जल्द ही मौलिक अधिकारों में शामिल हो सकता है स्वास्थ्य

लंबे समय से विचाराधीन राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के मसौदे को अगले महीने के आरम्भ में कैबिनेट के समक्ष पेश किया जा सकता है।

By kishor joshiEdited By: Publish:Mon, 25 Jul 2016 05:12 AM (IST) Updated:Mon, 25 Jul 2016 09:08 AM (IST)
जल्द ही मौलिक अधिकारों में शामिल हो सकता है स्वास्थ्य

नई दिल्ली। यदि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के मसौदे को मंजूरी मिल जाती है तो जल्द ही शिक्षा की तरह स्वास्थ्य भी प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार बन सकता है। एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक यह मसौदा पिछले लगभग दो साल से विचाराधीन है। जिसे अगले महीने की शुरुआत में कैबिनेट के पास भेजा जा सकता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि "हम पहले से ही एक कैबिनेट नोट तैयार कर चुके हैं। अगले सप्ताह या 10 दिनों के भीतर यह कैबिनेट के सामने रखा जाएगा।" उन्होंने बताया कि मंत्रालय ने हितधारकों, राज्यों सहित और अन्य सरकारी विभागों के साथ कई दौर की बातचीत की है और आम सहमति के बाद इस मसौदे को अंतिम रूप दिया गया है।

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विभिन्न प्रस्तावों के अलावा, यह मसौदा एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकार अधिनियम होगा जिसके तहत "स्वास्थ्य से इंकार" एक अपराध होगा। केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ मिलकर यह प्रस्तावित किया गया है कि 'क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट विधेयक' में उपलब्ध कानूनी नियमों के तहत स्वास्थ्य का उपयोग एक मौलिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित किया जाए। इसके अलावा मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को 1.2 फीसदी से बढ़ाकर 2.5 फीसदी करने का सुझाव दिया गया है।

इस मसौदे में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के साथ-साथ देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य में मुफ्त दवाएं और इलाज प्रदान करना शामिल है। मसौदे में सुझाव दिया गया है कि केंद्र सरकार को मौजूदा स्वास्थ्य परिदृश्य को ध्यान में रखकर सामंजस्य स्थापित करने के लिए कानून में संशोधन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, इसमें मानसिक स्वास्थ्य विधेयक, गर्भावस्था अधिनियम, सरोगेसी कानून और खाद्य एवं औषधि सुरक्षा कानून की समीक्षा का प्रस्ताव शामिल है।

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स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले साल जनवरी के दौरान इस मसौदे पर लोगों के सुझाव जानने के लिए जनता के समक्ष रखा था। हितधारकों को 28 फरवरी, 2015 तक नीति पर सुझाव देने के लिए कहा गया था। आलोचनाओं के बाद इसमें लंबा समय लग गया जिस कारण इसे समय पर लागू नहीं किया जा सका।

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