रोजगार की दशा का मूल्यांकन, मनरेगा के तहत पिछले वर्ष की तुलना में कम लोगों ने मांगा है काम

देश में विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के प्रयासों का असर अब दिखने लगा है। भारत सरकार को जल्द से जल्द रोजगार के आंकड़ों का सही चित्र प्रस्तुत करना चाहिए ताकि देश की नीतियों के प्रभावों के बारे में लोगों को सही जानकारी मिल सके।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 17 May 2022 01:20 PM (IST) Updated:Tue, 17 May 2022 01:22 PM (IST)
रोजगार की दशा का मूल्यांकन, मनरेगा के तहत पिछले वर्ष की तुलना में कम लोगों ने मांगा है काम
मनरेगा के तहत पिछले वर्ष की तुलना में कम लोगों ने मांगा है रोजगार। प्रतीकात्मक

डा. अश्विनी महाजन। सीएमआइई यानी सेंटर फार मानीटरिंग इकोनमी नामक संस्था ने हाल ही में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि भारत में कोविड के प्रकोप और उसके कारण किए गए लाकडाउन के कारण रोजगार को भारी धक्का लगा है। संस्था का कहना है कि कोविड के महाप्रकोप वाले वर्ष 2020-21 के दौरान वास्तविक जीडीपी में 6.6 प्रतिशत की गिरावट हुई। हालांकि 2021-22 में अर्थव्यवस्था में 8.95 प्रतिशत का उछाल आया है, लेकिन अभी भी भारत की वास्तविक जीडीपी 145.2 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर मात्र 147.7 लाख करोड़ रुपये तक ही पहुंच पाई है। यानी हमारी वास्तविक जीडीपी अभी भी कोविड पूर्व की जीडीपी के आसपास ही है। इस संस्था का कहना है कि हालांकि जीडीपी तो बढ़ चुकी है, लेकिन इससे सबसे ज्यादा असर रोजगार पर पड़ा है, जिसमें गिरावट के बाद अभी तक वापसी नहीं हो पाई है। संस्था के अनुसार 2021-22 में रोजगार 40.18 करोड़ तक ही पहुंचा, जबकि यह 2019-20 में 40.89 करोड़ था। बेरोजगारी जो 2019-20 में 3.29 करोड़ थी, 2021-22 में 3.33 करोड़ तक पहुंच गई। यानी मात्र चार लाख की वृद्धि।

संस्था का निष्कर्ष यह है कि हालांकि रोजगार में कमी 70 लाख की हुई है, बेरोजगारी का मात्र चार लाख बढ़ना, इस बात का द्योतक है कि इस दौरान बेरोजगार होने वाले लोगों ने अब रोजगार की आस ही छोड़ दी है और वे अब रोजगार की दौड़ से बाहर हो गए हैं। कुछ समय से कुछ कारणों से राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन द्वारा देश में रोजगार संबंधी आंकड़े प्रकाशित नहीं हो रहे। ये आंकड़े अधिक विश्वसनीय होते रहे हैं।

‘मनरेगा’ रोजगार की मांग है मापदंड :महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून हर ग्रामीण बेरोजगार को हर वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी देता है। इसलिए जब लोग बेरोजगार होते हैं तो ‘मनरेगा’ के अंतर्गत 100 दिन का रोजगार प्राप्त करने के हकदार हैं। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति कहीं शहर/ गांव आदि में आकस्मिक रोजगार पा रहा है, तो भी यदि वह 100 या उससे कम दिन बेरोजगार रहता है तो वह ‘मनरेगा’ के अंतर्गत रोजगार प्राप्त कर सकता है।

इसका मतलब यह है कि यदि बेरोजगारी बढ़ती है तो ‘मनरेगा’ की मांग भी बढ़ती है। उदाहरण के लिए 2020-21 में शहरों में लाकडाउन और आर्थिक गतिविधियां थमने के कारण रोजगार घटा और लोग गांवों की ओर पलायन कर गए तो उन दिनों ‘मनरेगा’ लाभार्थियों की संख्या सात करोड़ तक हो गई, जो लाकडाउन से पूर्व पांच करोड़ ही थी। रोचक यह है कि जिस कालखंड में सीएमआइ की रिपोर्ट बेरोजगारी में बढ़ोतरी की बात कर रही है, उस कालखंड (2021-22) में पिछले साल की तुलना में 6.55 प्रतिशत कम मानव दिवसों के रोजगार की मांग की गई। यानी कहा जा सकता है कि कोरोना कालखंड के दौरान गांवों की ओर पलायन किए हुए लोग वापस शहरों में रोजगार प्राप्त कर चुके थे। इस क्रम में यदि अप्रैल 2022 के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि अप्रैल 2021 में 2.62 करोड़ लोगों ने ‘मनरेगा’ के अंतर्गत काम मांगा था, जबकि इस वर्ष अप्रैल 2022 में मात्र 2.33 करोड़ लोगों ने ही मनरेगा के अंतर्गत काम की अपेक्षा की, यानी 11.15 प्रतिशत की गिरावट। विश्लेषकों का मानना है कि ‘मनरेगा’ में रोजगार की मांग में गिरावट शहरी क्षेत्रों में रोजगार बढ़ने के कारण है। यह आंकड़ा सीएमआइई द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के एकदम उलट है, जो यह कहती है कि लोग रोजगार मिलने की संभावनाएं खत्म होने के कारण रोजगार की आस छोड़कर श्रम शक्ति से ही बाहर हो गए हैं।

जीएसटी भी है प्रमाण : सीएमआइई की रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि 2022-23 में 7.5 प्रतिशत जीडीपी ग्रोथ प्राप्त भी कर ली जाए, तो भी बेरोजगारी की दर कम होने की बजाए बढ़ेगी ही। इसके लिए वे जीडीपी के संदर्भ में रोजगार लोच की बात करते हैं। लेकिन हमें समझना होगा कि अर्थव्यवस्था में कोरोना के बाद होने वाली रिकवरी कोई सामान्य बात नहीं है। इस रिकवरी में अर्थव्यवस्था में कुछ मूलभूत परिवर्तन अपेक्षित हैं। अर्थव्यवस्था के सभी संकेतक इन बदलावों की ओर संकेत कर रहे हैं।

पिछले वित्तीय वर्ष (2021-22) की अंतिम तिमाही में जीएसटी संग्रह का मासिक औसत 1.42 लाख करोड़ रहा। अप्रैल में 1.68 लाख करोड़ रुपये का अभूतपूर्व जीएसटी संग्रह, निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था में उठाव की ओर इंगित कर रहा है। यह सही है कि इस दौरान आयातों में भी वृद्धि हुई है, जिस कारण जीएसटी का राजस्व बढ़ा है, लेकिन जहां जीएसटी का राजस्व 1.68 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुका है, आयात जीएसटी का हिस्सा उसमें अभी भी मात्र 36,705 करोड़ रुपये ही है, जबकि एक वर्ष पूर्व भी मार्च 2021 में यह 31,097 करोड़ रुपये ही था।

‘स्टार्ट-अप’ और उद्यमिता को बढ़ावा देने के प्रयासों के भी परिणाम दिख रहे हैं। अभी तक भारत के 100 स्टार्ट-अप यूनीकार्न (जिनका मूल्यांकन एक अरब डालर से अधिक है) बन चुके हैं। नित नए स्टार्ट-अप हमारी अर्थव्यवस्था में स्पंदन का कारण बन रहे हैं।

[प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]

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