हिमस्खलन आखिर कब तक बनता रहेगा जवानों के लिए अभिशाप

बीते कई सालों से सेना के जवान हिमस्खलन में अपनी जान गंवाते रहे हैं। इसके बावजूद आज भी देश की सुरक्षा में लगे जवानों को हिमस्खलन की कोई सटीक सूचना नहीं मिल पाती है।

By Manish NegiEdited By: Publish:Sat, 28 Jan 2017 06:18 PM (IST) Updated:Sat, 28 Jan 2017 08:20 PM (IST)
हिमस्खलन आखिर कब तक बनता रहेगा जवानों के लिए अभिशाप
हिमस्खलन आखिर कब तक बनता रहेगा जवानों के लिए अभिशाप

नई दिल्ली, मनीष नेगी। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में पिछले तीन दिनों से बर्फीले तूफान ने तांडव मचा रखा है। पहाड़ों पर कहर बरपाती बर्फ ने अब तक 15 जवानों की जान ले ली है। कुछ नागरिक भी बर्फ में दबकर मर गए।

बीते कई सालों से सेना के जवान हिमस्खलन में अपनी जान गंवाते रहे हैं। इसके बावजूद आज भी देश की सुरक्षा में लगे जवानों को हिमस्खलन की कोई सटीक सूचना नहीं मिल पाती है। हम आज भी कोई ऐसा सिस्टम विकसित नहीं कर पाए जिससे हमारे जवानों की जान बच पाए। आज हमारा देश विकास के मामले में रोजाना नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है लेकिन ये सच है कि भारी बर्फबारी के बीच देश की सुरक्षा कर रहे जवानों की सुरक्षा आज भी भगवान भरोसे ही है। बॉर्डर पर तैनात हमारे जवान खराब मौसम के बीच जान जोखिम को डालकर अपनी ड्यूटी कर रहे हैं।

32 सालों में गई 900 जवानों की जान

एक आंकड़े के मुताबिक, धरती पर सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन में 1984 के बाद से पिछले 32 सालों में अब तक करीब 900 जवान हिमस्खलन या फिर खराब मौसम के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। बीते साल भी सियाचिन में बर्फ में दबने से 10 जवान शहीद हो गए थे।

क्या है हिमस्खलन

हिमालय के ऊंचे हिस्सों में हिमस्खलन यूं तो आम बात है मगर ये बर्फीले तूफान तब और खतरनाक हो जाते हैं जब ऊंची चोटियों पर ज्यादा बर्फ जम जाती है। बर्फ परत दर परत जम जाती है और बहुत ज्यादा दबाव बढ़ने की वजह से ये परतें खिसक जाती हैं और तेज बहाव के साथ नीचे की ओर बहने लगती हैं। इनके रास्ते में जो कुछ भी आता है उसे अपने साथ ले जाती हैं। हर साल सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले ये बर्फीले तूफान प्राकृतिक तौर पर भी आते हैं और इंसानी गतिविधी भी इसकी वजह बन सकती है। ऐसा जलवायु परिवर्तन, भारी हिमपात या फिर ऊंचे शोर की वजह से होता है।

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हिमस्खलन में फंसने पर बचने के तरीके

जैसे ही कोई बर्फ के अंदर दबता है तो उसे अपने बाएं हाथ को सीधा ऊपर रखना चाहिए। जिससे आसानी से चिह्नित कर बचाव हो सके। दाएं हाथ से मुंह के पास की बर्फ को हटाकर एक खाली स्थान शीघ्र बनाने की कोशिश करनी चाहिए। देर होने पर यह बर्फ कंक्रीट सरीखी सख्त हो जाती है तब शरीर के किसी अंग को हिलाना भी बेहद मुश्किल होता है। यह खाली स्थान जीवन रक्षक चैंबर की तरह होता है। एक छोटे से स्थान में भी इतनी हवा होती है कि व्यक्ति 30 मिनट तक आराम से सांस ले सके।

अब व्यक्ति को इस कम वायु के अधिकतम इस्तेमाल के बारे में सोचना चाहिए। बर्फ के सख्त होने से पहले एक लंबी सांस लेकर उसे रोक लें। इससे आपका सीना फैलेगा जिससे बर्फ के सख्त होने की स्थिति में भी सांस लेने की जगह मिलती है। अनमोल सांसों को बर्फ तोड़ने में जाया नहीं करना चाहिए। निढाल पड़े रहकर कोई भी ज्यादा देर तक सांसें बरकरार रख सकता है।

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