आखिर क्यों पाकिस्तान की राजधानी ढाका नहीं कराची को बनाया गया

ज्यादा आबादी और क्षेत्रफल होने के बावजूद पूर्वी हिस्से के ढाका को राजधानी न बनाए जाने से लोगों में काफी असंतोष था।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Mon, 17 Jul 2017 06:41 PM (IST) Updated:Tue, 18 Jul 2017 11:11 AM (IST)
आखिर क्यों पाकिस्तान की राजधानी ढाका नहीं कराची को बनाया गया
आखिर क्यों पाकिस्तान की राजधानी ढाका नहीं कराची को बनाया गया

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। पूर्वी पाकिस्तान का अलग होना पाकिस्तान के लिये सबसे बड़ा झटका था। साल 1970 तक आते-आते पाकिस्तान के दोनों धड़ों में इतना विवाद हो चुका था कि पूर्वी पाकिस्तान में राष्ट्रीयता की भावना बेहद कमजोर हो चुकी थी। जिसका परिणाम ये हुआ कि पूर्वी पाकिस्तान का क्रूरतापूर्वक और हिंसक विच्छेदन हो गया। सवाल ये उठता है कि आखिर वो क्या वजह रही जिसके चलते पाकिस्तान की राजधानी ढाका ना होकर कराची को बनाया गया और क्यों पूर्वी पाकिस्तान उससे अलग हुआ?

बांग्लादेश के अलग होने की वजह
दरअसल, पाकिस्तान के दोनों हिस्सों की भौगोलिक परिस्थितियां बेहद अलग थीं। एक दूसरे की सामान्य सीमा के हजारों मील दूर होना, उसका भारतीय क्षेत्र और उसके प्रभाव से घिरा होना, ये दोनों अंगों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर संघर्ष की बड़ी वजह बनी। पाकिस्तान के दोनों अंगों के बीच बनी गंभीर स्थिति के बाद उसके दो टुकड़े हो गए। पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने का परिणाम ये हुआ कि पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय साख में गिरावट आयी और इसके शक्तिशाली सैन्य ताकत को तगड़ा झटका लगा।

पाकिस्तान की राजधानी कराची क्यों
दरअसल, समस्या 1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद ही शुरू हो गई थी। पाकिस्तान के भारत से अलग होने के फौरन बाद पूर्वी पाकिस्तान ने दावा किया कि उनकी बड़ी आबादी (55 फीसद आबादी जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में सिर्फ 45 फीसद) थी और वह पश्चिमी हिस्से के मुकाबले बहुमत में थे। इसलिए, लोकतांत्रिक रूप से पाकिस्तान की संघीय राजधानी कराची ना होकर ढाका होना चाहिए।

कराची क्योंकि सरकार में शामिल लोगों, मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों, उद्योगपतियों के रहने की जगह थी लिहाजा उसका राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों पर असर हुआ। जिसके चलते उसे काफी फायदा हुआ। लेकिन, पूर्वी पाकिस्तान के लोग इस तरह की सुविधाओं से वंचित रह गए क्योंकि वे लोग राजधानी से हजारों मील दूर थे। हालांकि, शुरूआत में भारत से वहां गए लोगों को राजधानी कराची ने अपनी ओर आकर्षित किया।

कराची के राजधानी बनने से गुस्से में पूर्वी पाकिस्तान
पाकिस्तान की राजधानी की लोकेशन को लेकर ऐसा कहा गया कि पाकिस्तान के दो हिस्से के बीच बहुत बड़ा असंतुलन पैदा हो गया। हालत ये हो गई कि राष्ट्रीय संपदा और विशेषाधिकार, अच्छी नौकरी पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों को मिलने लगी क्योंकि वे अपने पक्ष में फैसला कराने में सक्षम थे। दूसरा कारण यह कि पूर्वी हिस्से में जूट बेचकर जो विदेशी मुद्रा कमाई जाती थी उसके रक्षा के नाम पर खर्च कर दिया जाता था। पूर्वी पाकिस्तान के लोग यह सवाल उठाते थे कि कश्मीर के लिए यह खर्च कितना तर्कसंगत है जबकि ये उपयागी कार्यों जैसे- बाढ़ को रोकने के लिए बांध और बैरियर बनाने, गरीबी और अशिक्षा को दूर करने, खाद्यान्न की आपूर्ति और पूर्वी पाकिस्तान बढ़ती जनसंख्या के लिए घर की जरूरत थी। तीसरा, पूर्वी हिस्से के लोगों क्षेत्रीय पूर्वाग्रह के चलते ऐसा मानते थे कि जितनी भी अच्छी नौकरी है वह पश्चिमी पाकिस्तान के लोग उसे ले लेते हैं। इस तरह पाकिस्तान ने अपने इतिहास में कई ऐसी गलतियां की। 

ऐसे बना बांग्लादेश
1955 में पाकिस्तान सरकार ने पूर्वी बंगाल का नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्तान कर दिया। पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान की उपेक्षा और दमन की शुरुआत यहीं से हो गई और तनाव का स्त्तर का दशक आते आते अपने चरम पर पहुंच गया। पाकिस्तानी शासक याहया खां की ओर से लोकप्रिय अवामी लीग और उनके नेताओं को प्रताड़ित किया जाने लगा, जिसके फलस्वरुप बंगबंधु शेख मुजीवु्र्रहमान की अगुआई में बांग्लादेशा का स्वाधीनता आंदोलन शुरु हुआ।

बांग्लादेश में खून की नदियां बही, लाखों बंगाली मारे गये तथा 1971 के खूनी संघर्ष में दस लाख से ज्यादा बांग्लादेशी शरणार्थी को पड़ोसी देश भारत में शरण लेनी पड़ी। भारत इस समस्या से जूझने में उस समय काफी परेशानियों का सामना कर रहा था और भारत को बांग्लादेशियों के अनुरोध पर इस सम्स्या में हस्तक्षेप करना पड़ा जिसके फलस्वरुप 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध शुरु हुआ।

बांग्लादेश में मुक्ति वाहिनी सेना का गठन हुआ जिसके ज्यादातर सदस्य बांग्लादेश का बौद्धिक वर्ग और छात्र समुदाय था, इन्होंने भारतीय सेना की मदद गुप्तचर सूचनायें देकर तथा गुरिल्ला युद्ध पद्धति से की। पाकिस्तानी सेना आखिरकार 16 सितंबर दिसम्बर 1971 को भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इसमें करीब 93,000 युद्ध बंदी बनाये गये जिन्हें भारत में विभिन्न कैम्पों में रखा गया ताकि वे बांग्लादेशी क्रोध के शिकार न बनें। बांग्लादेश एक आज़ाद मुल्क बना और मुजीबुर्र रहमान इसके प्रथम प्रधानमंत्री बने। 

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