एक रंग ऐसा भी

होली केवल रंगों से खेलने का उत्सव नहीं है। जीवन को इंद्रधनुषी बनाने की गवाही है होली। यह मानना है उन लोगों का, जो बहुत कुछ खोकर भी सब कुछ पाने की उम्मीद रखते हैं। ऐसे कुछ खास लोगों के संग चलिए होली मनाते हैं ...

By Babita kashyapEdited By: Publish:Sat, 19 Mar 2016 02:48 PM (IST) Updated:Sat, 19 Mar 2016 03:00 PM (IST)
एक रंग ऐसा भी

होली केवल रंगों से खेलने का उत्सव नहीं है। जीवन को इंद्रधनुषी बनाने की गवाही है होली। यह मानना है उन लोगों का, जो बहुत कुछ खोकर भी सब कुछ पाने की उम्मीद रखते हैं। ऐसे कुछ खास लोगों के संग चलिए होली मनाते हैं ...

शिक्षा के सतरंगी रंग

मोनिका मोरे

जनवरी 2014 में हुए एक ट्रेन हादसे ने मुझे कृत्रिम हाथ वाली लड़की के रूप में पहचान दी। जल्दबाजी में ट्रेन पकडऩे के कारण मेरे दोनों हाथ कट गए। पंद्रह सर्जरी के बाद मुझे दो कृत्रिम हाथ लगाए गए। पहले मुझे इन हाथों को लगाने में तकलीफ होती थी। कारण, ये काफी वजनदार हैं। माता-पिता और दोस्तों ने मेरा हौसला बढ़ाया, लेकिन फिर से जीने की सीख मुझे महेंद्र पितले से मिली। महेंद्र जी एक हादसे में अपने दोनों हाथ खो चुके हैं। उनमें जीने की इच्छा और आत्मविश्वास देखकर मुझे आधार मिला। इस हादसे के बाद मैंने बारहवीं की परीक्षा दी और अच्छे नबंर से पास हुई। अब आगे की पढ़ाई कर रही हूं। शिक्षा के सतरंगी रंग को मैंने अपना जीवन बनाया है। मैं शिक्षक बनना चाहती हूं। लोग मुझे दया के भाव से देखते हैं तो बुरा लगता है। हादसे में पीडि़त लोगों को हिम्मत दें और उनका आत्मविश्वास बढ़ाएं।

अपनों के प्यार का रंग

हेमिल परीख

मार्च 2009 में मैं रेल हादसे का शिकार हो गया। मैं लोकल ट्रेन में सफर कर रहा था। एक आदमी दरवाजे को बाहर की तरफ पकड़ कर खड़ा था। उसका हाथ फिसल रहा था। उसने मुझसे मदद मांगी। मैंने उसे अंदर की तरफ ले लिया, मगर मैं ट्रेन से नीचे गिर गया। मेरे दाएं हाथ की उगंली और बाएं पैर का पंजा बुरी तरह घायल हो गया। छह महीने तक मैं घर में ही बैठा रहता था। उस दौरान मैंने द सीक्रेट किताब पढ़ी। इसे पढऩे से मेरे अंदर पॉजिटिव एनर्जी आई। आज मैं जो कुछ हूं उस किताब की वजह से हूं। मेरे पिता ने मुझे जीने का हौसला दिया। हादसे के छह महीने बाद मुझे जर्मन फुट लगाया गया। यह नकली पंजा मेरे लिए पंख के बराबर है। अब मैं क्रिकेट खेलता हूं। डांस करता हूं। इसके साथ मैं फाइनेंस एडवाइजर हूं। मैं महज 27 साल का हूं। हादसे के बाद मैंने खुद को खो दिया था। अपनों के प्यार के रंग ने मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है।

मेहनत का रंग

मुकेश शाह

तीन साल की उम्र में ही मुझे दोनों पैर में समस्या हो गई थी। मुझे पोलियो का बुखार आया था। डॉक्टर ने मुझे हाईडोज का इंजेक्शन लगा दिया था। इंजेक्शन के रिएक्शन से मुझे पोलियो हो गया। मैंने बहुत इलाज करवाया, पर कोई फायदा नहीं हुआ। बचपन में मां और भाई मुझे गोदी में स्कूल ले जाया करते थे। मैंने नौवीं तक की पढ़ाई की। मेरा आगे पढऩे का मन था, पर किन्हीं कारणों से आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया। मेरे बड़े भाई

ने मेरे लिए एक दुकान खुलवा दी। वहां मैं सिलाई का काम करता हूं। मेरी पत्नी आरती का एक हाथ काम नहीं करता है। वह मेरे पैर बन जाती हैं और मैं उनके हाथ। बचपन में मुझे खुद की हालत देखकर बुरा लगता था। धीरे-

धीरे मैंने खुद में आत्मविश्वास जगाया। बीस साल की उम्र तक मैं खुद को लेकर परेशान रहता था। उसके बाद

मैंने अपनी कमजोरी को ताकत बनाने का फैसला किया। मैं जीवन भर किसी पर आश्रित नहीं होना चाहता था। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं दिमागी तौर पर विकलांग नहीं हूं। अपने जीवन में मैंने आत्मविश्वास और मेहनत का रंग भरा है। होली के दिन लोग खड़े होकर होली खेलते हैं। मैं बैठकर होली खेलता हूं।

विश्वास का रंग

मानसी मनोज कारिया

बचपन से ही मेरे दोनों पैर में खराबी है। मेरा मानना है कि ऊपर वाला एक खिड़की बंद करता है तो दूसरी खोल देता है। हमें बंद खिड़की नहीं, बल्कि खुली खिड़की की तरफ देखना चाहिए। मेरे माता-पिता का फोकस इस बात पर नहीं था कि मेरे पास क्या नहीं है। उनका फोकस इस बात पर था कि मैं क्या कर सकती हूं। बचपन से लेकर अब तक मैंने अपना 45 साल का सफर तय किया है। मैं जूइॅल्रि डिजाइनर हूं। मुझे खुद के टैलेंट के बारे में पहले पता नहीं था। मेरी मां जूइॅल्रि का बिजनेस करती थीं। इस तरह मेरी रूचि जूइॅल्रि डिजाइन में बढ़ी। मेरे पति मनोज भी विकलांग हैं। मैं टीवी और फिल्म के लिए जूइॅल्रि डिजाइन करती हूं। मैं अपने जीवन में काले रंग की परछाई नहीं पडऩे देना चाहती थी और अपने जीवन में खुशी, विश्वास और प्यार का रंग घोलना चाहती थी। मैंने वैसा

ही किया। इसी वजह से मुझे रंगों का त्योहार होली बेहद पसंद है। मुझे भविष्य में विकलांग लोगों के लिए कुछ करना है। मैं और मेरे पति मनोज की किस्मत अच्छी है। हमें खुद के पैरों पर खड़ा होने का अवसर मिला है।

प्राची दीक्षित

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