लघुकथा: गुणीराम

गुणीराम अपने पिताजी के काम में हाथ बंटाता। वह पिताजी के साथ जंगल वाली खदान पर जाकर मूर्तियां बनाने में काम आने वाला पत्थर खोदकर लाता।

By Pratibha Kumari Edited By: Publish:Tue, 24 Jan 2017 12:52 PM (IST) Updated:Tue, 24 Jan 2017 01:06 PM (IST)
लघुकथा: गुणीराम
लघुकथा: गुणीराम

बहुत पुराने समय की बात है। एक छोटे से गांव में एक गरीब शिल्पकार रहता था। वह मूर्तियों का निर्माण करके, उन्हें गांव गांव बेचकर अपना जीवन निर्वाह करता था। इससे वह अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी ही जुटा पाता था। गरीबी में दिन गुजर रहे थे।

उसका एक बेटा था गुणीराम। वह परिश्रमी और नेकदिल था। बचपन में ही उसकी मां की मृत्यु हो गई थी। उसके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया था। अब वह अपनी सौतेली मां के साथ ही रहता था।

गुणीराम अपने पिताजी के काम में हाथ बंटाता। वह पिताजी के साथ जंगल वाली खदान पर जाकर मूर्तियां बनाने में काम आने वाला पत्थर खोदकर लाता। हाथ में छैनी हथौड़ा लेकर स्वयं भी पिताजी के साथ साथ पत्थरों पर आकृति उकेरने का प्रयास करता। उसे इस काम में बड़ा आनंद आता।

एक दिन वह अकेला ही जंगल की खदान पर पत्थर लेने चला गया। वहां सफेद वस्त्रों में एक बूढ़ा बाबा बांसुरी बजा रहा था। उसने मुस्कराकर गुणीराम की तरफ देखा। फिर स्नेहपूर्वक उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, 'बेटा, तुम्हारे गुणों की चर्चा पूरे गांव में फैली हुई है। तुम्हें मूर्तियां बनाने का बहुत शौक है। मैं तुम्हें एक छैनी हथौड़ा देता हूं। इससे तुम पत्थरों पर मूर्तियां उकेरना। फिर तुम्हारी मूर्तियां अच्छे दामों पर बिकेंगी। इस छैनी हथौड़ी से हर बार नई नई आश्चर्यजनक मूर्तियां बनेंगी।'

कुछ रूक कर साधु बाबा ने पुनः कहा, 'हां, एक बात का ध्यान रखना कि तुम ज्यादा लालच मत करना तथा मूर्तियों को उचित दामों पर बेचना। यदि तुमने लोभ में पड़कर इससे ज्यादा दाम लेने की कोशिश की तो इसका परिणाम बुरा होगा। इनसे मूर्तियों का निर्माण करते करते तुम्हारी कला में भी निखार आएगा।' इतना कहकर साधु बाबा अंतर्धान हो गए।

गुणीराम खुशी खुशी वह छैनी हथौड़ा लेकर घर वापस आ गया। उसने अपने माता पिता को भी छैनी हथौड़ा दिखाई और पूरा वृत्तांत कह सुनाया। उसके माता पिता सब बातें सुनकर बहुत खुश हुए।

अब गुणीराम तरह तरह की कलात्मक मूर्तियों का निर्माण करने लगा। हर मूर्ति अपने आप में सुंदर और सजीव लगती थी। अब बाजार मे उनकी मूर्तियां अच्छे दामों पर हाथों हाथ बिक जातीं। जो भी उन मूर्तियों को देखता, दांतों तले उंगली दबा लेता। अब उन लोगों की दरिद्रता समाप्त हो गई थी।

उनके राजा ने एक महल बनवाया। शाही महल में श्रेष्ठ मूर्तियां स्थापित करवाने की इच्छा राजा ने अपने मंत्री से प्रकट करते हुए कहा, 'हमारे इस शाही महल में ऐसी मूर्तियां लगवाई जाएं कि लोग आश्चर्य से देखते रह जाएं।'

मंत्री ने कहा, 'ठीक है, मैं कल ही राज्य में यह ऐलान करवाता हूं कि जो शिल्पकार शाही महल के लिए सबसे सुंदर मूर्तियां बनाएगा उसे एक लाख स्वर्ण मुद्राएं इनाम में मिलेंगी।'

ऐलान सुनकर गुणीराम के मन में लालच आ गया। साधु बाबा की चेतावनी भूलकर वह भी अपनी छैनी हथौड़ी लेकर राजधानी की ओर चल दिया। एक निश्चत मैदान में एक दर्जन से भी अधिक शिल्पकार एकत्रित हुए। सभी अपनी अपनी कल्पना से मूर्तियों का निर्माण करने लगे।

तकरीबन तीन हफ् उपरांत सभी शिल्पकारों ने अपनी अपनी मूर्तियां पूर्ण कर लीं। फिर राजा और मंत्री ने एक एक मूर्ति को देखना शुरू किया। गुणीराम की मूर्ति सुंदर और मुंह बोलती सी लगी। राजा ने गुणीराम की मूर्ति का चयन कर वैसी ही दस मूर्तियां और बनाने का आदेश दिया।

गुणीराम रात दिन मूर्तियों के निर्माण में जुट गया। सातवीं मूर्ति का निर्माण करते हथौड़ी फिसल गई और जोर से उसके हाथ पर लगी। हाथ लहूलुहान हो गया। छैनी उछल कर पत्थरों के ढेर में गुम हो गई। अचानक उसे साधु बाबा की चेतावनी याद आ गई। राजा भी उससे नाराज हो गया। उसकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे।

गुणीराम को अपनी करनी का काफी पश्चाताप हुआ। उसकी छैनी हथौड़ी न जाने कहां विलीन हो गई। गुणीराम ने फिर कभी लालच न करने की कसम खाई। वह मूर्ति कला में दक्ष हो चुका था। परिश्रमी तो वह था ही, पुनः वह लगन से मूर्तियों के निर्माण में लग गया। फिर उसे किसी चीज का अभाव नहीं रहा।

साभार- हिंदी वार्ता

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