योग से बदला जीवन

सकारात्मक जीवनशैली के साथ ही सटीक चिकित्सा पद्धति भी है योग। इसके चमत्कारिक प्रभाव और अभूतपूर्व लाभ वही महसूस कर पाया है, जिसने इसको अपनी जिंदगी में श्रद्धापूर्वक अपनाया।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sun, 19 Jun 2016 12:55 PM (IST) Updated:Mon, 20 Jun 2016 10:48 AM (IST)
योग से बदला जीवन

योग का जब जीवन से संयोग होता है, तो प्रभाव चमत्कारिक होते हैं। बिना किसी मूल्य के अनमोल लाभ देने वाली इस प्राचीन भारतीय विधा ने इसे अपनाने वालों को सुख और स्वास्थ्य का वरदान दिया है। इसका बहुत बड़ा उदाहरण हैं केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सफाई मंत्री उमा भारती। वे कहती हैं ‘योग ने मुझे पुनर्जीवन दिया। एक भीषण दुर्घटना के बाद मैंने एक साल तक कष्ट झेला और स्वस्थ हो सकी तो योग से। योग मन और शरीर यानी स्वास्थ्य से जुड़ा है, जबकि अध्यात्म दिनचर्या और जीवन से जुड़ा है। यदि आप ईश्वर को नहीं मानते हैं, तो भी योग और प्राणायाम जरूर करें। यदि व्यक्ति स्वस्थ रहेगा, तो काम भी सही करेगा।’ योग के प्रभाव से अभिभूत उमा कहती हैं, ‘योग सिखाने वाले एक्सपर्ट को मैं जीवन शक्ति प्रदान करने वाले लोगों में से एक मानती हूं।’

ब्रेल में लिखी किताब

‘योग ने मेरा जीवन बदल दिया और अब इसके जरिए मैं दूसरों का जीवन बदल रही हूं। दुनिया में मैं अकेली ऐसी हूं जिसने ब्रेल में योग पर किताब लिखी है,’ निवेदिता जोशी को लगता है कि जैसे उनका जीवन अब सिर्फ योग को समर्पित है। पंद्रह बरस की उम्र में जब वे पूजा करने जमीन पर बैठीं तो फिर उठ नहीं सकीं। उनकी रीढ़ की हड्डी पूरी तरह से खराब हो गई। उनका संघर्ष करीब ग्यारह साल तक चला। जब वे पूरी तरह से बिस्तर पर आ गईं तो उनके पिता सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी (पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री) उन्हें योग गुरु बी.के.एस. आयंगर के पास ले गए। आयंगर योग को जीवन का हिस्सा बनाकर वे तन-मन से तो पूरी तरह स्वस्थ हुई हीं, पर दिलचस्प यह है कि योग के चमत्कारिक असर से प्रभावित होकर वे खुद योग गुरु बन गईं।

योग से ही बनी पहचान

योग को घर-घर पहुंचाने वाले बाबा रामदेव की स्वयं की जिंदगी भी योग से बदली। बचपन में ही उनके शरीर का बायां हिस्सा पक्षाघात से पीड़ित हो गया था। वे बताते हैं कि योग के माध्यम से ही खुद को स्वस्थ कर सके। बचपन में काफी मोटे भी थे बाबा रामदेव। वे बताते भी हैं, ‘जब छोटा था तो बहुत बीमार रहता था। बहुत मोटा भी था। सभी मुझे चिढ़ाते थे। फिर मैंने योग करना शुरू किया और तब से लेकर आज तक 5 बजे सुबह उठता आया हूं और परिणाम सबके सामने है।’

फिर चमके बड़े पर्दे पर

‘बॉम्बे’ और ‘रोजा’ में संवेदनशील अभिनय से अरविंद स्वामी ने सभी को अपना कायल बना लिया था। वर्ष 2000 में हिंदी फिल्म ‘राजा को रानी से प्यार हो गया’ में वे आखिरी बार सिल्वर स्क्रीन पर नजर आए थे। उसके बाद एक दशक से ज्यादा समय तक वह सिनेमा से दूर रहे। दरअसल, एक दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी को गंभीर चोट पहुंची। उनके पैरों को आंशिक रूप से लकवा मार गया लेकिन योग व आयुर्वेद की बदौलत अब वे दोबारा बड़े पर्दे पर चमक रहे हैं।

जी उठीं योग से

देश की पहली सुपर मॉडल और ‘आशिकी’ फेम अनु अग्रवाल को योग ने नया जीवन दिया। एक कार हादसे के बाद वे कोमा में चली गई थीं। कोमा से बाहर आईं तो उनके चेहरे के साथ आधा जिस्म पैरेलाइज्ड हो गया था। उन्होंने याद्दाश्त भी खो दी थी। उन्हें मुंगेर के योग साधना केंद्र ले जाया गया और योग की मदद से उन्होंने दूसरी जिंदगी पा ली। अनु आज नि:शुल्क योग सिखाती हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने ‘अनु फन योग’ ईजाद किया है। योग और अध्यात्म की ओर मुड़ गईं अनु कहती हैं कि अपने नए जीवन में वे योग को जी रही हैं।

सर्वोपरि है यह साधना

आखिर योग क्या है? विज्ञान, चिकित्सा पद्धति या फिर जीवन जीने की कला? योग शब्द के दो अर्थ हैं जोड़ और समाधि। जब तक हम खुद से नहीं जुड़ेंगे तब तक समाधि तक पहुंच पाना आसान नहीं है। माइक्रोबायोलॉजिस्ट से योग गुरु बनीं निवेदिता कहती भी हैं, ‘कोई भी साधना परमात्मा से जोड़ती है लेकिन योग साधना में आध्यात्मिक ज्ञान जुड़ा है तो यह सर्वोपरि है। यह रिफलेक्शन है सेल्फ का। इसमें कायाकल्प की शक्ति है। युवा योग करेंगे तो एनर्जी, क्लियरिटी, निर्णय लेने की क्षमता आएगी। क्राइम कम होगा। प्रोडक्टिव होंगे। मध्य आयु में तनाव व रोगों से छुटकारा मिलेगा और बुजुर्ग तो नवजीवन पा सकेंगे।’
यशा माथुर
इनपुट- नोएडा से स्मिता, मुंबई से स्मिता श्रीवास्तव व अमित कण
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