बच्चों की मदद शुरू की
इस जिद्दोजहद ने जलालुद्दीन गाजी के जीवन को एक ऐसे रास्ते पर डाल दिया जिस पर चलकर वे आज सफलता के मुकाम पर पहुंचे हैं। उन्होंने अपनी ही तरह गरीबों को टैक्सी चलाने का प्रशिक्षण देने शुरू किया। जो शख्स टैक्सी चलाना सीख जाता उसे ड्राइवर की नौकरी भी दिलवाना शुरू किया। इसके बदले में वे उनसे दो वादा लेते थे। पहला हर ड्राइवर अपनी कमाई से पांच रुपये महीने का चंदा देगा और अपनी तरह के दो लोगों को टैक्सी चलाना सिखाएगा। इस तरह जलालुद्दीन के साथ अब तक 500 टैक्सी ड्राइवर जुड़ चुके हैं।
सवारियों से मांगते थे चंदा
ड्राइवरों से चंदा लेकर वे गरीब बच्चों को किताबें मुहैया कराने लगे। लेकिन उनका मन इससे नहीं भरा। उन्हें लगा कि गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोलना चाहिए। इसके लिए धन जुटाने के लिए उन्होंने अपनी टैक्सी में बैठने वाली सवारियों से चंदा मांगना शुरू किया। चंदे से गांव में अपनी जमीन पर ही छोटा सा स्कूल खोला। एक स्कूल से दो स्कूल बने। लेकिन वे चाहते थे कि कोई ऐसा स्कूल बने जो मुख्य सड़क के पास हो ताकि उसमें ज्यादा से ज्यादा बच्चों को शिक्षा दे सकें। इसी दौरान उनकी मुलाकात दो ऐसे दानिशमंद लोगों से हुई जिन्होंने जलालुद्दीन को सड़क किनारे चार बीघा से ज्यादा जमीन खरीद कर दे दी और स्कूल बनवाने के लिए भी वित्तीय मदद की।
गांव-गांव घूमकर इकट्ठा करते थे बच्चे
जलालुद्दीन ने बताया कि गांव के लोग बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि पढ़-लिखकर क्या होगा। इसलिए शुरुआत में उन्हें अपने स्कूल के लिए बच्चे जुटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। वे छोटा का भोंपू लेकर गांव-गांव जाते और बच्चों के माता-पिता को उन्हें स्कूल भेजने के लिए मनाते। धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे और कारवां निकल पड़ा।
अभी अधूरा है सपना
बकौल जलालुद्दीन गाजी, उनका सपना अभी अधूरा है। यह तब पूरा होगा जब उनका अपना एक कॉलेज होगा और उसमें से निकले विद्यार्थी डॉक्टर, वकील और मजिस्ट्रेट बनेंगे।