कमजोरी को बनाएं खूबी

जिस महाकवि सूरदास की आज विश्वभर में ख्याति है, वे नेत्रविहीन थे। अलगप्पा कुष्ठरोगी थे, किंतु अपने समय में भारत के सबसे बड़े उद्योगपति बने थे।

By Nancy BajpaiEdited By: Publish:Mon, 29 Oct 2018 10:10 AM (IST) Updated:Mon, 29 Oct 2018 10:10 AM (IST)
कमजोरी को बनाएं खूबी
कमजोरी को बनाएं खूबी

नई दिल्ली, डॉ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय। आपने देखा होगा, क्यारियों में जो कमजोर पौधे होते हैं, प्रकृति भी उनकी रक्षा नहीं कर पाती। इतना ही नहीं, उनके अगल-बगल, आगे-पीछे जो शक्तिशाली पौधे होते हैं, वे उनकी भी खुराक चट कर जाते हैं। शक्तिशाली पौधे उन निरीह पौधों के ऊपर छाकर उन्हें प्रकाश और हवा से वंचित रखते हैं, अंतत: वे पौधे मर जाते हैं। किसान भी अपने खेतों से मरियल पौधों को उखाड़ फेंकता है। जो पौधे सबल दिखाई देते हैं,

उनको खाद-पानी देकर और उनका निराई- गुड़ाई कर पालता रहता है। ऐसे में, सहज ही एक प्रश्न उठ खड़ा होता है कि खुद को कमजोर समझने वाले क्या करें? उत्तर सुस्पष्ट है। आप एक दैनन्दिनी (डायरी) लीजिए और उसमें अपनी एकएक कमजोरी लिखते जाइए। उन कमजोरियों को सबसे पहले लिखिए, जिनके सामने आ जाने से आपकी बची-खुची प्रतिष्ठा के मिट्टी में मिल जाने का भय लगातार सताता आ रहा है।

एक बात अवश्य समझ लीजिए, इस संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसमें कोई-न कोई दुर्गुण न हो। अपने दैनन्दिनी-लेखन को गुप्त रखिए। इसे एक पुस्तक मानकर चलिए। उस पुस्तक का नाम रखिए ‘मेरी कमजोरियां’। जिस तरह से पुस्तक में अध्याय रहता है उसी तरह से आप वरीयता-क्रम में अपनी कमजोरियों के प्रकार के आधार पर अध्याय का नाम लिख लीजिए। अब आप अध्याय के अनुसार अपनी एक-एक कमजोरी को उघारते जाइए। जब आपकी सारी कमजोरियां उस दैनन्दिनी के माध्यम से सामने आ जायें, तब आपकी भूमिका उस रोग विशेषज्ञ चिकित्सक की भांति हो जानी चाहिए, जो रोग-विशेष को समझते ही सही दिशा में उपचार करने की दिशा में तत्पर हो जाता है। मान लीजिए, आपमें हीनता की भावना है। यह जान लीजिए, हीनता का रोग बहुत भयावह होता है। मनुष्य यदि जन्म से ही अंधा, गूंगा, लंगड़ा, बहरा है अथवा किसी भी प्रकार की अपंगता से ग्रस्त है तो इसकी सहायता के लिए चिकित्सा विज्ञान की सहायता ली जाती है। फिर भी यदि दूर न किया जा सके तो क्या उससे हार मानकर अपनी पूरी जिंदगी यों ही गुजार देनी चाहिए? बिलकुल नहीं। हमारे सम्मुख ऐसे कई उदाहरण हैं, जो गंभीर विकलांगता के बाद भी डिगे नहीं।

जिस महाकवि सूरदास की आज विश्वभर में ख्याति है, वे नेत्रविहीन थे। अलगप्पा कुष्ठरोगी थे, किंतु अपने समय में भारत के सबसे बड़े उद्योगपति बने थे। नेपोलियन का कद छोटा था, परंतु अपने कार्यों से उन्होंने अपने को ऐसा बना लिया कि महान तानाशाह के रूप में वे आज भी जीवित हैं। थॉमस एल्वा एडिसन बहरे थे, किंतु उन्होंने कई महान आविष्कार किये थे। फ्रेंकलिन डी. रुजवेल्ट पोलियो से ग्रस्त होने के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका के चुनाव में अयोग्य घोषित किये गये थे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। आगे चलकर, वे उसी देश में राष्ट्रपति-पद पर चार बार चुने गये थे। लकड़ी की टांग लगवाने के बाद भी जर्मनी के कुशल पॉयलट बने थे। यूनान के डीमोस्थेनीज पहले बोलते समय हकलाते थे, किंतु अपने दृढ़ निश्चय और प्रयासों के चलते वे यूनान के महान वक्ता कहलाये। इस तरह के सैकड़ों उदाहरण हैं। ऐसे में, विपरीत और शोचनीय परिस्थितियों में अपने विवेक का आश्रय लेते हुए अपनी प्रत्येक कमजोरी पर ध्यान केंद्रित करते हुए आपको आज और अभी से उन्हें अपनी शक्ति बनाने के प्रयास में जुट जाना चाहिए।

विचारणीय बातें जो अपनी सहायता स्वयं करता है, ईश्वर भी उसी की सहायता करता है। स्वावलंबन और सहयोग के आधार पर शुरू किया गया उद्योग नागरिक-जीवन की सफलता की कुंजी है। सभी अच्छाइयों को ग्रहण करते हुए सभी बुराइयों का त्याग करना सीखें।

(लेखक भाषाविद् और करियर विशेषज्ञ है)

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