'ई-वे बिल के क्रियान्वयन से चार से पांच हजार करोड़ रुपये बढ़ा जीएसटी संग्रह'

फिलहाल प्राकृतिक गैस और एटीएफ को जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है क्योंकि इनका राजस्व प्रभाव अधिक नहीं है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 30 Jun 2018 07:22 PM (IST) Updated:Sat, 30 Jun 2018 11:39 PM (IST)
'ई-वे बिल के क्रियान्वयन से चार से पांच हजार करोड़ रुपये बढ़ा जीएसटी संग्रह'
'ई-वे बिल के क्रियान्वयन से चार से पांच हजार करोड़ रुपये बढ़ा जीएसटी संग्रह'

नई दिल्ली। कई वर्षो के इंतजार के बाद आखिरकार एक जुलाई 2017 से देश में जीएसटी लागू हुआ। जीएसटी के क्रियान्वयन में वित्त सचिव हसमुख अढिया की बेहद अहम भूमिका रही है। जीएसटी की पहली वर्षगांठ के मौके पर दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता हरिकिशन शर्मा ने अढिया से लंबी बातचीत की।

जीएसटी का एक साल:

पेश है कुछ अंश:

क्या जीएसटी संग्रह सरकार की अपेक्षा के अनुरूप रहा है?

-अगर हम पिछले वित्त वर्ष में जीएसटी संग्रह पर नजर डालते हैं तो शुरु के तीन महीनों में 90 हजार करोड़ रुपये से अधिक राजस्व मिला। उसके बाद चार महीनों में राजस्व 80 से 90 हजार करोड़ रुपये के बीच में रहा और उसके बाद मार्च में फिर 90 हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया और चालू वित्त वर्ष में अप्रैल में जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपये को पार कर गया।

चालू वित्त वर्ष में क्या उम्मीद है?

-चालू वित्त वर्ष में अगले चार महीनों के दौरान हमें 95 हजार करोड़ रुपये से एक लाख करोड़ रुपये के बीच जीएसटी संग्रह होने की उम्मीद है। हमारी उम्मीद है कि सितंबर के बाद शेष छह महीनों में यह एक लाख करोड़ रुपये से अधिक पहुंचना चाहिए और इस साल औसत मासिक जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपये होना चाहिए। पिछले साल का औसत मासिक जीएसटी संग्रह 89 हजार करोड़ रुपये था।

उम्मीद थी कि ई-वे बिल लागू होने पर जीएसटी संग्रह बढ़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ?

-ऐसा नहीं है। जीएसटी संग्रह ई-वे बिल से ही बढ़ा है.. वरना तो हमारा जीएसटी संग्रह 80-85 हजार करोड़ रुपये के आस-पास ही था। मैं समझता हूं कि जीएसटी संग्रह में हर माह चार-पांच हजार करोड़ रुपये की वृद्धि ई-वे बिल के क्रियान्वयन से ही हुई है।

राज्य के भीतर 50 हजार रुपये से अधिक के माल की ढुलाई को ई-वे बिल जरूरी है जबकि कुछ राज्यों ने यह सीमा बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी है। ऐसा क्यों?

- यह राज्यों ने केंद्र के अधिकारियों के साथ मिलकर तय किया है। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार अकेले ही तय कर ले।

जीएसटी कानून की समीक्षा के लिए समिति बनायी गयी थी। जीएसटी कानून में कितने बदलाव होंगे?

-लॉ रिव्यू कमिटी ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। जीएसटी कानून की करीब 25-30 धाराओं में ये बदलाव किए जाने हैं। असल में ये बदलाव व्यापारियों की सुविधा के लिए ही किए जाएंगे। हमारी कोशिश होगी कि जीएसटी काउंसिल की 21 जुलाई को होने वाली बैठक में इन बदलावों को मंजूरी दिलाई जाए और मानसून सत्र में संशोधन विधेयक पेश किया जाए।

क्या इसी वित्त वर्ष में जीएसटी कानून में संशोधन हो जाएंगे?

-हम कोशिश करेंगे। वैसे ऐसा नहीं है कि अगर ये पारित नहीं हुए तो कोई असर पड़ेगा।

जीएसटी कानून के विवादित प्रावधानों जैसे टीडीएस, टीसीएस व रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म का क्रियान्वयन फिर टाल दिया गया है। क्या इन्हें हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी है?

-ऐसा नहीं है कि ये प्रावधान विवादित हों। टीडीएस व टीसीएस के बारे में कोई विवाद नहीं है। ये दोनों ही लागू होगा। बस एक बात है कि अब तक हमारे पास इसके लिए जरूरी टेक्नोलॉजी की व्यवस्था पक्की नहीं है, इसलिए इसे तीन महीने के लिए फिर टाल दिया गया है। जहां तक आरसीएम का सवाल है तो उसके फायदे नुकसान पर मंत्रिसमूह विचार कर रहा है। इसकी रिपोर्ट आने पर काउंसिल उस पर विचार करेगी।

रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के प्रावधान से आखिर सरकार को लाभ क्या है?

-रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म को लेकर राज्य ही ज्यादा चिंतित हैं। केंद्र में तो आरसीएम था भी नहीं। राज्यों को चिंता यह है कि अगर कंपोजीशन डीलर बिना टैक्स का माल खरीदकर टैक्स के बगैर ही बेचते रहेंगे तो उनसे टैक्स नहीं वसूला जा सकेगा। इसलिए आरसीएम लाने की वकालत की जा रही है।

कंपोजीशन स्कीम का अब तक रिस्पोंस कैसा है?

-कंपोजीशन स्कीम से टैक्स नहीं आ रहा है। इसमें 19 लाख असेसी हैं जो तीन महीने में बमुश्किल 500-600 करोड़ रुपये टैक्स दे रहे हैं।

बहुत से व्यापारियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट को लेकर नोटिस जा रहे हैं। उनका कहना है कि जीएसटीआर-2 न होने की वजह से वे अपना इनपुट टैक्स का दावा साबित नहीं कर पा रहे हैं?

-ऐसा नहीं है। अगर किसी व्यापारी ने दूसरे व्यापारी से माल खरीदा है और दूसरे व्यापारी ने अपने सेल इन्वॉयस अपलोड नहीं किए हैं तो पहला व्यापारी विभाग के समक्ष इसे प्रस्तुत कर सकता है। फिलहाल हम बस सवाल पूछ रहे हैं।

जीएसटी के 28 प्रतिशत स्लैब को खत्म करने का सुझाव कितना व्यवहारिक है?

-आदर्श स्थिति में हमें कम से कम स्लैब रखने चाहिए। स्लैब जितने कम हों, उतना अच्छा है लेकिन अब की राजस्व स्थिति को देखना पड़ेगा। पहले केंद्र और राज्यों का राजस्व स्थिर हो जाए। राजस्व वृद्धि अगर ठीक रही तो भविष्य में इसकी गुंजाइश बन सकती है लेकिन फिलहाल इसकी संभावना नहीं है। भविष्य में हम कुछ-कुछ आइटम को धीरे-धीरे घटा सकते हैं।

जीएसटी के दूसरे साल में प्राथमिकताएं क्या रहेंगी?

-दूसरे वर्ष में हम सबसे पहले जीएसटी रिटर्न की प्रक्रिया को सरल बनाएंगे। हम इसका फार्म और सॉफ्टवेयर बेहतर बनाने पर काम कर रहे हैं।

यह कब तक हो जाएगा?

-कम से कम छह महीने लगेंगे। हम दिसंबर तक इसे पूरा करने की कोशिश करेंगे।

यानी नए साल में लोगों को नया रिटर्न फार्म मिलेगा?

-आप यह कह सकते हैं, लेकिन विगत में हम ई-वे बिल को जल्दबाजी में लागू करने के चक्कर में मात खा चुके हैं, इसलिए अब इसे पूरी तैयारी के साथ लागू किया जाएगा। कभी-कभी टेक्नोलाजी आदमी को हरा देती है। इसलिए कोशिश करेंगे कि सॉफ्टवेयर अच्छी तरह बन जाए।

रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने की चर्चा थी, लेकिन अब तक कोई खास प्रगति नहीं हुई?

-इसके लिए हमें पूरे दिन की बैठक करने की जरूरत होगी। इस पर विचार करने की काफी जरूरत है।

पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने के बारे में क्या विचार है?

-फिलहाल प्राकृतिक गैस और एटीएफ को जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है क्योंकि इनका राजस्व प्रभाव अधिक नहीं है। ये दो आइटम ऐसे हैं जिस पर जीएसटी काउंसिल विचार कर सकती है। हालांकि यह तय नहीं है कि अगली बैठक के एजेंडा में यह आएगा या नहीं।

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