दौर अभिनेत्रियों का है...

अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने अपनी अदाकारी का लोहा फिर से मनवा लिया है। इन दिनों वह संजय लीला भंसाली की फिल्म बाजीराव मस्तानी जैसा मेगा बजट का हिस्सा हैं। उनके चढ़ते हुए कॅरियर पर एक नजर...

By Babita kashyapEdited By: Publish:Sat, 31 Jan 2015 11:15 AM (IST) Updated:Sat, 31 Jan 2015 11:18 AM (IST)
दौर अभिनेत्रियों का है...

अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने अपनी अदाकारी का लोहा फिर से मनवा लिया है। इन दिनों वह संजय लीला भंसाली की फिल्म बाजीराव मस्तानी जैसा मेगा बजट का हिस्सा हैं। उनके चढ़ते हुए कॅरियर पर एक नजर...

प्रियंका चोपडा इस इंडस्ट्री में लंबे समय से टिकी हुई हैं। जब उनकी फिल्म जंजीर फ्लॉप गई थी तो सबने यह मान लिया था कि उनके दिन लद चुके हैं। इसका त्वरित प्रभाव भी देखा गया। फिल्म गोलियों की रासलीला रामलीला में उन्हें महज डांस नंबर का मौका मिला। इस दौरान दीपिका पादुकोण की कई फिल्में हिट हुईं और प्रियंका उनसे कई पायदान नीचे जा रही थीं, लेकिन फाइटिंग स्पिरिट से प्रियंका ने वापसी की। मैरीकॉम ने उनकी पोजीशन काफी मजबूत की।

धैर्य से सफलता

प्रियंका कहती हैं, मौजूदा पोजीशन बनाने में मेरे पेशेंस और लगातार काम करने की कुव्वत ने अहम् रोल प्ले किया है। मैंने हमेशा कड़ी मेहनत की और आगे भी करती रहूंगी। मेरी हालत उस बतख के समान है, जो पानी के ऊपर स्थिर और शांत नजर आती है, लेकिन पानी के भीतर उसके पांव लगातार चल रहे होते हैं, वह निरंतर अपनी मंजिल के पास पहुंचने का प्रयास करती रहती है। धीरज धरने के अलावा मैंने प्रयोगों पर भी खूब बल दिया है। हिंदी फिल्म जगत में आए मुझे दो साल भी नहीं हुए थे कि मैंने ऐतराज जैसी फिल्म की, जिसमें मेरा रोल निगेटिव था। सात खून माफ भी टिपिकल हीरोइन केंद्रित फिल्म नहीं थी, मगर मैंने वह की। फैशन में तो कोई हीरो ही नहीं था और आज की तरह तब फीमेल केंद्रित फिल्मों का दौर नहीं था। फिर भी उपरोक्त सभी फिल्में सफल रहीं। आगे भी यही उम्मीद करती हूं कि अपने दम पर निर्माताओं और दर्शकों दोनों की अपेक्षाओं पर खरी उतरती रहूं।

दौर हमारा है

दस साल पहले ऐसे पोस्टर की कल्पना नहीं की जा सकती थी, जिस पर सिर्फ अभिनेत्री हो और वह भी अपने किरदार के पोज में। यह हिंदी फिल्मों का सहज विकास और अभिनेत्रियों की उपलब्धि है। दर्शक भी अच्छी कहानियां सुनने और देखने के लिए तैयार हैं। अभी ज्यादा एक्सपोजर हो चुका है। राइटर और फिल्ममेकर भी नए विषयों पर फिल्में बना रहे हैं। यह दौर हम अभिनेत्रियों और फिल्मों के लिए बहुत अच्छा है।

प्राथमिकता हैं फिल्में

बचपन में प्रियंका का सपना एरोनॉटिकल इंजीनियर बनने का था, ताकि वह हवा से बातें कर सकें और आकाश में रहें। आज वह सफलता के आकाश में कुलांचे मार रही हैं। लड़कियां मल्टीटास्कर होती हैं। प्रियंका उसकी मुफीद उदाहरण हैं। वह अभिनय, गायन, एंडोर्समेंट व सोशल एक्टिविटी के लिए पर्याप्त समय निकालती हैं। यूनिसेफ के अभियानों में शामिल उन्होंने गर्ल राइजिंग सीरीज में भारत की प्रतिनिधि फिल्म को आवाज दी है। इसमें विश्व प्रसिद्ध नौ अभिनेत्रियों ने अलग-अलग फिल्मों को आवाज देकर लड़कियों के संघर्ष व जीत को मुखर किया है। प्रियंका ने कोलकाता की रुखसाना की जिंदगी बयां की है।

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