गुजरात में मैला ढोने की प्रथा जारी, 5,000 से ज्यादा आंगनवाड़ी स्कूलों में शौचालय नहीं

देश में हाथों से मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध के बावजूद गुजरात में इसके कई मामले सामने आए हैं। भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने स्वच्छता को लेकर अपनी एक ऑडिट रिपोर्ट में यह बात कही है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि गुजरात के 5,000 से

By manoj yadavEdited By: Publish:Tue, 11 Nov 2014 06:56 PM (IST) Updated:Wed, 12 Nov 2014 06:23 AM (IST)
गुजरात में मैला ढोने की प्रथा जारी, 5,000 से ज्यादा आंगनवाड़ी स्कूलों में शौचालय नहीं

गांधीनगर। देश में हाथों से मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध के बावजूद गुजरात में इसके कई मामले सामने आए हैं। भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने स्वच्छता को लेकर अपनी एक ऑडिट रिपोर्ट में यह बात कही है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि गुजरात के 5,000 से ज्यादा आंगनवाड़ी स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।

पूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) के प्रदर्शन पर आधारित ऑडिट की कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 1993 में बने कानून के तहत हाथ से मैला ढोने के रोजगार और शुष्क शौचालय निर्माण पर पाबंदी है, लेकिन गुजरात में इसके कई मामले सामने आए हैं।

मार्च 2013 तक की यह ऑडिट रिपोर्ट मंगलवार को गुजरात विधानसभा में पेश की गई है। वर्ष 2012 में टीएससी का नाम परिवर्तित करके इसे निर्मल भारत अभियान में शुमार कर दिया गया था।

वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में मानवीय प्रयास से लैट्रिन साफ करने का काम जारी है। ऐसे 1,408 मामले मिले जिनमें इंसानों द्वारा 'नाइट सॉइल' हटाने का काम किया गया। इसके अलावा ग्र्रामीण क्षेत्रों में यह काम पशुओं के जरिये कराने के 2,593 मामले पाए गए। नाइट सॉइल शब्द का इस्तेमाल ऐसे मल के लिए किया जाता है जिसे लोगों के जरिये सीवेज टैंक से रात के समय निकालने का काम होता है और इसे उवर्रक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। कैग ने समाज में मौजूद इस बुराई पर चिंता भी जताई है।

कैग की रिपोर्ट में गुजरात के ग्र्रामीण इलाकों में स्वच्छता अभियान के क्रियान्वयन में कई अन्य गंभीर खामियां बताई गई हैं। मसलन, आंगनवाड़ी स्कूलों में मार्च 2013 तक 30,516 शौचालय बनाने के लक्ष्य के मुकाबले केवल 25,422 यानी 83 फीसद शौचालय बनाए जा सके। जामनगर में केवल 47 फीसद लक्ष्य पूरा किया जा सका। गौरतलब है कि गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्टï्रीय स्तर पर स्वच्छता अभियान शुरू किया है, जिसमें सभी से भागीदार बनने का आह्वïान किया गया है।

एक साल में खुले में शौच से मुक्त होगा गुजरात

अहमदाबाद, [शत्रुघ्न शर्मा]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ाते हुए गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने निकाय चुनाव लडऩे वालों के लिए घर में शौचालय को अनिवार्य कर दिया है। राजभवन से मंजूरी के बाद अगले वर्ष निकाय चुनावों में इस कानून पर अमल हो सकता है। सरकार का दावा है कि एक साल में गुजरात को खुले में शौच से मुक्त राज्य बना देंगे। गुजरात विधानसभा के दो दिवसीय बजट सत्र के आखिरी दिन स्वास्थ्य व शहरी विकास मंत्री नितिन पटेल ने गुजरात स्थानीय निकाय सुधार कानून विधेयक सदन में पेश किया जिसे सदन ने पारित कर दिया।

विधेयक के मुताबिक पंचायत से पालिका तक का चुनाव लडऩे के लिए प्रत्याशी के घर में शौचालय अनिवार्य होगा। विविध निकायों के वर्तमान सदस्यों को भी छह माह में शौचालय मौजूद होने का प्रमाण पत्र देना होगा। विधेयक को मंजूरी मिलने पर आगामी अक्टूबर 2015 में होने वाले निकाय चुनाव में इस पर अमल होने की संभावना है। विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस विधायक जयश्री पटेल व शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि राज्य में 31 लाख परिवारों के पास शौचालय नहीं है, इनका कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ पाएगा जो अधिकारों का हनन है। अकेले अहमदाबाद में 80 हजार परिवारों के पास शौचालय नहीं है। शहरी विकास मंत्री नितिन पटेल ने कहा कि सरकार एक वर्ष में राज्य को खुले में शौच से मुक्त कर देगी। हर घर में शौचालय के लिए सब्सिडी भी दी जा रही है।

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