चुनावी पराजयों से पस्‍त कांग्रेस उदार हिंदुत्व की ओर

हार की हताशा के बीच राजनीतिक संतुलन साधने के लिए कांग्रेस एक बार फिर मध्य-मार्ग की ओर बढ़ चली है। जीत की तलाश में कांग्रेस उदारवादी हिंदुत्व को अंगीकार करने जा रही है। वहीं, अंग्रेजी पसंद पार्टी के दाग से छुटकारा पाने के लिए पार्टी में हिंदी प्रेम को तरजीह

By Test2 test2Edited By: Publish:Thu, 19 Feb 2015 07:58 PM (IST) Updated:Fri, 20 Feb 2015 08:22 AM (IST)
चुनावी पराजयों से पस्‍त कांग्रेस उदार हिंदुत्व की ओर

नई दिल्ली। हार की हताशा के बीच राजनीतिक संतुलन साधने के लिए कांग्रेस एक बार फिर मध्य-मार्ग की ओर बढ़ चली है। जीत की तलाश में कांग्रेस उदारवादी हिंदुत्व को अंगीकार करने जा रही है। वहीं, अंग्रेजी पसंद पार्टी के दाग से छुटकारा पाने के लिए पार्टी में हिंदी प्रेम को तरजीह मिलनी शुरू हो गई है। पार्टी के इन निर्णयों के पीछे वरिष्ठ नेता एके एंटनी व महासचिव जर्नादन द्विवेदी की भूमिका को माना जा रहा है। हालांकि, इन दोनों नेताओं ने जब यह बात कही थी तो पार्टी ने उसे अनसुना कर दिया था।

लोकसभा चुनावों के दौरान वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने कहा था कि 'धर्मनिरपेक्षता की प्रतिबद्धता को लेकर पार्टी में जनता का विश्वास कम हुआ है। लोगों को लगता है कि कांग्रेस में वर्ग विशेष को तरजीह दी जाती है। लोगों की यह सोच बदलने की कोशिश करनी होगी।' उस समय कांग्रेस ने इसे राज्य विशेष के संदर्भ में दिया बयान बता कर पल्ला झाड़ लिया था। जबकि, पार्टी में हिंदी को लेकर आग्रही वरिष्ठ महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने भी पार्टी को 'सबके लिए समान नीति' के मूल मंत्र की ओर लौटने को कहा था। द्विवेदी ने मुस्लिम समाज को आरक्षण में जातीय आधार के आरक्षण को बाधा के तौर पर गिनाते हुए इसे आर्थिक आधार पर किए जाने की बात कही थी। हालांकि, वोट बैंक खिसकने के भय से पार्टी ने इसे भी खारिज कर दिया था।

लोकसभा व आधा दर्जन राज्यों में हुई पराजय के बाद कांग्रेस को अब इन तर्को में दम नजर आ रहा है। ऐसे में महाशिवरात्रि के मौके पर पार्टी में दर्जनभर नेताओं ने बधाई संदेश दिए तो, पार्टी वेबसाइट से लेकर संगठन के कामकाज में हिंदी की मौजूदगी भी बढ़ती दिख रही है। संकेत मिले हैं कि संगठन में पचास फीसद आरक्षण की वकालत कर रही पार्टी इस मुद्दे से भी पीछे हट सकती है। राज्यों में इसको लेकर हो रहे तीखे विरोध के बीच कांग्रेस अब राज्यवार आरक्षण देने या बीच के रास्ते की तलाश में है।

मध्य-मार्ग की तलाश में :

कांग्रेस उदारवादी हिंदुत्व व अति धर्मनिपेक्षवाद के बीच की राजनीति करती रही है। उल्लेखनीय है कि इसे ही एंटनी ने भ्रम पैदा करने वाला बताया था। शाहबानो प्रकरण में, अयोध्या में ताला खुलवाने व बाबरी ध्वंस जैसे मामलों में पार्टी का दोहरा रवैया रहा है। पार्टी के पूर्व प्रवक्ता रहे गाडगिल ने देश में हिन्दु व मुस्लिम आबादी के अंतर का उल्लेख करते हुए कहा था, 'यदि सभी मुस्लिम कांग्रेस को वोट दे दें तब भी पार्टी सत्ता में नहीं आएगी।' उनकी उस समय नाराजगी कश्मीर में हिंदुओं की दशा को लेकर पार्टी की चुप्पी पर थी।

इसके बाद कांग्रेस मुखिया बनने के बाद सोनिया गांधी ने उदार हिंदुत्व को आगे कर संतुलन साधा था। उन्होंने 1999 में विवेकानंद के जुड़े एक कार्यक्रम में कहा था, 'मूल रूप से भारत हिंदुओं के कारण ही सेक्युलर था, जोकि जीवन पद्धति के रूप में 'सत्य एक है' की वैचारिक अवधारणा पर आधारित है।' बाद में कांग्रेस कार्यसमिति ने एक प्रस्ताव के जरिए इसे पास कर सोनिया की कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष चेहरे को आकार दिया। लेकिन संप्रग-दो में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान से यह संतुलन बिगड़ गया था। मनमोहन ने कहा था, 'देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला हक है।' बाद में हार के कारणों को लेकर छानबीन समिति ने भी इसे ही क्षति का महत्वपूर्ण कारक बताया था। ऐसे में पार्टी एक बार फिर संतुलन की आस में उदारवादी हिंदुत्व की ओर है।

पढ़ें :

संसद में भूमि अध्यादेश का विरोध करेगी कांग्रेस

अन्ना के आंदोलन में शामिल नहीं होगी कांग्रेस

chat bot
आपका साथी