मां की पुकार, बेटा लौटा दे सरकार

‘मेरा बेटा बड़े साहब के कब्जे में है। पौने दो महीने पहले उसने फोन पर बताया था कि वह जल्द घर लौट आएगा। मैं ठीकठाक हूं। मेरी चिंता मत करना। पांच मिनट बाद हरजीत का फोन बंद हो गया था। उसके बाद बेटे से संपर्क नहीं हुआ। मैं बेटे की

By Abhishake PandeyEdited By: Publish:Sat, 29 Nov 2014 12:10 PM (IST) Updated:Sat, 29 Nov 2014 12:20 PM (IST)
मां की पुकार, बेटा लौटा दे सरकार

अशोक नीर, काला अफगाना (गुरदासपुर)। ‘मेरा बेटा बड़े साहब के कब्जे में है। पौने दो महीने पहले उसने फोन पर बताया था कि वह जल्द घर लौट आएगा। मैं ठीकठाक हूं। मेरी चिंता मत करना। पांच मिनट बाद हरजीत का फोन बंद हो गया था। उसके बाद बेटे से संपर्क नहीं हुआ। मैं बेटे की राह देख रही हूं। सरकार बड़े साहब के कब्जे में रखे मेरे बेटे को वापस घर भिजवा दे, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। बेटा लौट आए, यही हमारे लिए सब कुछ है।’

फतेहगढ़ चूड़ियां-बटाला की लिंक रोड पर गांव काला अफगाना की संकरी गली के नुक्कड़ में एक छोटे से घर में रहने वाली शिंदर मसीह यह दर्द बयां करते हुए फफक पड़ी। इराक के मोसुल में आइएस के आतंकियों द्वारा अपहरण किए गए भारतीयों में से एक हरजीत सिंह की मां बेचैन है।

एक निजी टीवी चैनल में अपने बेटे का नाम सुनकर वह स्तब्ध है। बेटे का नाम लेते ही उसकी आंखें छलक पड़ती हैं। कुछ देर बाद आंखों से आंसू पोंछते हुए कहती हैं, ‘देखो मेरे घर की हालत क्या है? हरजीत डेढ़ साल पहले दो लाख रुपये कर्ज लेकर इराक गया था। अभी उसे एक तनख्वाह ही मिली थी। पहली तनख्वाह मिलने पर उसने कहा था मां मैं जल्द ही तुम्हें पैसे भेजूंगा।’ अभी तक मेरा बेटा घर वापस नहीं लौटा। मुझे पैसा नहीं चाहिए। पहले भी तंगहाली में गुजारा करती थी और आज भी कर रही हूं। बस सरकार मेरा बेटा लौटा दे। शिंदर मसीह ने कहा कि किसी भी सरकारी अधिकारी ने उनके साथ कोई संपर्क स्थापित नहीं किया है।

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